गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By गायत्री शर्मा

परिवेश से ग्रहण करते हैं संस्कार

हम देते हैं बच्चों पर ध्यान

परिवेश से ग्रहण करते हैं संस्कार -
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बच्चों के जीवन की पहली पाठशाला उसके माता-पिता हैं, जो बच्चों को अपने परिवार के संस्कार विरासत में देते हैं, ताकि उनका बच्चा बड़ा होकर अपने परिवार का नाम रोशन करे। वबच्चों रूपी काची माटी को अपने संस्कारों रूपी हाथों से सही आकार देने की कोशिश करते हैं परंतु कभी-कभी संस्कारवान बच्चे रूपी यह घड़ा बुरी संगति रूपी दबाव के लगने से सही आकार लेने से पहले ही टूटकर बिखर जाता है।

पालकों का जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार व बच्चों के प्रति अनदेखी उनके बच्चों को शैतान, कुसंस्कारी और बिगड़ैल बना देती है। अब ऐसे बच्चों को विद्यालय में भेजकर माता-पिता अपनी जिम्मेदारियों से पूर्णत: पल्ला झाड़ते हुए यह सोचते हैं कि शिक्षक ही उनके बच्चों को संस्कारी बनाएँगे।

'बच्चों को संस्कारी बनाने की जिम्मेदारी किसकी है?' इस विषय पर हमने इस विषय पर कई पालकों से चर्चा की। उनके विचार कुछ इस प्रकार थे -

  माता-पिता बच्चों रूपी काची माटी को अपने संस्कारों रूपी हाथों से सही आकार देने की कोशिश करते हैं परंतु कभी-कभी संस्कारवान बच्चे रूपी यह घड़ा बुरी संगति रूपी दबाव के लगने से सही आकार लेने से पहले ही टूटकर बिखर जाता है।      
तनुजा शर्मा (गृहिणी) :- मेरी बच्ची जब तक घर पर रहती थी। तब तक वह बड़ी ही संस्कारी थी लेकिन स्कूल की हवा लगते ही उसका व्यवहार बदल गया है। अपनी सहेलियों की बुरी संगति ने उसे गुस्सैल, चिड़चिड़ा व कुसंस्कारी बना दिया है। अब उसे बड़े-छोटे का कोई ख्याल नहीं रहता है। हर छोटी-बड़ी बात पर वो मुझे भी उटपटांग कहने से नहीं चूकती है।

विकास लोढ़ा (बैंक कर्मी) :- मैं दो बच्चों का पिता हूँ। मुझे गर्व है कि मेरे बच्चे संस्कारी व आज्ञाकारी हैं। हम दोनों पति-पत्नी तो नौकरीपेशा हैं इसलिए बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। मेरे बच्चे एक अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं। उनके शिक्षक इतने अच्छे हैं कि वो बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अनुशासन का पाठ भी पढाते हैं।
अरूण श्रीवास्तव (व्यवसायी) :- जब से मेरे बेटे का दाखिला दूसरे स्कूल में हुआ है। तब से वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता है और दिन-भर दोस्तों के साथ फोन पर गप्पे लड़ाता है। उसके स्कूल में तो शिक्षकों को यह भान ही नहीं रहता है कि बच्चा पढ़ रहा है या नहीं। बस रिजल्ट आने पर हमें बुलाकर वो हमें खरी-खोटी सुनाते हैं और अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ लेते हैं।

शीला मेहरा (गृहिणी) :- बच्चों को संस्कारी बनाने की जिम्मेदारी जितनी माँ-बाप की ही है, उतनी ही शिक्षकों की भी। हम यदि बच्चों को घर पर अच्छा माहौल नहीं देंगे तो हो सकता है बच्चे संस्कारों के साँचे में नहीं ढल पाएँ।

निष्कर्ष के रूप में कहें तो बच्चों को अपने परिवार से संस्कार विरासत में मिलते हैं, वो जो कुछ सीखता है अपने आसपास के परिवेश व अपने माता-पिता से सीखता है। यदि उसके माता-पिता स्वयं ही अपने बड़ों का आदर नहीं करते हैं तो वह अपने बच्चों से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं?