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Written By WD

मंगल और गुरु परस्पर शत्रु ग्रह हैं

मंगल और गुरु परस्पर शत्रु ग्रह हैं -
- रशिमकांत व्यास

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आचार्य वराहमिहिर के पूर्व प्रकरण 'मृच्छकटिकम्' के लेखक राजा शूद्रक ने अपने ग्रंथ में एक स्थल पर कहा है कि 'अंगारम विरुद्धस्य' प्रक्षीणस्य बृहस्पते:' अर्थात मंगल और गुरु परस्पर शत्रु ग्रह हैं। यह धारणा आचार्य वराहमिहिर के बाद से बदल गई। किंतु महाकवि कालिदास का यह कथन है कि-

पुराणभिर्व्यव नसाधु सर्व न यापि
काव्य न न‍वभिल वधम'।
संत: परिक्ष्यंतरद भजंते
मुढ़ पर प्रत्यय नैव बुद्धि:

अर्थात इस संसार में न तो सब नया अच्‍छा, न ही पुराना अच्छा है। सज्जनों को परीक्षा लेकर ही उसके विषय में अपनी व्याख्या अपने स्वयं के मत पर निर्धारित करनी चाहिए।


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इसी मत के अनुसार अनेक उदाहरणों के आधार पर इसे ठीक पाया गया। स्वयं आचार्य शूद्रक न केवल राजा थे, अपितु अनेक शास्त्रों के प्रकांड विद्वान भी थे। उन्होंने यह पंक्ति अपने समय में प्रचलित ज्योतिष के सिद्धांत के आधार पर और स्वयं अनुभव लेकर ही लिखी होगी।

'वृहत जातक' में भी यह ग्रह विरोधी बताए गए हैं। मंगल की राशियां मेष और वृश्चिक हैं तथा गुरु की धनु तथा मीन मेष से मीन का संबंध 12वीं राशि से आता है तथा मेष और धनु राशि अग्नि तत्व का नेतृत्व करती है।

अत: जहां दो अग्नि राशि वाले होंगे, वहां परस्पर ईर्ष्या-द्वेष की भावना अवश्य होगी ही। दोनों में सहनशीलता का अभाव, कलह, बैर की वृद्धि ही करेगा। धनु, वृश्चिक का संबंध भी द्विद्वांदश का है, जो शुभ नहीं है। वृश्चिक व मीन राशि दोनों जल प्रधान होने से अति भावुकतावश अग्नि तत्व के समान ही स्थि‍ति निर्मित करेंगी।

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गुरु तत्व प्रधान मंगल रज तत्व प्रधान होना भी स्वभाव में जमीन-आसमान का फर्क स्पष्ट बताता है।

पागल व्यक्तियों पर भी खूनी रंग मानसिक उत्तेजना को बढ़ाने वाला ही होता है, किंतु गुरु के गहरे या हल्के पीले सफेद वर्ण में यह बात न होकर मानसिक शांति देने की प्रबल शक्ति है।

बृहस्पति कहां देवता के गुरु और कहां मंगल अग्नि के समान प्रखर, तेज, दीप्त, भूमि से जन्य (कुज-क यानी पृथ्वी उससे उत्पन्न)। (मंगल की जन्मभूमि उज्जैन (मप्र) में आज भी मंगलनाथ का विशाल मंदिर देखा जा सकता है।)


अमरकोष के अनुसार

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बृहस्पति के नामों में भी उसकी विशेषता स्पष्ट होती है। सुराचार्य, जीव, अंगीरस आदि। इसी प्रकार मंगल के नाम- अंगारक, कुज, भौम लोहितांग, महीसुत आदि।

गुरु, मंगल के क्षेत्र में हैं। गुरु शिक्षा विभाग, बैंक, मानसिक कार्य, लेखन आदि से संबंध रखता है तो मंगल अग्नि, बिजली संबंधित कार्य, सेना, पुलिस से संबंधित विभागों का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल पाप ग्रह है तो गुरु शुभ ग्रह है।

मंगल, गुरु की युति व दृष्टि जातक में सात्विक गुण का ह्रास कर राजसिक गुण का समावेश कर व्यसनों को देने वाली संतान में कन्या पक्ष अधिक करने वाली, चारित्रिक दृष्टि से कमजोरी लाने वाली ही अधिकतर देखी गई है।


अनेक लंबी बीमारियों का कारण भी यह यु‍ति दृष्टि है, जो शरीर में कैल्शियम की कमी लाकर रक्ताल्पता से लंबे और भयंकर रोगों का कारण बन जाती है।

इसी गुरु-मंगल के कारण भगवान राम 14 वर्ष वनवास में रहे। रावण से विरोध की स्‍थिति, संतान से वियोग की स्‍थिति का कारण रहा।

रावण की पत्रिका में इन ग्रहों ने उसका परनारी पर आकर्षण बनाया, कुमार्ग के पथ पर अग्रसर किया, व्यक्ति में विघ्न की स्थिति बनाई। गुरु इसी कारण मारक भी बना।



एक अन्य प्रसिद्ध व्यापारी को 6 कन्या का योग पंचक पंचमेश से इनका संबंध होने से बना।

महात्मा ईसा का उनके समय प्रबल विरोध, शूल मरण भी इन्हीं ग्रहों से हुआ।

अब्दुल रहीम खानखाना का राजयोग भंग कर उन्हें 'पर घर मांगन जाय' की स्‍थिति तक इन ग्रहों ने ला दिया।

महात्मा गांधी की शरीर दुर्बलता का कारण तथा सुभाषचंद्र बोस की वात प्रधान उष्णोदर विकार से ग्रस्त कर विमान दुर्घटना की स्‍थिति भी इन्हीं ग्रहों के कारण रही है

(समाप्त)