शनिवार को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सभी स्कूलों में 'मिल बांचे' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कलेक्टर, एसपी, मंत्री, विधायक, जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को स्कूलों में बच्चों के बीच जाकर एक-एक पाठ पढ़ाकर उन्हें भाषा व शिक्षा के प्रति प्रेरित करना था और ऐसा हुआ भी। पूर्व निर्धारित समय पर सभी अपने-अपने क्षेत्रों में गए भी।
जवाब सुन चौंक गए सभी...
मामला बिजावर नगर का है, जहां सिविल ड्रेस में थाना प्रभारी एसएस मिश्रा सहित भाजपा नेता एक्सीलेंस स्कूल पढ़ाने पहुंचे। यहां बच्चों से जैसे ही सवाल किया गया कि बच्चो, पढ़-लिखकर क्या बनना चाहते हो? तो एक बच्चे का जवाब सुनकर सभी चौंक गए।
दरअसल, सवाल के जवाब में बच्चे ने कहा था कि वह शिक्षक बनना चाहता है। जब पूछा गया कि क्यों? तो बच्चे ने बड़ी बेबाकी से कहा कि शिक्षक को छुट्टियां बहुत मिलती हैं, काम कुछ रहता नहीं, स्कूल आकर कुछ करना भी नहीं पड़ता, यहां सोते या गप्पे मारते हैं, मुफ्त की वेतन मिलती है, सभी इज्जत करते हैं। बच्चे का ऐसा बेबाक जवाब सुनकर शिक्षक सहित सभी हक्के-बक्के रह गए।
मामले पर जब हमने थाना प्रभारी और साथ रहे शशिकांत द्विवेदी से बात की तो उन्होंने भी बताया कि हम भी बच्चों की इस तरह की बातें सुनकर दंग रह गए, जो कि शिक्षा के स्तर, शिक्षकों के बर्ताव और मौजूदा शिक्षा व्यवस्था और शासन की कार्यप्रणाली की पोल खोलती है।
मामला चाहे जो भी हो, पर बच्चे ने बात तो 16 आने सच कही है। मौजूदा हालात में शिक्षकों की कार्यप्रणाली और शिक्षा का गिरता स्तर तो यही कहता है। जिससे कि बच्चों के चंचल मन की सोच भी बदल रही है। यह तस्वीर और वाकया तो महज इत्तेफाक नहीं, अमूमन यही हाल सभी शासकीय विद्यालयों का है।
हमारी पड़ताल और आंकड़े तो यही कहते हैं कि आज मौजूदा दौर में कोई भी अधिकारी, कर्मचारी, मंत्री, नेता, विधायक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाता और न ही पढ़ाना चाहता। अगर इनके बच्चों की भी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में हो तो शायद बदलाव आए और शिक्षा का स्तर भी सुधरे।
गैरों का न सही, पर अपने बच्चों की खातिर तो ये जरूर सोचेंगे और सुधार लाएंगे। फिर शायद शिक्षक भी अच्छे होंगे और शिक्षा भी अच्छी होगी। इसी बहाने शायद इनके बच्चों के साथ सभी के बच्चों का भला होगा, फिर तो सब पढ़ेंगे भी और सब बढ़ेंगे भी। हमारा उद्देश्य सिर्फ खबर को दिखाना नहीं बल्कि हर आम-ओ-खास को आईना दिखाना और सभी को अवगत कराना है। देश की हकीकत यही है कि ये अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना तो नहीं चाहते, पर मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन और नौकरियां सरकारी चाहते हैं।