तुझसे मिलके चुप हो जाना कैसा होगा
रोहित जैन
तुझको खो कर फिर से पाना कैसा होगादिल में फिर से आग लगाना कैसा होगाटुकड़ा-टुकड़ा, जर्रा-जर्रा बिखरा हूं मैं एक सिफर फिर से बन जाना कैसा होगा रो-रोकर ये मेरी आंखें सूख चुकी हैं फिर से एक सैलाब का आना कैसा होगा कितनी सारी बातें हैं तुझसे कहने की तुझसे मिलके चुप हो जाना कैसा होगा कितनी मुश्किल से दुनिया में घुल पाया था उकता के फिर खुद में जाना कैसा होगा रफ्ता-रफ्ता मर-मर के तुझको भूला था याद में तेरी फिर जी जाना कैसा होगा जिस पन्ने पर मैंने खुद को छोड़ दिया था उस पन्ने का फिर खुल जाना कैसा होगा क्या होगा गर फिर से मैं, मैं ही बन जाऊं? फिर से मेरा दिल दीवाना कैसा होगा?