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चीनी वस्तुओं का बहिष्कार वर्तमान में भारतीय परिपेक्ष्‍य के लिए तार्किक नहीं

चीनी वस्तुओं का बहिष्कार वर्तमान में भारतीय परिपेक्ष्‍य के लिए तार्किक नहीं - China, Chinese goods
- महेश तिवारी

देश में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम चल रही है। पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद का साथ देने वाले चीन से भारत को सारे साझे तोड़ लेने के लिए भारतीय परिदृश्‍य मचल पड़ा है। ऐसा वाकया सोशल साइट्‌स पर देखने को मिल रहा है। भारत चीनी वस्तुओं का बड़ा केन्द्र है, क्योंकि चीनी वस्तुएं सस्ती होती हैं। 
देश में चीनी वस्तुओं का कारोबार इतना व्यापक है कि त्योहार से पहले वाले कुछ हफ्ते में ही केवल दिल्ली में 1000 करोड़ के उत्पाद बिक चुके हैं। भारत को डब्ल्यूटीओ का सदस्य होने के नाते चीनी वस्तुएं आयात करना आवश्‍यक हो जाता है। चीन और भारत का व्यापारिक साझेदारी 4.6 लाख करोड़ का है, और चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इस कारण भारत को चीन से व्यापारिक साझेदारी खत्म करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
 
भारत में स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण की प्रक्रिया कुंद-सी पड़ गई है। भारत निर्यात की तुलना में 7 गुना ज्यादा माल चीन से आयात करता है। भारत इलेक्ट्रानिक के 32.02, न्यूक्लियर रिएक्टर, बायलर्स और पार्ट्स के 17.01 प्रतिशत, आर्गनिक केमिकल्स 9.83 प्रतिशत फटिलाइजर्स 5.3 प्रतिशत आयात करता है। कृषि और आज के मानव का अहम हिस्सा मोबाइल जब हम चीन से आयात करने पर मजबूर हैं फिर चीन के साथ व्यापार बंद करना उचित नहीं लगता। 
                         
महात्मा गांधी ने कहा था, कि हमें विदेशी वस्तुओं के उपयोग से मुक्त होने की जरूरत है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसा तभी होगा, जब हम खुद अपनी चीजें बनाएंगे। जब मोदी की महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडिया' में भी विदेशी निवेश हो रहा है, फिर बहिष्कार की बात नाकाफी दिखती है। चीन को केवल हम उसके टिकाऊपन के खिलाफ मात दे सकते हैं। त्योहारों के सीजन में चीनी झालरों और पटाखों के इस्तेमाल न करने से केवल हम बहिष्कार की मुहिम नहीं चला सकते हैं। 
 
भारत वर्तमान में चीन से आयरन और स्टील 5.82 प्रतिशत, प्लास्टिक और उससे बनी चीजें 2.74 प्रतिशत, फोटोग्राफी उपकरण 2.09 प्रतिशत, बोट्‌स 2.05 प्रतिशत, आयरन व स्टील से बनी चीजें 1.92 प्रतिशत और रेलवे के अलावा अन्य वाहनों के 1.81 प्रतिशत पुर्जे खरीदता है। भारत विगत वर्षों से सौन्दर्य प्रसाधन, रक्षा उपकरण के सामान से लेकर यात्रा-सुविधा के साधन जैसे रेल, मोटर-गाड़ी आदि के लगभग सभी पाट्‌र्स चीन से ही आयात करता है, फिर चीन की वस्तुओं के आयात पर बात करना बेकूफी भरी समझ में आती है। देश का बुनियादी ढांचा कृषि जब अभी चीन के यंत्रों और फटिलाइजर्स से होती है, तब तक चीनी सामान का बहिष्कार किस हद तक जायज कहा जा सकता है। 
 
चीन भारत के लिए ही नहीं दुनिया के बड़े ब्रांडस का मैन्युफेक्चरिंग हब बन चुका है। नामीगिरामी कम्पनियों के ज्यादातर उपकरण चीन से ही निर्मित होते हैं। चीनी उत्पादों के दाम सस्ते होने के कारण भारत के बहुत सारे उत्पादक वर्तमान में केवल और केवल ट्रेडर्स बनकर रह गए हैं। दरअसल दिक्कत यह है कि जितने मूल्य में भारत में उत्पाद बनता है, उससे कम दाम में वह 'मेक इन चाइना' के ठप्पे के साथ बाजार में आ जाता है। अगर बात की जाए तो प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था समतुल्य नहीं रहती है। अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता रहता है। अगर नजर डालें तो हमें पता चलेगा, कि 1960 और 70 के दशक में जापान विश्‍व बाजार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर चुका था। इसके बाद 80 का दशक कोरिया का रहा। उसने दिन दोगुनी, रात चोगुनी उन्नति की और विश्‍व के लिए बाजार बनकर सामने आया। 
 
इसके बाद चीन ने विश्‍व ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया पर कब्जा जमाया, और अपनी वस्तुएं बेच रहा है। अब अगर भारत, पाकिस्तान के साथ चीन को जवाब देने को तत्पर नजर आ रहा है, तो उसे चीन को उसके पायदान से बेदखल करना होगा, इसके लिए भारत को अपने उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाना होगा। चीन के सामान गुणवत्ता और टिकाऊपन के क्षेत्र में कमजोर होते हैं, इस क्षेत्र में अच्छा काम करके भारत अपना स्थान बना सकता है। अगर लंबे समय के गुणवत्तापूर्ण सामान की बात करेंगे तो जर्मनी का नाम आएगा। जर्मन मशीनरी का अभी तक कोई सानी नहीं है। चीन ने भले ही सस्ते सामान बनाकर विश्‍व बाजार में स्थान बना लिया है, लेकिन गुणवत्ता के मामले में बहुत पीछे है। भारत को इस ओर ध्यान देना चाहिए। 
       
भारत, चीन के माल का बहिष्कार नहीं कर सकता, क्योंकि व्यापार भावनाओं पर नहीं होते, सस्ते उत्पादों और मुनाफों पर टिके होते हैं। वैश्विक दौर में किसी भी देश के लिए किसी अन्य देश के उत्पाद पर रोक लगा पाना संभव नहीं है। पिछले वर्ष ही मोदी सरकार ने चीन के साथ 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार समझौता किया है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री के 90 प्रतिशत कच्चे माल के लिए भारत चीन पर ही निर्भर है। इस तरह अगर चीन से रिश्‍ते बिगड़ते हैं, तो जरूरी दवा के लिए कच्चा माल की उपलब्धता प्रभावित हो जाएगी। 
 
जिस तरह का उग्र राष्ट्रवाद भारत में चीन से व्यापारिक संबंध तोड़ने की बात कर रहा है, चीन भी अपने हित के लिए कर सकता है। भारत को पहले अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी, जिससे चीन की बराबरी की जा सके। जब तक भारत मूलभूत और देश की व्यवस्था के लिए नितांत आवश्‍यक चीजों के लिए चीन पर निर्भर रहेगा। भारत दीपावली की झालरों, पटाखों के सामान पर प्रतिबंध लगाकर सम्पूर्ण व्यापार बंद नहीं कर सकता है। अगर चीन को पाकिस्‍तान प्रेम की सजा सुनाना है, वह भी व्यापार बंद करके, तो इसके लिए जरूरी बुनियादी स्तर पर उद्योग-धंधों को विकसित करना होगा। स्वदेशी पर बल देना होगा।