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Last Modified: गुरुवार, 12 मार्च 2015 (12:11 IST)

'न्यूक्लियर पावर जोखिम भरा और घाटे का विकल्प'

'न्यूक्लियर पावर जोखिम भरा और घाटे का विकल्प' - nuclear power
परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ माइकल श्नाइडर बता रहे हैं कि उन्हें परमाणु ऊर्जा उद्योग में दिवालियेपन और 'भारी रक्षा जोखिमों' के आसार दिखते हैं।
 
डीडब्ल्यू: हर साल आप 'वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट' प्रकाशित करते हैं। वैश्विक रुझान कैसे हैं?
माइकल श्नाइडर: परमाणु ऊर्जा का उत्पादन पिछले कुछ सालों में काफी महंगा हुआ है। यह एक हैरान करने वाली बात है क्योंकि कई दूसरे तरह की अक्षय ऊर्जा तकनीकें सस्ती हुई हैं। इस तरह अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अब असली मुकाबला चल रहा है। इसके अलावा, यूरोप में ऊर्जा की मांग कम हो रही है और परमाणु ऊर्जा संयंत्र चलाने वालों के लिए यह एक बड़ी समस्या है।
 
डीडब्ल्यू: अगर परमाणु ऊर्जा आर्थिक तौर पर फायदेमंद नहीं है, तो ब्रिटेन जैसी कई माइकल श्नाइडर: सरकारें नए परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित करने की योजना क्यों बना रही हैं?
माइकल श्नाइडर: कई सालों से ब्रिटिश सरकार परमाणु ऊर्जा के बारे में सोच रही थी लेकिन इस बारे में कोई ठोस ऊर्जा नीति नहीं बना पाई। न्यूक्लियर पावर अब काफी मंहगी हो गई है और इस क्षेत्र में बेहतर और ज्यादा समझदारी भरे उपाय नहीं ढूंढे गए। अभी भी यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि नया हिंक्ले प्वाइंट न्यूक्लियर पावर प्लांट योजना के अनुरूप ही बनेगा। इस बारे में अब तक कोई कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं हुए हैं। लेकिन इन प्लांट्स से ऊर्जा उत्पादन का अनुमानित खर्च बिजली पाने की आजकल की कीमतों का लगभग दोगुना होगा।
 
डीडब्ल्यू: यूरोप में परमाणु ऊर्जा का भविष्य आपको कैसा दिखता है?
माइकल श्नाइडर: मुझे लगता है कि हिंक्ले प्वाइंट न्यूक्लियर पावर प्लांट कभी भी ऊर्जा तंत्र के साथ जुड़ नहीं पाएगा। अभी तक तो उसके प्रस्तावित प्रकार के कारगर होने की भी पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन इंग्लैंड और फ्रांस की सरकारें इस मामले को इतना आगे बढ़ा चुकी हैं कि शायद अब तक इसका निर्माण कार्य भी शुरु हो गया हो। लेकिन मैं सोच भी नहीं सकता कि अगले 15 सालों में भी कोई न्यूक्लियर पावर स्टेशन बन के तैयार होगा।
साफ है कि स्वतंत्र बाजार वाली अर्थव्यवस्था में आजकल के हालात में कोई भी न्यूक्लियर पावर स्टेशन बनाना संभव नहीं रह गया है। इसका मतलब होगा, अगर कोई प्लांट बनता है तो उसे बहुत ज्यादा सब्सिडी मिल रही होगी।
 
किसी परमाणु ऊर्जा स्टेशन की औसत आयु करीब 29 साल होती है। धीरे धीरे पुराने हो रहे परमाणु संयत्रों को बंद करना होगा। इन्हें चलाने वाली कंपनियों के पास क्या इसके लिए पर्याप्त राशि होगी?
 
इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। सबसे बड़ी समस्या है ऐसे कई न्यूक्लियर पावर प्लांट्स हैं जिन्हें बंद करने का समय आ चुका है। लेकिन ऑपरेटर इससे बचते हैं क्योंकि इन्हें नष्ट करने के लिए उन्हें उनकी उम्मीद से भी ज्यादा खर्च करना होगा। हो सकता है कि इसी में कई ऑपरेटरों का दिवालिया निकल जाए।
 
डीडब्ल्यू: अगर परमाणु उद्योग ढलान पर है तो क्या इसका यह मतलब भी निकाला जाए कि इसमें जोखिम बढ़ रहा है?
माइकल श्नाइडर: हां, बिल्कुल और मैं इसे लेकर चिंतित हूं। करीब 10 साल पहले जापान में झूठी रिपोर्टिंग का एक बड़ा कांड सामने आया था जिसके बाद वहां टेपको के सभी 17 न्यूक्लियर पावर प्लांट रोक दिए गए। पिछले कुछ महीनों में ही बेल्जियम के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के रिएक्टर वैसेल्स में हजारों दरारें पाई गई हैं।
 
डीडब्ल्यू: आने वाले दशकों में विश्व भर में ऊर्जा उद्योग के विकास की तस्वीर कैसी होने की उम्मीद है?
माइकल श्नाइडर: डॉयचे बैंक की रिपोर्ट दिखाती है कि कई देशों में सौर ऊर्जा ग्रिड से मिलने वाली ऊर्जा से कहीं ज्यादा सस्ती है। मुझे लगता है कि भविष्य में ऊर्जा के बाजार की स्थित आज से बहुत ज्यादा अलग होगी।
 
माइकल श्नाइडर कई सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए ऊर्जा और परमाणु नीतियों के बारे में एक स्वतंत्र सलाहकार के रूप में काम करते हैं। बीते करीब 30 सालों में उन्होंने विश्व भर में परमाणु उद्योग के विकास को देखा है। वह वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट के संपादक हैं। 1997 में उन्हें राइट लाइवलिहुड पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 
इंटरव्यू: गेरो रूएटर/आरआर