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Written By ND

किस्मत पर लगा ग्रहण

किस्मत पर लगा ग्रहण -
- राहुल आदित्य राय, ग्वालियर। परिसीमन से उलट-पुलट हुई सीटों ने कई विधायकों की किस्मत पर ग्रहण लगा दिया है। इनमें खासतौर से वे विधायक हैं, जो आरक्षित सीट से जीतकर विधायक बने थे और परिसीमन में उनकी सीट सामान्य हो गई या फिर सामान्य से जीते थे और सीट आरक्षित हो गई। इस लपेटे में ग्वालियर-चंबल संभाग के भी चार विधायक आ गए हैं, जिन्हें भाजपा ने टा-टा, बाय-बाय कर मैदान से बाहर कर दिया है। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो इस बार अगर जीतते और भाजपा की सरकार बनती तो मंत्री बनने की लाइन में होते।

शिवपुरी जिले की कोलारस सीट से तीन बार विधायक चुने गए ओमप्रकाश खटीक इस बार चुनाव मैदान से बाहर रहेंगे। वे अपनी परंपरागत सीट के आरक्षित हो जाने के बाद सामान्य से आरक्षित हुई जिले की करैरा सीट से दावेदारी जता रहे थे, लेकिन भाजपा ने उनकी दावेदारी दरकिनार कर करैरा से नए चेहरे रमेश खटीक को मैदान में उतारा है, जबकि कोलारस सीट से पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को प्रत्याशी बनाया गया है।

ओमप्रकाश खटीक 90, 93 और 2003 में विधायक बने और भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। उन्हें टिकट न मिलने पर करारा झटका लगा है, क्योंकि उनका नाम काफी मजबूती से लिया जा रहा था।

मुरैना जिले की दिमनी सीट से विधायक संध्या राय को भी परिसीमन के कारण नुकसान भुगतना पड़ा है। वर्ष 2003 में उन्हें इस सीट से पाँच बार विधायक चुने गए मुंशीलाल का टिकट काटकर चुनाव मैदान में उतारा गया था। उन्होंने पार्टी के भरोसे को कायम रखते हुए जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार दिमनी सीट से भाजपा ने शिवमंगलसिंह को प्रत्याशी बनाया है। संध्या राय अम्बाह सीट से दावेदारी जता रही थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया है।

दतिया जिले की आरक्षित से सामान्य हो गई सेंवढ़ा विधानसभा सीट से विधायक रामदयाल प्रभाकर 2003 में कांग्रेस के गृहमंत्री महेंद्र बौद्ध को हराकर जीते थे, लेकिन इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट न देकर जिला कोषाध्यक्ष प्रदीप अग्रवाल पर विश्वास जताया है। प्रभाकर के साथ ऐसा दूसरी बार हो रहा है, जब विधायक रहते हुए उनका टिकट काट दिया गया है। प्रभाकर ने सन 90 में पहला चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए थे।

93 में वे कांग्रेस विधायक महेंद्र बौद्ध को पराजित कर विधानसभा पहुँचे थे, लेकिन 98 में पार्टी ने उन पर भरोसा न जताते हुए डॉ. आशाराम को मैदान में उतारा था। जब आशाराम हार गए तो 2003 में प्रभाकर को फिर आजमाया गया। सेंवढ़ा से उम्मीद खत्म होने के बाद भांडेर सीट पर वे आशा बाँधे बैठे थे लेकिन वहाँ भी उनकी दाल नहीं गली।

अशोकनगर जिले की अशोकनगर विधानसभा सीट पहले सामान्य थी, जहाँ से जगन्नाथसिंह विधायक हैं, लेकिन सीट के आरक्षित हो जाने के बाद वे चंदेरी सीट से दावेदारी जता रहे थे। भाजपा ने उन पर भरोसा न जताकर चंदेरी से राव राजकुमारसिंह को प्रत्याशी बनाया है, जबकि आरक्षित अशोकनगर सीट से परिसीमन में समाप्त हो गई शाढौरा सीट के विधायक गोपीलाल जाटव को टिकट दिया गया है।