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Written By WD

जन्म पत्रिका देखने के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र

जन्म पत्रिका देखने के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र -
- महेंद्रसिंह पंवार

ND
जन्म‍ पत्रिका देखना कोई मामूली बात नहीं। जरा सी भूल सामने वाले को मानसिक परेशानी में डाल सकती है या गलत तालमेल जीवन को नष्ट कर देता है। पत्रिका मिलान में की गई गड़बड़ी या कुछ लोगों को अनदेखा कर देना जीवन को नष्ट कर देता है।

सबसे पहले हम जानेंगे पत्रिका में किस भाव से क्या देखें फिर मिलान पर नजर डालेंगे। जन्म पत्रिका में बारह भाग होते हैं व जिस जातक का जन्म जिस समय हुआ है उस समय के लग्न व लग्न में बैठे ग्रह लग्नेश की स्थिति आदि। लग्न प्रथम भाव से स्वयं शरीर, व्यक्तित्व, रंग-रूप, स्वभाव, चंचलता, यश, द्वितीय भाव से धन, कुटुंब, वाणी़, नेत्र, मारक, विद्या, पारिवारिक स्थिति, राजदंड, स्त्री की कुंडली में पति की आयु देखी जाती है।

तृतीय भाव से कनिष्ठ भाई-बहन, पराक्रम, छोटी-छोटी यात्रा, लेखन, अनुसंधान स्त्री की कुंडली में पति का भाग्य, यश, श्वसुर, देवरानी, नंदोई। चतुर्थ भाव से माता, मातृभूमि संपत्ति, भवन, जमीन, जनता से संबंध, कुर्सी, श्वसुर का धन, पिता का व्यवसाय, अधिकार, सम्मान आदि।
  जन्म‍ पत्रिका देखना कोई मामूली बात नहीं। जरा सी भूल सामने वाले को मानसिक परेशानी में डाल सकती है या गलत तालमेल जीवन को नष्ट कर देता है। पत्रिका मिलान में की गई गड़बड़ी या कुछ लोगों को अनदेखा कर देना जीवन को नष्ट कर देता है।      


पंचम भाव से विद्या, संतान, मनोरंजन, प्रेम, मातृ धन, पति की आय, सास की मृत्यु, लाभ, जेठ, बड़सास, चाचा, श्वसुर, बुआ सास, षष्ट भाव से श्रम, शत्रु, रोग, कर्ण, मामा, मौसी, पुत्रधन, प्रवास, श्वसुर की अचल संपत्ति, पति का शैया सुख। सप्तम भाव से पति, पत्नी, विवाह, दाम्पत्य जीवन, वैधव्य, चरित्र, नानी, पति का रंग-रूप, ससुराल, यश-सम्मान। अष्टम भाव से आयु, गुप्त धन, गुप्त रोग, सौभाग्य, यश-अपयश, पति का धन व परिवार।

नवम भाव से भाग्य धर्म, यश, पुण्य, संतान, संन्यास, पौत्र, देवर-ननद। दशम भाव से राज्य, प्रशासनिक सेवा, पिता प्रतिष्ठा, सास, पति की मातृभूमि, आवास, अचल संपत्ति वाहनादि। एकादश भाव से आय, अभीष्ट प्राप्ति, चाचा, पुत्रवधू, दामाद, जेठानी, चाची, सास, सास का धन। द्वादश भाव से व्यय, गुप्त शत्रु, हानि, शयन सुख, कारोबार, पति की हानि, ऋण, मामा, मामी।

उक्त बातें स्त्री की कुंडली में देखी जाती हैं। किस भाव का स्वामी किस भाव में‍ किस स्थिति में है। इसे भी विचारणीय होना चाहिए। वर्तमान में गोचर ग्रहों की स्थिति व उनसे संबंध का भी ध्यान रखना चाहिए। मारक स्थान व उस समय की दशा-अंतरदशा का ध्यान रखना भी परम आवश्यक होता है।

जन्मपत्रिका मिलान करते समय मंगल दोष की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जब सप्तमेश में शनि मंगल का संबंध बनता हो तो उस दोष के उपाय अवश्य करवाना चाहिए नहीं तो कन्या के कम उम्र में विधवा होने या पुरुष के विधुर होने की आशंका बनी रहती है।

इस प्रकार जन्म‍पत्रिका ठीक ढंग से मिलाने पर इन अनहोनियों से बचा जा सकता है और जातक का भला हो सकता है।