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Written By विभूति शर्मा
Last Updated : सोमवार, 17 जुलाई 2017 (15:03 IST)

पहली बार भाजपा का राष्ट्रपति

पहली बार भाजपा का राष्ट्रपति - bjp President Ramnath Kovind
अभी तक राष्ट्रपति पद को जाति भेद में नहीं घसीटा गया था, लेकिन इस बार राजनीतिज्ञों ने इस पद के लिए जातिगत समीकरण की हवा फैला कर पद की गरिमा धूमिल कर दी। चुनाव में दलितों के वोट बैंक पर कब्जा करने की नीयत से दलित कार्ड खेला गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि दलितों के सबसे बड़े हितैषी वे ही हैं। शुरुआत मोदी सरकार की ओर से की गई और बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को दलित प्रत्याशी कहकर मैदान में उतारा गया। विपक्ष इस चाल में उलझ गया और तोड़ के रूप में उसने भी दलित के साथ महिला मीराकुमार को अपना उम्मीदवार चुना। विपक्ष को आशा थी कि मीराकुमार के नाम पर वह मायावती के साथ बिहारी होने के नाते नीतीश कुमार को भी मना लेगा, हालांकि ऐसा हो नहीं सका।
 
देश के संसदीय इतिहास में यह पहला अवसर है जबकि पूर्णतः भारतीय जनता पार्टी के समर्थन वाला राष्ट्रपति बनने जा रहा है। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में एपीजे अब्दुल कलाम के रूप में भाजपा की पसंद का राष्ट्रपति मिला था, लेकिन उसे पार्टी की मजबूरी भी माना जा सकता है, क्योंकि तब भाजपा अपनी दम पर अपने प्रत्याशी को जिताने में सक्षम नहीं थी। परन्तु अब वह ऐसा करने में सक्षम है और नरेंद्र मोदी की उत्तरप्रदेश में दिलाई गई करिश्माई जीत ने उसे और बलशाली बना दिया है। मोदी के अप्रत्याशित दलित कार्ड ने ऐसे लोगों का समर्थन भी दिला दिया जिसकी कल्पना भी पार्टी नहीं कर रही थी।
 
दलित प्रत्याशी के रूप में रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के लिए देकर मोदी ने एक तीर से अनेक निशाने सफलतापूर्वक साधे हैं। कोविंद बिहार के राजयपाल भी रहे हैं, इसलिए बिहारी राजनीति में पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना समर्थन उन्हें तत्काल घोषित कर दिया और राज्य में उनके सहयोगी लालू का राजद तथा सोनिया की कांग्रेस अचंभित होकर एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए। यही नहीं यूपी में बुरी तरह मुंह की खाने वाली मायावती ने भी कह दिया कि यदि विपक्ष इससे अच्छा उम्मीदवार नहीं ला सका तो वे कोविंद को समर्थन देंगी।
 
इस घटनाक्रम के बाद हालांकि कांग्रेस ने भी दलित कार्ड अपनाते हुए पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को विपक्ष का संयुक्त प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और बाजी मोदी सरकार के पक्ष में जा चुकी थी।
 
कोविंद कैसे बन गए मोदी की पसंद : पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से जब-जब भारतीय जनता पार्टी या संघ के भीतरखाने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नामों पर विचार होता था तो एक नाम थावरचंद गहलोत का भी लिया जाता था। माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो गहलोत उनकी पसंद हो सकते हैं। थावर दलित हैं। मध्यप्रदेश से भाजपा के सांसद हैं। राज्यसभा के लिए चुने गए हैं और फिलहाल केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्री हैं।
 
भाजपा की राजनीति का अपना चरित्र है। यहां दलित चेहरे होते हैं पर उतने चर्चित नहीं जितने अगड़े। यह भाजपा के विचार का जातीय विधान जैसा है। फिर भी जो चेहरे हैं, उनमें थावर चंद एक प्रभावी नाम हैं। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि मध्यप्रदेश के इस दलित की जगह मोदी ने कानपुर के एक अन्य दलित चेहरे को अपनी पसंद बना लिया। दरअसल, मोदी राजनीति में अपनी सूची वहां से शुरू करते हैं जहां से लोगों के कयासों की सूची खत्म होती है। जिन नामों पर लोग विचार करते हैं, ऐसा लगता है कि मोदी उन नामों को अपनी सूची से बाहर करते चले जाते हैं। मोदी को शायद इस खेल में मज़ा भी आता है और इस तरह वो अपने चयन को सबसे अलग, सबसे हटकर साबित भी करते रहते हैं।
 
रामनाथ कोविंद स्वयंसेवक हैं। भाजपा के पुराने नेता हैं। संघ और भाजपा में कई प्रमुख पदों पर रहे हैं। सांसद रहे हैं। एससी-एसटी प्रकोष्ठ के प्रमुख का दायित्व भी निभाया है और संगठन की मुख्यधारा की ज़िम्मेदारियां भी। वो कोरी समाज से आने वाले दलित हैं। यानी उत्तर प्रदेश में दलितों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी। पहली जाटव और दूसरी पासी है। कोविंद पढ़े-लिखे हैं। भाषाओं का ज्ञान है। दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता के तौर पर उनका एक अच्छा खासा अनुभव है। सरकारी वकील भी रहे हैं। राष्ट्रपति पद के लिए जिस तरह की मूलभूत आवश्यकताएं समझी जाती हैं, वो उनमें हैं और मृदुभाषी भी हैं। कम बोलना और शांति के साथ काम करना कोविंद की शैली है।
 
अगर योगी को छोड़ दें तो मोदी ऐसे लोगों को ज़्यादा पसंद करते आए हैं जो बोलें कम और सुनें ज़्यादा। शांत लोग मोदी को पसंद आते हैं क्योंकि वो समानांतर स्वरों को तरजीह देने में यकीन नहीं रखते। संघ भी इस नाम से खुश है क्योंकि कोविंद की जड़ें संघ में निहित हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कोविंद उत्तर प्रदेश से आते हैं और मोदी के लिए राजनीतिक रूप से मध्यप्रदेश के दलित की जगह उत्तर प्रदेश के दलित को चुनना हर लिहाज से फायदेमंद है। कोविंद के साथ नीतीश का तालमेल भी अच्छा है। उत्तर प्रदेश से होना और बिहार का राज्यपाल होना दोनों राज्यों में सीधे एक संदेश भेजता है। यह संदेश मध्यप्रदेश से जाता तो शायद इतना प्रभावी न होता। मोदी राजनीति में जिन जगहों पर अपने लिए अधिक संभावना देख रहे हैं उनमें मध्यप्रदेश से कहीं आगे उत्तर प्रदेश का नाम है। बिहार मोदी के लिए एक अभेद्य दुर्ग है और वहां भी एक मज़बूत संदेश भेजने में मोदी सफल रहे। थावरचंद की जगह कोविंद का चयन मोदी के हक में ज्यादा बेहतर और उचित फैसला साबित होगा।
 
आडवाणी-सुमित्रा के नाम भी आए : राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर ज्यों ज्यों चर्चा जोर पकड़ रही त्यों त्यों नामों की श्रृंखला भी सामने आ रही थी। सबसे ऊपर लालकृष्ण आडवाणी का नाम लिया जा रहा था। आडवाणी को राष्ट्रपति पद का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बताने वाले पोस्टर भी सामने आए। राजधानी दिल्ली में कई जगह लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने की मांग के पोस्टर लगाए गए। ये पोस्टर अशोका रोड स्थित भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय के बाहर भी लगाए गए थे. हालांकि, यहां इन पोस्टरों को फाड़ दिया गया और पार्टी ऑफिस के बाहर की फेंक दिया गया। राजधानी में दूसरी कई जगह भी ये पोस्टर लगे नजर आए। इन पोस्टर्स में लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बताया गया है।
 
पोस्टर में लिखा गया, ''भारतीय जनता पार्टी के जनक व लौह पुरुष तथा भारत की राष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ नेता आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी राष्ट्रपति पद के सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। ऐसी भी खबरें आती रही हैं कि बीजेपी का एक खेमा आडवाणी को ही राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहता है। हालांकि, बीजेपी ने कभी किसी नाम का ऐलान नहीं किया, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी, सुमित्रा महाजन, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज नेताओं के नामों को लेकर काफी चर्चा चली।
 
सुमित्रा महाजन और झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम काफी दिनों तक चर्चा में रहा। नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सुमित्रा महाजन को पूरा एक हफ्ता दिल्ली नहीं छोड़ने के निर्देश दिए। पीएम मोदी और अमित शाह के सुमित्रा महाजन को दिए गए निर्देशों के मायने सियासी हल्कों में यह लगाए गए कि सुमित्रा महाजन ने बाजी मार ली है। इंदौर से लोकसभा सदस्य सुमित्रा महाजन अगर राष्ट्रपति बनतीं, तो यह दूसरी बार प्रदेश को गौरव प्राप्त होता। इससे पहले राजधानी भोपाल के डॉ. शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति रह चुके हैं।
 
प्रत्याशी चयन के औपचारिक दौर में अपने उम्मीदवार पर सर्वसम्मति बनाने को लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा गठित पार्टी की तीन सदस्यीय कमेटी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेताओं से बातचीत की। कमेटी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीतराम येचुरी से भी मिली।
 
कांग्रेस से मीरा कुमार : मीरा कुमार बड़े दलित नेता और भूतपूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं। वो विदेश सेवा की अधिकारी भी रह चुकी हैं। बिहार के सासाराम से जीतने वालीं मीरा कुमार 15वीं लोकसभा की अध्यक्ष रह चुकी हैं। उन्हें देश की पहली महिला स्पीकर होने का गौरव हासिल है। मीरा कुमार का जन्म बिहार के भोजपुर जिले में हुआ है। वह देश के पूर्व प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं। मीरा कॉन्वेन्ट शिक्षित हैं। उनकी शिक्षा देहरादून, जयपुर और दिल्ली में हुई है।

उन्होंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज और मिरांडा हाउस से एमए और एलएलबी किया है।1970 में उनका चयन भारतीय विदेश सेवा के लिए हुआ। इसके बाद उन्होंने कई देशों में अपनी सेवा दी है। वो यूपीए-1 की मनमोहन सिंह सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रह चुकी हैं। वो 8वीं, 11वीं, 12वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा की सदस्य रह चुकी हैं।
 
60% वोट समर्थन मिलने से जीत तय : शिवसेना तथा जम्मू एवं कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सहित राजग के पास सांसदों व विधायकों के इलेक्टोरल कॉलेज का 48.93 फीसदी समर्थन है। गठबंधन से बाहर की पार्टियों जैसे तेलंगाना राष्ट्रसमिति (2 फीसदी), ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कड़गम (5.39 फीसदी), वाईएसआर कांग्रेस (1.53 फीसदी), बीजू जनता दल (2.99 फीसदी), जनता दल (युनाइटेड) के 1.91 फीसदी मतों को मिलाकर राजग आधा मत आसानी से प्राप्त कर लेगा इसलिए 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में कोविंद की जीत तय मानी जा रही है। वोटिंग सीक्रेट बैलेट पेपर के जरिए होगी। वहीं बैलेट पेपर पर लिखने के लिए खास तरह के पेन का इस्तेमाल किया जाएगा। अगर इस पेन के सिवा किसी दूसरे पेन से लिखा जाएगा तो वह वोट रद्द माना जाएगा।
 
रामनाथ कोविंद के नाम पर नेताओं की प्रतिक्रिया 
-तेलंगाना के सीएम और टीआरएस चीफ केसी राव ने रामनाथ कोविंद का समर्थन करने का ऐलान किया है।
- आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि टीडीपी NDA का पूरा समर्थन करेगी।
-शरद यादव ने कहा कि विपक्षी दलों की बैठक में नाम पर विचार करेंगे। NDA ने जो नाम दिया है उस पर भी बात करेंगे।
-शिवसेना ने कहा कि अमित शाह जी ने उद्धव जी को रामनाथ कोविंद का नाम बताया था। हम कुछ दिनों में समर्थन पर निर्णय करेंगे।  
-कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि एनडीए द्वारा चुने गए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर कांग्रेस को कुछ नहीं कहना है। कांग्रेस ने कहा कि सभी विपक्षी दल साथ बैठकर राष्ट्रपति उम्मीदवार पर फैसला लेंगे।
- मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि जो लोग रामनाथ कोविंद का सहयोग नहीं करेंगे उन्हें दलित विरोधी माना जाएगा।
-सीपीआई(एम) के नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि रामनाथ कोविंद