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Written By विशेष प्रतिनिधि
Last Modified: शुक्रवार, 23 नवंबर 2018 (15:41 IST)

सत्ता की चाबी मालवा ने बढ़ाई भाजपा की टेंशन, गढ़ बचाने के लिए झोंकेगी पूरी ताकत

सत्ता की चाबी मालवा ने बढ़ाई भाजपा की टेंशन, गढ़ बचाने के लिए झोंकेगी पूरी ताकत - Malwa increased tention of BJP
भोपाल। मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में कहा जाता है कि जिसने मालवा को जीत लिया समझो उस पार्टी ने मध्यप्रदेश को जीत लिया। यानी चुनाव में जो पार्टी मालवा में अपनी विजय पताका लहराती है, उसकी सूबे में सरकार बन जाती है। 
 
अगर पिछले चुनाव के आंकड़ों पर भी नजर डालें तो ये बात सौ प्रतिशत सही बैठती है। अगर 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने मालवा और निमाड़ की कुल 67 सीटों पर जीत हासिल की थी, वहीं कांग्रेस पिछले चुनाव में मात्र दस सीटों पर ही सिमट गई थी। अगर बात करें बीते पांच सालों की तो इंदौर और उज्जैन संभाग में आने वाले इस इलाके का माहौल काफी बदल गया है। 
 
पिछले पांच सालों में मालवा में भाजपा को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। शिवराज सरकार के सामने पिछले पांच सालों में सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र मालवा में आने वाला मंदसौर जिला था। किसान आंदोलन ने इस इलाके में भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में काफी सेंध लगाई है, वहीं कांग्रेस ने पिछले पांच सालों में अपना पूरा ध्यान मालवा पर केंद्रित कर लिया था।
 
मंदसौर गोलीकांड की बरसी पर मंदसौर पहुंचे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर से एक तरह से  चुनावी शंखनाद करते हुए कर्ज माफी का 'ट्रंप कार्ड' चल दिया था, जिसकी काट आज तक भाजपा नहीं निकाल पाई। वहीं भाजपा और संघ की सर्वे रिपोर्ट में मालवा में पार्टी की स्थिति सही नही बताई जा रही है। 
 
संघ ने पार्टी को चेताया है कि इस बार भाजपा को सबसे अधिक नुकसान मालवा में होने की संभावना है। वहीं पार्टी अब चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में अपना गढ़ बचाने के लिए पूरी ताकत झोंकने जा रही है। 24 नवंबर को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान आंदोलन के केंद्र रहे मंदसौर में चुनावी रैली को संबोधित करेंगे, वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव प्रचार के आखिरी दिन नीमच, रतलाम में जनसभाएं और इंदौर में विधानसभा चुनाव का आखिरी रोड शो करेंगे। 
 
मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी चुनाव प्रचार में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं। ऐसे में देखना होगा कि चुनाव के आखिरी दौर में भाजपा ताबड़तोड़ दिग्गज नेताओं के दौरे से चुनावी मूड को अपनी तरफ कर पाएगी या मालवा से पार्टी को इस बार नुकसान उठाना पड़ सकता है। 
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