महात्मा गांधी : भारत का स्वाभिमान
गांधी भारत की धरती का स्वाभिमान थे। वे सेवा की साधना थे। वे ईश्वर, देवता, अवतार, संत कुछ नहीं थे। वे तो इंसान और इंसानियत के नए संस्करण थे। उन्होंने शस्त्र की ताकत को सत्य की ताकत के सामने झुका दिया। गांधी को समझा नहीं गया, इसलिए गांधी को माना नहीं, गांधी को माना नहीं गया इसलिए गांधी को मार डाला गया। सच पूछा जाए तो हमने हत्या गांधी की नहीं की, बल्कि एक प्रकार से आत्महत्या की। शस्त्र और शास्त्र में कितना अंतर है? दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र ने सबसे शक्तिशाली शस्त्र बनाए मगर ग्यारह सितंबर की सुबह शस्त्र और शक्ति के दुर्ग भेद दिए गए। जिस अमेरिका का नाम लेकर दुनिया के कई मुल्क थर्राते थे, वह स्वयं थर्रा उठा। पता नहीं शस्त्रों की होड़ और मजहबी नफरतों की दौड़ में शामिल अब भी शस्त्र और संत में फर्क करेगी या नहीं, बंदगी और जिंदगी को एक मानेगी या नहीं, सेवा और साधना को एक समझेगी या नहीं।
गांधी को मारकर राजनीति से हमने नीति को मार डाला, धर्म से धर्म के आदर्श की हत्या कर दी। चरखे से उसका कर्म और हाथों से पैदा होता स्वाभिमान छीन लिया और इंजीनियरिंग कॉलेजों, मैनेजमेंट संस्थानों, चिकित्सा महाविद्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों सब जगह बेकारों की ऐसी भीड़ खड़ी कर दी, जिसके पास काम नहीं, जिसके पास स्वावलंबन नहीं। इसलिए देश में एक स्वाभिमानी पीढ़ी बनने से वंचित होती जा रही है। गांधी ने नारी को देवी बनाने के बजाए सहकर्मिणी बनाया। गांधी ने शिक्षा में सरस्वती पूजन के लिए मूर्ति या फोटो नहीं लगाया बल्कि ज्ञान की सरस्वती का अध्ययन और कर्म से पूजन करना सिखाया। गांधी गीता, बाइबिल, कुरान पढ़ते ही नहीं थे बल्कि उनके रास्ते पर चलते भी थे। उन्होंने पराई पीर को जानने और दूर करने का धर्म अपनाया था और दुनिया में कोई देश, धर्म या समाज नहीं, जिसकी पीड़ा न हो।