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Written By WD

लोकतंत्र की उम्र है इक दिन

कैलाश यादव ‘सनातन’

Poetry | लोकतंत्र की उम्र है इक दिन
लोकतंत्र की उम्र है इक दिन
जिस दिन वोटिंग होती है
बाकी दिन तो राजतंत्र है
जिसमें जनता रोती है

लोकतंत्र को गढ़ने वाले
मेहंदी बनकर रचते थे
जन गण मन के अंग अंग में
प्राणों जैसे बसते थे।
अब लोक अलग और तंत्र अलग है
दिन होता है केवल इक दिन
रात पांच साल की होती है
लोकतंत्र की उम्र है इक दिन
जिस दिन वोटिंग होती है
बाकी दिन तो राजतंत्र है
जिसमें जनता रोती है


इक रस्ते पर कुआं खुदा है
और दूसरे पर खाई है
तेरी किस्मत चुन ले जिसको
फिर पांच साल परछाई है
साया भी संग होत नहीं
जब भरी दोपहर होती है
लोकतंत्र की उम्र है इक दिन
जिस दिन वोटिंग होती है
बाकी दिन तो राजतंत्र है
जिसमें जनता रोती है

लोकतंत्र की आभा निखरी
हुआ यह पहली बार है
अगर सामने सब हो निकम्मे
सब के सब को न कह देना
अब तेरा अधिकार है
अब तो जागो मेरे वोटर
वरना घुटन सी होती है
फिर न कहना राजतंत्र है।
लोकतंत्र की उम्र है इक दिन
जिस दिन वोटिंग होती है
बाकी दिन तो राजतंत्र है
जिसमें जनता रोती है...