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Written By WD

बड़ा नहीं, अच्छा इंसान बनो

बड़ा नहीं, अच्छा इंसान बनो -
आशुतोष गोवारीकर
जन्मदिन - 15 फरवरी

WDWD
दोस्तो, आपकी 26 जनवरी ठीक तरह से मन गई। स्कूल के‍ दिनों में 26 जनवरी और 15 अगस्त का अपना मजा होता है। फिर चाहे वह मुंबई हो या इंदौर या फिर कोई और जगह। मेरा बचपन मुंबई में बीता। यहीं मेरा जन्म हुआ। पिताजी ट्रैफिक पुलिस में अफसर थे। जहाँ हम रहते थे वह जगह है बांद्रा का पाली हिल। यहाँ फिल्म से जुड़े लोगों को देखने का मौका बचपन से ही मिला। फिल्म बनाने वाले बहुत से लोग यहाँ आना-जाना करते ही थे तो मुझे भी फिल्म का शौक यहीं से लगा।

बांद्रा के सेंट थेरेसा हाईस्कूल से मेरी पढ़ाई हुई। किसी से कहना नहीं, सिर्फ स्पेक्ट्रम के दोस्तों को बता रहा हूँ कि मैं पढ़ाई में ज्यादा अच्‍छा नहीं था। पर मुझे तरह-तरह की किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने केमेस्ट्री विषय के साथ कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। यही सोच रहे हो ना कि लैब में पीपेट और बीकर के बीच प्रैक्टिकल करने वाला मैं, फिल्में कैसे बनाने लगा।

यह कहानी बड़ी रोचक है। हुआ यूँ कि जब मैं छोटा था, कहानी सुनाना मुझे खूब आता था। अपने मुहल्ले में मैं पहला होता था जो नई फिल्में देखकर आता था और फिर सब मुझे कहानी सुनने के लिए धर लेते थे। मैं बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ कहानी सुनाता था और सारे लोग चुपचाप कहानी सुनते थे। बस यहीं से ‍फिल्म की कहानी कहना आ गया और हुई फिल्मकार बनने की शुरुआत।

दोस्तो, पापा-मम्मी मुझे इंजीनियर या आर्किटेक्ट बनाना चाहते थे जो मैं नहीं बन सका। पढ़ने में ज्यादा अच्छा नहीं था ना, इ‍सलिए। तो फिर जब केमेस्ट्री लेकर मीठीबाई कॉलेज से पढ़ाई कर रहा था तो यहाँ डांस, गाने और ड्रामे की खूब कॉम्पटीशन हुआ करती थी और मैं सबमें भाग लेता था। ऐसे ही एक बार मैं कॉलेज में एक ड्रामा कर रहा था और एक डायरेक्टर की नजर मुझ पर पड़ गई।

वे 'होली' नाम से एक फिल्म बनाने जा रहे थे और उन्होंने मुझे हीरो के तौर पर ले लिया तो मैं फिल्म एक्टर बन गया। जब मैं एक्टर बना तो बहुत खुशी हुई कि अब ज्यादा लोग मुझे परदे पर देखते हैं। मेरे काम की तारीफ करते हैं।

कुछ समय एक्टर रहकर बीता और फिर लगा कि सिर्फ एक्टर बनने से मुझे खुशी नहीं मिलेगी। हम सभी को यह सोचना चाहिए कि कौन सा काम हमें सबसे ज्यादा खुशी देता है और उसी के लिए कोशिश करना चाहिए। तो मैंने भी कोशिश की।

  दोस्तो, 'स्वदेस' फिल्म मैंने बहुत प्रेम से बनाई थी। इस फिल्म की भी बहुत तारीफ हुई। आज आप स्कूल में पढ़ रहे हो पर अपने देश के बारे में हमेशा दिल में मोहब्बत रखना। यह फिल्म यही सिखाती है।      
मुझे लगा कि डायरेक्टर फिल्म में सारे काम करता है तो आमिर खान और दीपक तिजोरी के मौका देने पर मैं डायरेक्टर बन गया। मेरी शुरुआती दो फिल्में चली नहीं पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और फिर 'लगान' जैसी फिल्म बनी। लगान बनाने में कई दिक्कतें आईं। एक डायरेक्टर को फिल्म के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

लगान की कहानी सुनाने जब मैं आमिर खान के पास गया तो उन्होंने इस फिल्म में काम करने से ही मना कर दिया। मैंने कुछ दिनों तक फिल्म की कहानी पर मेहनत की और दोबारा उनके पास गया। उन्हें समझाया तो वे तैयार हुए कि ठीक है वे काम करेंगे। अँगरेजों के समय में भारत कैसा था, इस बारे में मैंने बहुत पढ़ा तब जाकर यह फिल्म बन पाई। अब देखो मेरी फिल्म 'जोधा-अकबर' के समय भी तो विवाद हुए।

पर मैंने बहुत अध्ययन किया था। इतिहास की किताबें पढ़ीं और फिर जाकर यह फिल्म बनाई। उपन्यास और फिल्मों में थोड़ी गप चल सकती है पर असल बात सच्ची होना चाहिए।

जब आप किसी की जिंदगी पर फिल्म बना रहे हैं तो सच ज्यादा होना चाहिए। तो 'जोधा-अकबर' बनाते समय मैंने केएल खुराना, हरिशंकर और जदुनाथ सरकार की किताबें भी पढ़ीं और तब जाकर यह फिल्म बनाई।

दोस्तो, 'स्वदेस' फिल्म मैंने बहुत प्रेम से बनाई थी। इस फिल्म की भी बहुत तारीफ हुई। आज आप स्कूल में पढ़ रहे हो पर अपने देश के बारे में हमेशा दिल में मोहब्बत रखना। यह फिल्म यही सिखाती है। हमारे देश में जो गरीब हैं उनकी मदद करनी चाहिए। अपने गाँवों से प्रेम करना चाहिए। इंजीनियर या डॉक्टर बनो पर दूसरों के काम आने की बात हमेशा ध्यान रखो। तुम डॉक्टर बने तो याद रहे कि लोग भगवान के बाद डॉक्टर पर विश्वास करते हैं। यह विश्वास टूटने न पाए। जो दूसरों के बारे में सोचता है वही अच्छा इंसान है। अच्छा इंसान बनना सबसे ज्यादा जरूरी है। अब जल्द ही मेरी नई फिल्म आ रही है - 'वाट्‍स योर राशि?' देखकर फिल्म के बारे में सोचना कि फिल्म कैसी बनी है।

तुम्हारा
आशुतोष