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Last Modified: शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014 (10:48 IST)

मोबाइल : जीवन के साथ भी-जीवन के बाद भी

मोबाइल : जीवन के साथ भी-जीवन के बाद भी - मोबाइल : जीवन के साथ भी-जीवन के बाद भी
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया  
 
मोबाइल हर आयु,वर्ग,और लिंग के लोगों के लिए अति आवश्यक वस्तु बन चुका है। व्यक्ति भोजन के बिना दिन आसानी से बिता सकता है किंतु मोबाइल के बगैर तो एक पल भी नहीं गुजार सकता है। यह हर व्यक्ति के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के साथ चौथी आधारभूत जरुरत बन चुका है। जितना बड़ा मोबाइल उतनी ही बड़ी समाज में उसकी इज्जत। एक समय था इसे भी जीरो फीगर के रुप में पसंद किया जाता था किंतु अब इसका फिग़र चप्पल का रुप ले चुका है।  


 
जीवन के हर कदम पर इसकी आवश्यकता महसूस की जाती है। इसके डयूटी सुबह मूर्गे की बांग के समान अलार्म बजा कर उठाने से प्रारम्भ होती है। भजन सुनाना, योग क्रियाएं करवाना, फेस बुक के जाने अनजाने फ्रेंड्स से मिलवाना, गुड मार्निंग के मैसेज दिलवाना, एक से एक उपदेशात्मक संदेश पंहुचाना, गुगल के माध्यम से अनेक वेबसाइट्स की यात्रा के साथ रात को मां की तरह लोरी सुना कर सपनों की दुनिया तक ले जाने का काम ये बड़ी बखूबी से निभा रहा है। 
 
यदि हम कहे कि ये हमारे जीवन का मार्गदर्शक है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम फेस बुक और व्हाट्स एप के संदेशों को लाइक कर, शेअर कर और कमेंटस कर कई लोगों के दिल में स्थान बना चुके हैं। हमारा पूरा समाजशास्त्र मोबाइल के भीतर समा गया है। सारे रिश्ते इसी के माध्यम से निभाए जा रहे हैं। 


 
इसके प्रति प्रेम पागलपन की हद तक पहुंच गया है। एक समाचार के अनुसार एक लड़्की मोबाइल से बात करने में इतनी मगन हो गई थी कि वो रेल से कट गई तो एक नाले में गिर गई। एक लड़्की सेल्फी लेते लेते छ्त पर इतनी पीछे हट गई कि वह नीचे गिर गई। रोड़ पर भी आपने देखा होगा कई लोग मन ही मन बड़्बड़ाते हुए चलते हैं जैसे कोई  मानसिक विक्षिप्त हो। कई लोगों की तो सिर और कंधों के बीच इसे दबा कर गाड़ी पर बतियाने से गरदन ही तिरछी हो गई। 
 
कुछ लोगों का सोचना है कि जब से मोबाइल आया है तब से लोग लैंडलाइन को भूल गए हैं। लैंडलाइन भी गधे के सिंग और घर के रेडियो की तरह गायब हो चुका है। इसी बात की चिंता करते हुए एक कंपनी ने उसकी बैटरी को इतना कमजोर बनाया है कि आपको अक्सर मोबाइल चार्जिंग पर लगा कर रखना पड़्ता है ताकि लैंडलाइन का आभास होता रहे।  
 

 
इसकी तारीफ में एक डाक्टर ने तो कुछ शब्द ईजाद किए हैं। जैसे यदि मोबाइल चार्जिंग पर लगा है तो कहते है सलाइन लगी हुई है, यदि मोबाइल हेंग हो जाता है तो कहते है इसका ई.सी.जी ठीक नहीं है, इसमें वायरल इंफेक्शन हो चुका है इसे एंटी वायरल (वायरस) ड्रीप लगाना होगी। इसका कीडनी (सॉफ्टवेअर) ठीक से काम नहीं कर रहा है इसे शीघ्र ही डायलसिस (फार्मेट) करना होगा ।      


 
व्हाटसएप, फेसबुक टवीटर और भी बहुत कुछ इसके सगे भाई-बहन है। इन सब को चलाने कि लिए मोबाइल नाम के श्री य्ंत्र का होना ठीक वैसा ही है जैसे शरीर के भीतर आत्मा का । ये हर घर, हाथ, पर्स, और पॉकेट में पाया जाता है। इसके पहुंच शमशान घर तक हो चुकी है। शमशान तक मुर्दे को एक से एक रिंग टोन सुनाई जाती है ताकि उसे इस संसार को छोड़ कर जाने का दुख न हो। जो संगी-साथी, नाते-रिश्तेदार अंतिम क्रिया के समय तक नहीं पहुंच पाए उनको इसके माध्यम से अंतिम दर्शन कराए जाते हैं। अंतिम संस्कार के बाद इसकी भूमिका समाप्त नहीं होती। तेरहवीं की पूजा हो या  श्राद्ध पक्ष इसे मृत आत्मा की शांति के लिए, पंडित जी को लालटेन, छाता, चप्प्ल के साथ दान किया जा रहा है। मोबाइल जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी काम आने लगा है।