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Last Modified: गुरुवार, 30 अप्रैल 2015 (12:50 IST)

मदद, नेपाल के लिए मुसीबत न बन जाए

मदद, नेपाल के लिए मुसीबत न बन जाए - Nepal earthquake
नेपाल के 22 जिलों में कई ऐसे इलाके हैं जिनसे अब तक कोई संपर्क नहीं हो सका है। वहां न तो बिजली है, न ही टेलीफोन चल रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख कई जमीनी परेशानियां गिना रहे हैं।
राम कुमार दहल नेपाल के गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख हैं। दहल शनिवार को आए ताकतवर भूकंप के बाद चल रहे राहत और बचाव अभियान पर नजर बनाए हुए हैं। इस दौरान कई व्यवहारिक परेशानियां भी सामने आ रही हैं। दहल के मुताबिक उनके पास बड़ी मात्रा में ऐसी राहत सामग्री पहुंच चुकी है, जिसकी फिलहाल बहुत कम जरूरत है। ऐसे में उस राहत सामग्री को संभालकर रखना और उसका हिसाब किताब रखना भी एक चुनौती है। दहल से समाचार एजेंसी डीपीए के पत्रकार सुबल भंडारी ने बातचीत की।
 
डीपीए: तत्कालिक जरूरतें क्या हैं?
दहल: टेंट। हमें विस्थापित लोगों के लिए बड़ी संख्या में टेंट चाहिए और हमारे पास पर्याप्त टेंट नहीं हैं। हमें खाना और नॉन फूड आइटम भी चाहिए। घायलों के लिए दवाएं चाहिए।
 
क्या यह सच है कि आपने कुछ देशों की मदद ठुकराई?
दहल: हमने उन्हें इनकार नहीं किया। हमने अपने विदेशी दोस्तों से यही कहा कि यहां एक योजना के साथ आईए। हमारे पास अभी हर किसी के लिए योजना नहीं है। फिलहाल 22-24 विदेशी सर्च और रेस्क्यू टीमें यहां हैं, जो पर्याप्त हैं। हमारा एयरपोर्ट ठसाठस भरा है। राहत और बचाव का काम अब स्थान केंद्रित होना चाहिए। हम नेपाल को मदद और लोगों के लिए डंपिंग ग्राउंड के तौर पर नहीं देखना चाहते। हमें पैसा चाहिए, इसीलिए प्रधानमंत्री आपदा कोष बनाया गया है। गद्दे, कंबल, खाना पकाने के बर्तन और सूखे मेवों जैसी चीजों की तुरंत जरूरत है। हमें ये चीजें देने का वादा किया गया है लेकिन अब तक ये हम तक नहीं पहुंची हैं।
 
हमें खास मेडिकल पेशवरों जैसे हड्डी विशेषज्ञों, न्यूरोलॉजिस्टों, सर्जनों, और एनेसथिसिया एक्सपर्टों के साथ एंटीबायोटिक, सर्जिकल उपकरणों और बिस्तरों की जरूरत है। हम उन चीजों को नहीं चाहते जिनकी हमें फिलहाल जरूरत नहीं है। ऐसी स्थिति में लोगों और सामान का प्रबंधन करना बहुत कठिन है। मदद के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गैरजरूरी सामान हम तक नहीं पहुंचाना चाहिए।
 
अभी सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?
दहल: बचाव अभियान का प्रबंधन पहली चुनौती है। इसमें कुछ बाधाएं हैं। एक प्रभावित इलाका तो 22 पहाड़ी जिलों में फैला है। मौसम भी समस्या है। भूकंप वाली शाम से ही लगातार हल्की बारिश हो रही है। हम अब भी कई इलाकों तक नहीं पहुंच सके हैं। एक चुनौती अफवाहों का बाजार भी है। काठमांडू में भूकंप के बाद आने वाले झटकों और ताकतवर भूकंपों की अफवाहें भरी पड़ी हैं। इससे काम में बाधा आ रही है। कई जिलों से संपर्क नहीं हो पाया है क्योंकि वहां हालात बहुत खराब हैं और प्रशासनिक भवन शायद क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। टेलीफोन सिस्टम बंद है, बिजली नहीं है। ऐसे इलाकों तक सहायता पहुंचना मुश्किल हो रहा है।
 
- ओएसजे/आईबी (डीपीए)