शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By WD

धन्यवाद विनम्रता का प्रतीक

धन्यवाद विनम्रता का प्रतीक -
- भारती पंडित

NDND
"अनधा" बंटी के स्कूल से फोन है" मोहित की आवाज सुनते ही अनधा के हाथ-पाँव फूल गए थे। बंटी ने फिर कोई नई शरारत की होगी-तभी काँपते हाथों से उसने फोन थामा, बंटी की टीचर का फोन था। बोली "आज बंटी ने एक अच्छा काम किया है। उसके साथी के हाथ में चोट आई थी। उसने अपना काम समाप्त करके उसकी मदद की और कार्य पूर्ण कराया...।"

अनधा को बड़ी राहत मिली और साथ ही मन में यह भाव भी उभरा कि बंटी को शैतान बच्चे का तमगा नहीं मिला है वरन उसके व्यवहार की अच्छाइयों पर भी स्कूल ध्यान देता है और उसे प्रोत्साहित भी करता है।

पिछले दिनों एक प्रसिद्ध रेस्तराँ में मुख्य द्वार पर एक घंटी लगी हुई देखी, जिसके नीचे लिखा है "यदि आप हमारी सेवाओं से संतुष्ट हैं तो यह घंटी बजाइए।" मेरे पड़ोस में रहने वाली शर्मा आंटी हमेशा वहाँ जाती हैं और बाकायदा घंटी बजाकर आती हैं। उनका ठोस तर्क है कि यदि किसी के अच्छे व्यवहार या कार्य की मैं तारीफ नहीं कर सकती तो उसकी गलती पर उँगली उठाने का अधिकार भी मुझे नहीं मिल सकता।

ऊपर दिए गए दोनों उदाहरण कुछ सोचने को मजबूर करते हैं। हम अक्सर शिकायतें करते हैं रिश्तों में दूरी की, प्यार में कमी की, कार्यक्षेत्र में दिक्कतों की, पर क्या इन सब परेशानियों का एक कारण प्रशंसा, धन्यवाद जैसे शब्दों का हमारे कोश से लुप्त हो जाना नहीं है?

मेरे पास सुविधाएँ हैं, मेरे पास सामर्थ्य है, इन शब्दों का अहं जैसे-जैसे हम पर हावी होता जाता है, दूसरों द्वारा हमारे प्रति किए गए कार्यों की ओर से हम उदासीन होते जाते हैं। शुक्रिया का भाव खोता जा रहा है, जिससे दूरी आना स्वाभाविक है। मान लीजिए आपकी गैस एजेंसी का हॉकर आपके घर सिलेंडर लेकर आता है... माना कि सिलेंडर पहुँचाना, जाँचना, लगाना उसकी ड्यूटी है मगर इसके लिए यदि उसे सिर्फ धन्यवाद भैया आपने हमारे लिए इतना किया, कह दिया जाए तो अगली बार आपका कार्य वह अधिक तत्परता से करेगा।

घर में तो ऐसे उदाहरण अक्सर देखने को मिल जाते हैं- बच्चे की शैतानी, बद्तमीजी जितनी पहचानी जाती है, उसके लिए उसे डाँटा जाता है, क्या उसके स्वभाव की अच्छाइयाँ पहचानकर उसे उतनी ही तारीफ दी जाती है? घर में पत्नी पूरे मनोयोग से भोजन तैयार करती है, घर का ध्यान रखती है, जिस गति से उसके कार्यों में मीन-मेख निकाले जाते हैं, क्या उसी तरह उसके परिश्रम की कभी सराहना होती है?

मान लीजिए आप बीमार हैं और आपके घर के सदस्य उस दौरान आपकी बहुत सेवा करते हैं तो क्या ठीक होने के बाद आप उनके प्रति एहसानमंद रहते हैं? शायद नहीं क्योंकि यहाँ हमारा अहं आड़े आ जाता है। "ये तो उनका कर्तव्य है और इसकी तारीफ क्या करना।" कहकर हम मुक्त जरूर हो जाएँ, मगर ऐसा व्यवहार दूरी बढ़ाने का ही काम करेगा।

कार्यक्षेत्र की बात करें तो अपना कार्य पूर्ण करना प्रत्येक कर्मचारी की "पार्ट ऑफ ड्यूटी" है, परंतु कुशलता से किए गए कार्य को यदि बॉस की सराहना मिल जाए तो क्या वह कर्मचारी दुगने जोश से काम करने के लिए लालायित नहीं रहेगा?

लोक व्यवहार का सामान्य सिद्धांत भी यही सिखाता है कि प्रशंसा से आलोचना की तरफ बढ़ें। आलोचना भी ऐसी जो दिल को ठेस न पहुँचाए वरन सुधार का मार्ग प्रशस्त करे। याद रखना चाहिए कि सतत निंदा किसी के व्यवहार में सुधार नहीं ला सकती वरन उसे पलायनवादी रुख अपनाने को मजबूर कर सकती है।

इसके विपरीत ढेरों बुराइयों में एक अच्छाई पहचानकर उसकी प्रशंसा करना जीवन के रुख को बदल सकता है। ऐसा व्यक्ति जो अच्छाई पहचानकर उसकी तारीफ न कर सके दूसरे के कार्यों का शुक्रिया अदा न कर सके तो उसे किसी की निंदा या आलोचना करने का भी कोई अधिकार नहीं होता।

ऐसे व्यक्ति जो स्वयं नकारात्मक विचारों से भरे रहते हैं और निंदा में ही सुख ढूँढते हैं उनसे निकलने वाली अदृश्य तरंगें नकारात्मक होती हैं। जिससे लोग उनसे दूरी बनाना पसंद करते हैं। इसके विपरीत सकारात्मक, खुशमिजाज, तारीफ पसंद लोगों के साथ हर कोई रहना चाहता है।

अतः यदि आपको लगाता है कि आप अपनों से दूर होते जा रहे हैं, अकेले पड़ रहे हैं तो आत्मनिरीक्षण करें अपने आपका और धन्यवाद, शुक्रिया, अच्छा है, खुशी हुई जैसे शब्दों को झटपट अपने शब्दकोश में शामिल करें...और जीत लें जहाँ को...।