कुल्लू-मनाली : हिमाचल का मनोहारी पर्यटन स्थल
भारत में अत्यंत मनोरम, मनोहारी और चमत्कारी परिदृश्य यदि कहीं देखने को मिलते हैं तो वह स्थान हिमाचल प्रदेश के अलवा और कोई हो ही नहीं सकता। पर्यटक अगर घूमने के लिए कहीं जाने के बारे में सोचता है तो सबसे पहले उसके जेहन में जो नाम उभरता है वह है कुल्लू-मनाली। सैलानियों का स्वर्ग कहलाने वाली इस जगह में वे सारी खूबियां हैं जो किसी भी पर्यटन स्थल में होनी चाहिए। यहां के हिमाच्छादित पर्वत शिखर आसमान से बातें करते हैं तो इसकी हरी-भरी घाटियां नीचे ही नीचे चलती जाती हैं। कल-कल बहती निर्मल नदियां तेज चाल से जब चलती बढ़ती हैं तो आपके जीवन की सारी थकान हर लेती हैं। झीलें को देखना किसी सम्मोहन से कम नहीं है। आप घंटों इनके किनारे बैठकर सुकून पा सकते हैं।
इस अंचल से कई गाथाएं, दंतकथाएं जुड़ी हुई हैं। यहां आप नजारे देखें या फिर पर्वतारोहण करें या पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग, बर्फ की चोटी पर स्केटिंग या फिर गोल्फ का आनंद लें हिमाचलप्रदेश बाहें फैलाकर आपका स्वागत करने के लिए तैयार है।देवताओं की घाटी कुल्लू : - कुल्लू की घाटी को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। बसंत के मौसम में तो कुल्लू जैसी जगह लाजवाब हो जाती है। यहां जब गुलाबी और सफेद फूल चारों तरफ खिल जाते हैं तो जो दृश्य उपस्थित होता है उसको शब्दों में बयान करना कठिन है। ढलानों के ऊपर की तरफ जहां तक नजर दौड़ाएं चटख रोडेन्ड्रॉन फूलों के रंग सब तरफ बिखरे दिखाई देते हैं। जब शरद ऋतु आती है तो नीला आसमान एकदम निर्मल दिखाई देने लगता है। दिसंबर महीने तक हरियाली चली जाती है, लेकिन अब भी जंगल में लंबे-चौड़े देवदार के ऊंचे पेड़ सिर उठाए खड़े रहते हैं। सर्दियां आने पर पहाड़ों की ढलानों पर बर्फ की सफेद चादर-सी बिछ जाती है। इस बात में कोई शक नहीं कि यह पश्चिमी हिमालय की सबसे खुशनुमा जगह है। इसे मानव बस्तियों की अंतिम सीमा मानने के कारण इसे प्राचीन समय में कुलांतपीठ भी कहा जाता था। लेकिन महाकाव्यों-रामायण, महाभारत और विष्णु पुराण में इसका उल्लेख इसी नाम से हुआ है।