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Written By WD

रस-रसायन, वटी व गोलियां

रस-रसायन, वटी व गोलियां -
रसोन (लशुनादि) वटी : अजीर्ण के कारण पेट का दर्द, पेट में वायु बनना, अन्य उदर रोग व विशूचिका में लाभप्रद। मात्रा 2 से 4 गोली भोजन के बाद या गर्म जल से लेना चाहिए।

राजमृगांक रस (स्वर्णयुक्त) : जीर्ण ज्वर, खांसी, रक्त पित्त, श्वास, तपेदिक आदि रोगों में लाभकारी। शारीरिक और मानसिक बल की वृद्धि भी करता है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद से।

रामबाण रस (अजीर्ण) : अजीर्ण, मंदाग्नि, संग्रहणी आमवात आदि में। मात्रा 2 से 4 गोली गर्म जल या शहद से।

लघुमालिनी वसंत : बुखार, खांसी, रक्तातिसार, यकृत व प्लीहा रोग, क्षय रोग आदि पर लाभकारी एवं शक्तिवर्द्धक, स्वर्ण वसंत मालती के गुण अल्प मात्रा में इसमें हैं। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा मक्खन से।

लवंगादि वटी (कास) : सब प्रकार की खांसी विशेषकर कफ प्रधान पर लाभदायक, गले की खराबी व श्वास नाशक। मात्रा 1-1 गोली मुंह में डालकर दिन में 4-6 बार चूसना चाहिए।

लक्ष्मीविलास रस (ज्वरकास) : कास, क्षय, ज्वर, सर्दी, जुकाम, श्वास, पांडू, शूल व शोथनाशक। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद से।

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) : निमोनिया, म्यानीबुखार, सर्दी-जुकाम, हरारत, इंफ्लूएन्जा आदि में लाभकारी। मात्रा 2-2 गोली सुबह-शाम पानी से।

लाई रस (चूर्ण) : संग्रहणी, अम्लपित्त, अतिसर, पतले दस्त आदि में लाभकारी। मात्रा 2-2 रत्ती दिन में 3 बार शहद व भुने हुए जीरे के साथ लेवें।

लीलाविलास रस : अधिक प्यास, उल्टी, पेट और छाती की जलन तथा नेत्रदाह के लिए उत्तम है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह व शाम शहद से।

लोकनाथ रस : यकृत, तिल्ली के विकार, रक्ताल्पता, पांडू, जीर्ण ज्वर तथा शोथनाशक। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद से।

व्योषाद्वी वटी : सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, श्वास, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 1-1 गोली दिन में 4-4 बार मुंह में डालकर चूसना चाहिए।

व्रणापहारी रस : सब प्रकार के दुष्ट, व्रण, नाड़ी व्रण व भगंदर आदि में। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

वृद्धिवाधिका वटी : सभी वृद्धि रोग, आंत उतरना आदि में। मात्रा 2 से 4 रत्ती।

वसंतकुमार रस (स्वर्णयुक्त) : सब प्रकार के प्रमेह, मधुमेह, राजयक्षमा, बहुमूत्र, सोमरोग, उन्माद, असंयम के कारण होने वाली दुर्बलता, स्नायु, दौर्बल्य आदि में लाभदायक है। कामोत्तेजक, कांति बढ़ाने वाला है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद व मक्खन या अन्य अनुपात से।

वात चिंतामणि रस (वृहत्‌) : समस्त रोग, गठिया, नींद न आना, वेदना, हिस्टीरिया आदि स्नायु दौर्बल्य जन्य रोगों में लाभकारी तथा बलवर्द्धक। मात्रा 1 रत्ती सुबह-शाम शहद से।

वात कुलांतक रस (कस्तूरीयुक्त) : सभी प्रकार के वात रोगों पर। अपस्मार, मूर्छा, हिस्टीरिया, आपेक्षक आदि पर लाभकारी। मात्रा 1/2 रत्ती दिन में 2-3 बार।

वात गजांकुश रस : पक्षाघात, ग्रघ्रसी, जोड़ों की कमजोरी आदि अनेक वात रोगों में लाभदायक। मात्रा 1 रत्ती दिन में 3 बार शहद से।

वात विध्वंसन रस : सन्निपात, वात शूल, कफ के विकार तथा ग्रहणी, मंदाग्नि, श्वास कामस आदि में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

शक्र बल्लभ रस (स्वर्णयुक्त) : धातु पौष्टिक, बाजीकरण एवं स्तंभन, शक्तिवर्द्धक। मात्रा 1 से 2 रत्ती शाम को दूध के साथ।

शिरः शूलादिवज्र रस : सब प्रकार के सिर दर्द में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

शिलाजित्वादि वटी (स्वर्णयुक्त) : शारीरिक दुर्बलता, स्मरण शक्ति की कमी, स्नायु दौर्बल्य, मूत्र विकार आदि पर लाभकारी। मात्रा- 1 से 3 रत्ती।

शूलवर्जिणी वटी : सभी प्रकार के पेट दर्द पर लाभकारी। आमावत, पांडू आदि रोगों पर उपयोगी। मात्रा 2 से 4 रत्ती।

शंख वटी : अजीर्ण, मंदाग्नि, पेट दर्द, गुल्म आदि पर लाभकारी। मात्रा 2 से 4 गोली भोजन के पश्चात चूसना चाहिए अथवा पानी से लेना चाहिए।

स्वर्ण वसंत मालती (स्वर्णयुक्त) : पुराना बुखार, तपेदिक, खांसी, शारीरिक क्षीणता, जिगर व तिल्ली के विकार, धातुविकार आदि रोगों पर लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती सुबह-शाम मक्खन, शहद या सितोपलादि चूर्ण 2 माशा के साथ।

स्वच्छंद भैरव रस : शीत ज्वर, सन्निपात ज्वर, विषम ज्वर, जीर्ण ज्वर, जुकाम, वमन आदि पर। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद से।

स्मृति सागर रस : स्मरण शक्ति को ठीक करता है तथा उन्माद, अपस्मार आदि में लाभदायक। मात्रा 1-2 रत्ती सुबह-शाम।

सर्पगन्धा धनवटी : नींद लाने की अच्छी दवा, रक्तचाप वृद्धि (हाई ब्लड प्रेशर) व चित्त की बेचैनी में लाभप्रद। मात्रा 1/2 से 1 गोली।

सर्वांग सुंदर रस : सब प्रकार की पुरानी खांसी, बुखार, सन्निपात, राजयक्षमा, संग्रहणी आदि रोगों पर। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।

सिद्ध प्राणेश्वर रस : ज्वरातिसार (बुखार के साथ दस्त लगना), संग्रहणी, शूल, रक्तपित्त, वातरोग आदि में। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद व भुने जीरे के साथ।

सूतशेखर रस (स्वर्णयुक्त) : अम्लपित्त, खट्टा वमन, गले की जलन, चक्कर आना, सिर दर्द, हिक्का, ज्वर, कास, पतले दस्त पर लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद के साथ।

सूतशेखर रस : उपर्युक्त स्वर्णयुक्त से कम गुणों वाला।

सौभाग्यवटी (ज्वर) : अधिकर ज्वर व सन्निपात ज्वर पर विशेष उपयोगी। शूल, श्वास, कास, मूर्छा आदि पर लाभकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती।

संजीवनी वटी : ज्वर, अतिसार (पतले दस्त), हैजा, सन्निपात, खांसी, सर्दी, अजीर्ण, गुल्म, इन्फ्लूएंजा आदि अनेक रोगों की प्रसिद्ध दवा। बच्चों को 1 गोली व बड़ों को 2 गोली शहद, अदरक या शहद व पान के साथ सुबह-शाम चाटना चाहिए।

संशमनी वटी : पित्त विकार, ज्वर, कमजोरी, रक्ताल्पता आदि पर लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती तक।

हृदयार्णव रस : हृदय रोगों में उपयुक्त। मात्रा 1 से 2 रत्ती। चिकित्सक की सलाह के अनुसार।

हिंगुलेश्वर रस : वात ज्वर और नए ज्वर में उपयोगी। तीव्र ज्वर, देह दर्द तथा जोड़ों (सन्धि स्थानों) के कठिन वेदनायुक्त आमवात में भी लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली शहद के साथ सुबह-शाम।

हेभ्रगर्भ पोटली रस (स्वर्णयुक्त) : दीपन, पाचन, त्रिदोष नाशक तथा अग्निवर्द्धक है। पुरानी खांसी, बुखार, शारीरिक क्षीणता, संग्रहणी, श्वास, मानसिक निर्बलता आदि में लाभदायक। वात व कफ के विकार, पुराना अतिसार, पांडू सूजन आदि में उपयोगी। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।

त्रिभुवन कीर्ति रस : ज्वर, सर्दी, जुकाम, इन्फ्लूएंजा, खांसी, निमोनिया व सन्निपात ज्वर में लाभकारी। मात्रा 1-1 रत्ती दिन में 3 बार।

श्वार कुठार रस : दमा, खांसी, सन्निपात, मूर्छा, जुकाम, बुखार आदि में। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद या अदरक के रस के साथ।

श्वास चिंतामणि रस वृहत्‌ (स्वर्णयुक्त) : पुराने और कठिन श्वास रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद में।

श्वासकास चिंतामणि रस (स्वर्णयुक्त) : श्वास (दमा), खांसी, जीर्ण, कास आदि रोगों पर लाभदायक। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद में।

श्रृंगाराभ्र रस : सूखी व कफयुक्त खांसी, कास, ज्वर, यक्ष्मा, श्वास, नेत्ररोग, वमन, शूल शोथ, प्रमेह आदि में। मात्रा 1 से 3 रत्ती।