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Last Modified: बुधवार, 28 अक्टूबर 2015 (11:54 IST)

लिखनी होगी परिवार और शादी की नई परिभाषा

लिखनी होगी परिवार और शादी की नई परिभाषा - the new definition marriage and family
रोम में कैथोलिक पादरियों ने परिवार के बदलते मायनों पर चर्चा की और पहली बार तलाक जैसे मुद्दों पर खुल कर सामने आए। डॉयचे वेले के जॉन बेरविक सवाल कर रहे हैं कि आज की पीढ़ी परिवार से क्यों कटती जा रही है।
शायद परिवार के सिद्धांत को पूरी तरह त्याग कर, उस बारे में नए सिरे से सोचने का वक्त आ गया है। जिस तेजी से शादियां टूट रही हैं और जिस तरह से बहुत से युवा शादी के विचार से ही दूर भागने लगे हैं, उसे देखते हुए तो ऐसा ही लगता है। पर दिक्कत शादी के आदर्श नहीं, बल्कि हमारी गलत प्राथमिकताएं हैं।
 
पिछली शतब्दी में सिगमंड फ्रॉयड ने लिखा था, 'कोई विचार बनाने के लिए लोग आम तौर पर जिन झूठे मानदंडों का इस्तेमाल करते हैं, उनसे छुटकारा पाना असंभव है। वे अपने लिए ताकत, शोहरत और कामयाबी तलाशते हैं और दूसरों को भी उन्हीं के अनुसार सराहते हैं। और जीवन के असली मूल्यों को वे कम आंकते हैं।' लगता है कि तब से अब तक कुछ बदला ही नहीं।
 
भले ही मॉल्डोवा की वह महिला हो, जो काम की तलाश में पश्चिम यूरोप आ कर सफाई कर्मचारी बन जाती है और ऐसे में अपने बच्चों को पीछे छोड़ आने पर मजबूर होती है या फिर अमेरिका का कोई टायकून, जो अपनी अत्यंत व्यस्त दिनचर्या में अपने परिवार के लिए कुछ घंटे भी ठीक से नहीं निकाल पाता। हम सब ही एक ऐसी अर्थव्यवस्था के गुलाम हैं, जो पारिवारिक जीवन की दुश्मन है। क्या यह हमारे समय की सबसे दुखद बात नहीं है कि स्टीव जॉब्स को मरने से पहले किसी लेखक से अपनी जीवनी लिखवानी पड़ी, ताकि उनके बच्चे उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें।
बात सिर्फ वक्त को बेहतर रूप से इस्तेमाल करने की या फिर आर्थिक बदलाव लाने की ही नहीं है, देखना यह है कि व्यक्तिगत रूप से लोग अपने साथी और बच्चों की ओर कैसे एक समझदारी भरा रवैया अपनाते हैं। ज्ञान का हर संभव स्रोत होने के बावजूद, हैरानी की बात है कि हम युवाओं को उनकी जिंदगी के सबसे अहम फैसले के लिए कितनी बुरी तरह तैयार करते हैं। पोप फ्रांसिस ने सही ही कहा, 'ज्यादातर लोग किसी परीक्षा की तैयारी में शादी की तैयारी से ज्यादा वक्त गुजारते हैं।'
 
इसीलिए तो इस बात में कोई ताज्जुब ही नहीं रहा कि प्यार अब खेल बन गया है। आपका सबसे घनिष्ठ रिश्ता महज एक कंप्यूटर गेम बन कर रह गया है, जिसमें अगर आप एक बार फेल हुए, तो एग्जिट का बटन दबाने में वक्त ही नहीं लगता, बस फिर गेम को दोबारा नए सिरे से शुरू कर लीजिए।
 
इस सब को देखते हुए लगता है कि कैथोलिक पादरियों ने रोम में जो चर्चा शुरू की, वह सही समय पर लिया जा रहा सही कदम है। लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है। एक बहुत ही बड़े बदलाव की शुरुआत। हम में से कोई भी परफेक्ट नहीं है। हमें यह समझना होगा और एक दूसरे के प्रति धैर्यवान और संवेदनशील बनना होगा। तभी हमारा यह संघर्ष सही दिशा में आगे बढ़ सकेगा।
 
आपको क्या लगता है, क्या हमारे समाज में लोगों को शादी के लिए ठीक से तैयार किया जाता है? क्यों तलाक के मामले बढ़ते ही चले जा रहे हैं? अपनी राय हमसे साझा करें, नीचे टिप्पणी कर के।
 
रिपोर्ट:- जॉन बेरविक/आईबी