मंगल और गुरु परस्पर शत्रु ग्रह हैं
आचार्य वराहमिहिर के पूर्व प्रकरण 'मृच्छकटिकम्' के लेखक राजा शूद्रक ने अपने ग्रंथ में एक स्थल पर कहा है कि 'अंगारम विरुद्धस्य' प्रक्षीणस्य बृहस्पते:' अर्थात मंगल और गुरु परस्पर शत्रु ग्रह हैं। यह धारणा आचार्य वराहमिहिर के बाद से बदल गई। किंतु महाकवि कालिदास का यह कथन है कि-पुराणभिर्व्यव नसाधु सर्व न यापिकाव्य न नवभिल वधम'।संत: परिक्ष्यंतरद भजंतेमुढ़ पर प्रत्यय नैव बुद्धि:।अर्थात इस संसार में न तो सब नया अच्छा, न ही पुराना अच्छा है। सज्जनों को परीक्षा लेकर ही उसके विषय में अपनी व्याख्या अपने स्वयं के मत पर निर्धारित करनी चाहिए।