माँ की याद दिला रही वह टूटी संदूक
सरल दोहे
श्रीकृष्ण द्विवेदी 'द्विजेश' फटे पुराने वस्त्र ले, घर में बैठी मूक। माँ की याद दिला रही, वह टूटी संदूक।। बेटे ने जब ये कहा, क्या है मेरे आप, मन मसोस कर रह गया, सुनकर बूढ़ा बाप।। लिखे वक्त ने पेट पर, जब रोटी के गीत। गाँव-ठाँव छूटे सभी, वे बचपन, वे मीत।। नमक और रोटी सही, भले ना चावल दाल। मिलती कहीं अतीत की, वह ममता की थाल।। पूछ रही घर गाँव का, पता संजोए राज। छली गई कोई लगी, शकुन्तला फिर आज।। शीशे-पारे से जहाँ, हैं प्रगाढ़ संबंध। मुश्किल पढ़ पाना वहाँ, मुस्कानों के छंद।। दिया फागुनी धूप का, सूरज ने विश्वास। दहक उठे अनुराग के, मानस बीच पलाश।। मानस के आँगन जले, जब सुधियों के दीप। स्वाति बूँद से भर गई, नयन सिंधु की सीप।।