जब भी मुझको तेरी यादों ने बुलाया
ग़ज़ल
रोहित जैन कब जाने मोहब्बत में ये मक़ाम आ गयाख़ुदा की जगह लब पे तेरा नाम आ गयाइसको अदा कहूँ के ये एहसान है तेरातर्क़े वफ़ा के बाद भी सलाम आ गयाअब कम से कम उसको मेरे मिलने का डर नहींमर के ही सही मैं किसी के काम आ गयासोचा था सुबह, अब नहीं जाना है उसकी ओरलो फिर से वहीं लेके अपनी शाम आ गयाहर बार जब मुझको लगा के भूल गया हूँजाने कहाँ से यक-ब-यक क़लाम आ गयाजब भी कभी मुझको तेरी यादों ने बुलायादिल हाथ में लेके तेरा ग़ुलाम आ गया'
रोहित' को भेजते हैं वो नामा-ए-शौक़े इश्क़लगता है मुझे मौत का पयाम आ गया।