प्यार को प्यार कहूँ ...
ग़ज़ल
रोहित जैन ज़िंदगी ख़ार कहूँ फूल कहूँ कहूँ मैं शाद या मलूल कहूँये जो चुभते हैं मेरी आँखों मेंइन्हें मैं ख्वाब कहूँ, धूल कहूँप्यार ने ग़म दिए रुसवाइयाँ दींप्यार को प्यार कहूँ, भूल कहूँकोई शय ऐसी भी हो मेरे मौलामैं जिसको वाक़ई क़बूल कहूँइनकी वजह से खो दिया सब कुछजिन्हें मैं आज भी उसूल कहूँकुछ तो ऐसा भी मयस्सर होताके जिस से प्यार को वसूल कहूँमुझे पता है वो भी इन्सां हैंजिन्हें मैं प्यार में रसूल कहूँइतनी दानाई दे दो 'रोहित' कोकोई भी बात ना फ़जूल कहूँ।