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Written By स्मृति आदित्य

ओम जी का 'रामलाल' अनाथ हो गया

हास्य-कवि ओम व्यास 'ओम' का देहावसान

om vyas om | ओम जी का ''रामलाल'' अनाथ हो गया
कवि ओम व्यास ' ओम' हम सबकी हजार-हजार दुआओं के बाद भी नहीं रहे। प्रदेश के सितारें, उज्जयिन‍ी का गौरव, मोहल्ले की मुस्कुराहट और काव्य सभाओं का आधार स्तंभ ओम जी जैसा सच्चा और प्यारा इंसान चला गया इस पर विश्वास करना वाकई मुश्किल है।

  आज मेरे शहर का सच्चा सपूत मौन हो गया। आज कालिदास की धरा पर अगर बादल जम कर बरसें तो आश्चर्य मत कीजिएगा। उन्हें बरसने दीजिएगा। आज कौन काव्य-प्रेमी खुद पर नियंत्रण कर पाएगा? आज ओम जी का 'रामलाल' अनाथ हो गया। आज देश का हर काव्य मंच वीरान हो गया।      
विगत दिनों 8 जून को हुई दुर्घटना में देश के तीन होनहार कवि काल-कवलित हो गए। विदिशा के बेतवा महोत्सव में आयोजित कवि सम्मेलन से लौटते हुए यह दुर्घटना हुई थी। ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड़ सिंह गुर्जर इसमें चल बसें। व्यास जी जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते रहे। हम सभी मानसिक रूप से इस खबर को लेकर आशंकित थे कि यह मनहूस खबर दस्तक दे सकती है।

खुद को इस खबर के लिए तैयार नहीं कर सके थे कि आज इस सूचना ने काव्यप्रेमियों के मन तोड़ दिए। जब भी इस खबर को लेकर डरते, मन के ही किसी कोने से विश्वास की कोंपल उठ जाती कि उन्हें होश आ गया है, अब कुछ नहीं होगा। कुछ दिनों के आराम के बाद वे फिर अपनी रसीली, चुटीली, चुस्त और गुदगुदाती कविताओं के साथ मंच पर मनभावन उपस्थिति देंगे। लेकिन काल के क्रूर कानों तक हमारी आस और आवाज नहीं पहुँची।

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दिल्ली के अपोलो अस्पताल में कल हास्य-जगत का रोशन सितारा डूब गया। आज याद आ रहे हैं उनके तिलक, चोटी, रूद्राक्ष और चश्मा। याद आ रही हैं उनकी पिता और माता पर लिखी कविता, याद आ रहा है उनका सदाबहार कॉमन कैरेक्टर रामलाल, और याद आ रहा है उज्जैन के प्रति उनका अगाध स्नेह। उनकी पिता पर लिखी कविता की पंक्तियाँ हैं -

पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है,
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है।

क्या ये गहन गंभीर उदगार सिर्फ हास्य कवि के हैं? वास्तव में उस अदभुत प्रतिभाशाली कलाकार को सही मायनों में पहचाना ही नहीं गया। या कहें कि उन्होंने स्वयं अपनी संवेदनशीलता और मासुमियत, भावनाओं की गहराई और कोमलता को हास्य का झीना आवरण पहना रखा था। गाहे बेगाहे उनके भीतर उमड़ते कलकल-छलछल करते अनुभूतियों के झरने मंच से काव्य-प्रेमियों तक बह कर चले आते और यकीन मानिए कि महीनों तक तृप्त करने की क्षमता रखते।

माँ पर लिखी उनकी कविता ने कितने ही पत्थर दिलों को पिघलाया था। जिन्होंने उन्हें प्रत्यक्ष सुना वे नहीं कह सकते कि कविता को सुनते हुए उनकी पलकें कोरी थी। उनके एक-एक शब्द में भीतर तक भीगों देने वाली ताकत थी।

नम आँखों से इन पंक्तियों को पढ़ें :

माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ, माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,

माँ, माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ, माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,

माँ, माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कंधों का नाम है,
माँ, माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,

माँ, माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ, माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,

माँ, माँ चुल्हा-धुँआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ, माँ ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है।

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इस भावप्रवण रचना के बाद कुछ नहीं बचता उस अप्रतिम कवि के प्रति कुछ कहने को। उनका काव्य सहज सक्षम है यह अहसास दिलाने में कि माँ शारदा का कितना मधुर आशीर्वाद था उनकी लेखनी और वाणी को।

आज मेरे शहर का सच्चा सपूत मौन हो गया। आज कालिदास की धरा पर अगर बादल जम कर बरसें तो आश्चर्य मत कीजिएगा। उन्हें बरसने दीजिएगा। आज कौन काव्य-प्रेमी खुद पर नियंत्रण कर पाएगा? आज ओम जी का 'रामलाल' अनाथ हो गया। आज देश का हर काव्य मंच वीरान हो गया।