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Last Updated : गुरुवार, 30 जून 2016 (21:15 IST)

वर्चस्व की लड़ाई में इंदौर का घाटा

वर्चस्व की लड़ाई में इंदौर का घाटा - Madhya Pradesh cabinet minister, Shivraj cabinet,
मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपनी टीम का विस्तार तो कर लिया, लेकिन राज्य को सबसे ज्यादा टैक्स चुकाने वाला शहर खाली हाथ रह गया। दरअसल, ये सब हुआ शहर के दो विधायकों के वर्चस्व और अहंकार की लड़ाई के चलते। भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले इस शहर से दो-दो मंत्री हुआ करते थे, वहां अब एक भी मंत्री नहीं है। 
मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले क्षेत्र क्रमांक एक के विधायक सुदर्शन गुप्ता का मंत्री बनना तय माना जा रहा था। यह तय था कि नरेन्द्रसिंह तोमर से निकटता का उन्हें इनाम मिल सकता है। मुख्‍यमंत्री को भी उनके नाम पर कोई एतराज नहीं था। गुप्ता ने भी मंत्री बनने के बाद की पूरी तैयारियां कर ली थीं और अपने समर्थकों को भोपाल पहुंचने तक के निर्देश दे दिए थे, लेकिन अंतिम समय में उन्हें निराशा ही हाथ लगी। 
 
कैलाश ने बिगाड़ा खेल : इंदौर को कोई मंत्री नहीं मिल पाने की सबसे बड़ी वजह एक नंबर और दो नंबर क्षेत्र के नेताओं के वर्चस्व और अहंकार की लड़ाई रही। दरअसल, दो नंबरी नेता नहीं चाहते थे कि शहर में एक और शक्ति का केन्द्र बने। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि गुप्ता मंत्री बनते तो दो नंबरी नेताओं की ताकत कम होती। दोनों गुटों की लड़ाई उस समय भी सामने आई थी जब दो नंबरियों ने एक नंबर क्षेत्र में रामकथा का आयोजन किया था, जिससे गुप्ता ने पूरी तरह दूरी बना ली थी।
 
कहा जा रहा है शक्ति संतुलन बिगड़ने के डर से भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इस बात पर अड़ गए थे कि यदि रमेश मेंदोला मंत्री नहीं बनेंगे तो गुप्ता भी नहीं बनेंगे। कैलाश ने अपनी बात मनवाने के लिए अमित शाह से निकटता का फायदा उठाया और वे शाह के माध्यम से गुप्ता का नाम कटवाने में सफल भी रहे। इस पूरी कवायद में ताई और भाई यानी सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय की लड़ाई एक बार फिर खुलकर सामने आई, क्योंकि सुदर्शन गुप्ता इन दिनों लोकसभा अध्यक्ष महाजन के काफी करीब माने जाते हैं।
 
राजनीतिज्ञों के की इस लड़ाई में यदि किसी का नुकसान हुआ है तो वह इंदौर शहर का और यहां के  वाशिंदों का। क्योंकि जिस शहर में दो-दो मंत्री हुआ करते थे, अब वहां एक भी मंत्री नहीं है। यदि शहर को मंत्रिमंडल में भागीदारी मिलती तो निश्चित ही यहां के विकास को गति मिलती। इस सियासी लड़ाई में भले ही किसी की जीत हुई हो, लेकिन इंदौर शहर की हार जरूर हुई है।
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