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... तो एक चॉकलेट कम कर दो

Story Nanhee dunia | ... तो एक चॉकलेट कम कर दो
आलोक अग्रवाल

जाता हूँ माँ।" कालू ने घर से निकलते हुए माँ से कहा।

"अच्छा बेटा, अपना ख्याल रखना।" माँ ने खाट पर पड़े-पड़े खाँसते हुए कहा।

कालू बदरी के घर पहुँचा। फिर दोनों रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए। थोड़ी देर बाद पठानकोट एक्सप्रेस आई। कालू और बदरी दोनों स्लीपर के अलग-अलग डिब्बों में चढ़ गए।

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ट्रेन चलने लगी तो कालू ने अपनी शर्ट उतारी और उसी से डिब्बे का कचरा साफ करते हुए आगे बढ़ने लगा। पिछले दिन कालू बदरी के साथ आया था। उसने देखा कि स्लीपर क्लास के डिब्बे में यात्रियों के बैठने के लिए कई अलग-अलग हिस्से होते हैं। कूड़ा इकट्ठा करते और उसे ढकेलते हुए वह पहले हिस्से में पहुँचा ही था कि एक यात्री ने चिल्लाकर कहा, "चल आगे बढ़। चले आते हैं भीख माँगने। बाप दारू पिए पड़ा होगा कहीं, भेज दिया बच्चे को धँधा करने" आठ साल के कालू का मन सिहर उठा। आज उसका पहला दिन था पैसा माँगने का। उसे याद आया। बाबूजी मजदूरी करते थे। वह, उसकी दो छोटी बहनें रानी और गुड़िया, माँ, बाबूजी सभी अच्छे से रहते थे। दो महीने पहले मजदूरी करते समय बाबूजी मकान की छत गिरने से खतम हो गए। उसके बाद जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। माँ ने जैसे-तैसे दो घरों में झाडू- पोछे का काम संभाला। पिछले चार दिनों से माँ को तेज बुखार, खाँसी है। वह काम पर नहीं जा पा रही है। अब तो घर में खाना बनाने को भी कुछ नहीं बचा है।

तभी कालू को ध्यान आया कि उसके मोहल्ले के दोस्त बदरी ने उसे बताया था कि वह रेल के डिब्बे में कचरा साफ कर पैसा लाता है। बदरी के माँ-बाप बचपन में मर गए थे। वह मौसी के पास रहता है। घर में जब चूल्हा बंद हो गया तो कालू ने बदरी से कहा कि वह भी उसके साथ चलेगा। कल कालू बदरी के साथ रहा और उसने उसे कचरा साफ करते और पैसा माँगते देखा।

आज वह खुद काम कर पैसा माँगने निकला था।
"चल आगे बढ़।" चाय वाले ने कालू को डाँटा।
कालू अगले हिस्से में पहुँचा और बर्थ के नीचे घुसकर अपनी शर्ट से कचरा इकट्ठा करने लगा।

उसे देखकर वहाँ बैठे एक यात्री ने कहा, "लालू ने रेल तो सुधार दी, बस एक यही कमी रह गई है। इन भिखमंगों को और बंद कर देना चाहिए।"

"पर क्या दिक्कत है साहब, कम से कम सस्ते में डिब्बा तो साफ हो जाता है।" दूसरा बोला।
"सस्ता नहीं भाई! बहुत महँगा पड़ता है यह। पूरे चोर होते हैं ये साले।" तीसरे ने पहले का समर्थन करते हुए कहा।
कचरा साफ कर कालू ने जब हाथ आगे बढ़ाया तो उनमें से एक ने एक रुपया देकर कहा, "बस, आगे बढ़।" जैसे कि सबकी तरफ से बहुत बड़ी संपदा दे दी हो।

कालू ने देखा अगले हिस्से में दो छोटे-भाई खूब खुश होकर खिलौने से खेल रहे हैं। बंदर की पूँछ में लगी चाबी को मरोड़ने पर वह पेट पर बँधी ढोलक को जोर-जोर से बजाने लगता। कालू का मन किया कि उसके पास भी खिलौने होते तो कितना मजा आता। वह कई दिनों से अपनी छोटी बहनों को लाल पहिए वाली खिलौने की कार देने की सोच रहा था।

बच्चे कौतूहल से कालू को देख रहे थे। उनके पिताजी ने कालू को कुछ पैसे दिए। कालू आगे बढ़ा तो सामने आइसक्रीम वाला खड़ा था। वहाँ बैठे सज्जन ने पूछा, "कैसे दी आइसक्रीम?"

"बारह रुपए की एक।"

"पाँच दे दो।" कहकर उसने आइसक्रीम ली और पति, पत्नी और तीन बच्चे आइसक्रीम खाने लगे। कालू को याद आया कि पिछले साल मोटी माता के मेले में पिताजी ने उन्हें कुल्फी खिलाई थी।

उस हिस्से को साफ कर उसने पैसे के लिए हाथ बढ़ाया तो वही सज्जन अपनी पत्नी से बोले, "कल रात वाला खाना रखा है न। फेंकने से अच्छा है इसे दे दो।"

और पत्नी ने एक छोटी सी थैली कालू को पकड़ा दी।