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Last Modified: मंगलवार, 10 जनवरी 2017 (11:46 IST)

आदिवासियों की मुसीबत बढ़ाते पुलिसिया अत्याचार

आदिवासियों की मुसीबत बढ़ाते पुलिसिया अत्याचार - tribal of chhattisgarh
अक्सर आदिवासी महिलाओं को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। आदिवासियों को सुरक्षा और सम्मान देने के तमाम सरकारी दावे तब खोखले लगते हैं जब उत्पीड़न का आरोप सुरक्षा मुहैया कराने वाली पुलिस पर ही लगते हैं।
आदिवासियों के उत्पीड़न की खबरें यूं तो देश भर से लगातार सामने आती रहती हैं, खासतौर पर छत्तीसगढ़ के बस्तर से जहां नक्सलियों और सरकार के बीच फंसे हुए आदिवासी अक्सर उत्पीड़न का शिकार बनते हैं। इस इलाके में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले आधुनिक होते समाज को शर्मसार करने वाले हैं। अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी ने कुछ मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आदिवासी महिलाओं के यौन उत्पीड़न को लेकर पुलिसकर्मियों पर अंगुली उठाई है।
 
एनएचआरसी की नोटिस
छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली और सरकार के बीच फंसे आदिवासियों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले भी यहां आम हैं। लेकिन महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार की घटना कभी कभार ही सामने आती है। सरकार और समाज को शर्मिंदा करने वाला ऐसा ही एक मामला एनएचआरसी की रिपोर्ट से अभी सामने आया है। महिलाओं के उत्पीड़न और बलात्कार की शिकायतों पर एनएचआरसी ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पाया कि 16 आदिवासी महिलाएं कथित रूप से पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार, यौन शोषण और प्रताड़ना की शिकार हुई हैं। इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए एनएचआरसी ने इन घटनाओं के लिए राज्य सरकार को परोक्ष रूप से जिम्मेदार मानते हुए नोटिस जारी किया है।
 
एनएचआरसी ने नवंबर 2015 और जनवरी 2016 में इलाके का दौरा कर पीड़ित आदिवासी महिलाओं से बात की थी। एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बस्तर के आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है। आयोग ने कहा है कि अब तक 34 महिलाओं ने ज्यादती के खिलाफ शिकायत दी है। पुलिस जवानों की ज्यादती की शिकार हुई 20 अन्य महिलाओं का बयान लेना अभी भी बाकी है। आयोग ने कहा कि इन घटनाओं की अधिकतर पीड़ित महिलाएं आदिवासी हैं। हालांकि, किसी भी मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम लागू नहीं किया गया।
बस्तर की निर्भयाओं को न्याय
एनएचआरसी की नोटिस के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में गर्मी आ गयी है। बलात्कार की शिकार आदिवासी महिलाओं को बस्तर की निर्भयाएं बताते हुए वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 36 निर्भया कांड यानी आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार हुए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने न्याय की लड़ाई लड़ने की बात कही है। इस मामले को गंभीर बताते हुए भूपेश बघेल ने कहा कि आदिवासी महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात करने की तैयारी की जा रही है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधान मिश्रा ने राज्य मानवाधिकार आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आदिवासियों के साथ अन्याय और अत्याचार को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गंभीर है, लेकिन अब तक राज्य मानवाधिकार आयोग सो रहा है। उन्होंने दोषी पुलिसकर्मियों पर एफआईआर कराकर तत्काल उनकी गिरफ्तारी करने की मांग की।
 
आदिवासी महिलाओं के यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप पुलिस पर पहले भी लग चुके हैं। विपक्ष पूर्व के उन दो मामलों को उठा रहा है, जिसकी जांच में पुलिस कर्मी दोषी पाए गए। भूपेश बघेल ने मीना खल्को का मामला उठाते हुए कहा कि 2011 में 15 साल की मीना खल्को के साथ बलात्कार और हत्या मामले में किसी पर कार्यवाही नहीं हुई है। मीना खल्को को पुलिस ने नक्सली बता कर गोली मार दी थी। इस मामले में सरकार को घेरते हुए, सत्यनारायण शर्मा का कहना है कि पुलिस को रमन सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। यही वजह है कि बस्तर में लगातार उत्पीड़न की वारदातें हो रही है।
 
आदिवासी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए राज्य सरकार ने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा का कहना है कि एनएचआरसी की नोटिस का जवाब दिया जायेगा। उनका कहना है कि इस मामले में पुलिस ने एफआईआर की है और शिकायतों की गंभीरता को देखते हुए जुलाई 2016 में सीआईडी को प्रकरण हस्तांतरित किए गए। रामसेवक पैकरा का दावा है कि सरकार बस्तर में आदिवासियों की सुरक्षा के लिए सजग है। आदिवासियों के साथ अपमानजनक व्यवहार और कानून के खिलाफ जो भी काम करेगा, चाहे वह पुलिसकर्मी ही क्यों न हो, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
 
रिपोर्ट:- विश्वरत्न श्रीवास्तव
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