गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. multinational companies food monopoly
Written By
Last Modified: शनिवार, 14 जनवरी 2017 (12:11 IST)

किसकी मुट्ठी में कैद है हमारा खाना?

किसकी मुट्ठी में कैद है हमारा खाना? - multinational companies food monopoly
कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियां दुनिया भर में अनाज की सप्लाई कर रही हैं उनके बढ़ते एकाधिकार से खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण खतरे में हैं इसकी मार भारत पर भी पड़ने लगी है।

औद्योगिक कृषि से न सिर्फ जैवविविधता बल्कि कृषिविविधता भी खतरे में है। कई प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा किये गए एक शोध में पता चला है कि दुनिया भर में खाने की सप्लाई कुछ कंपनियों तक सीमित होती जा रही है। हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन, रोजा-लक्जेमबर्ग फाउंडेशन, फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ जर्मनी, जर्मनवॉच, ऑक्सफैम और ले मोंड डिप्लोमैटिक के "कॉरपोरेशन एटलस" में यह दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक आहार श्रृंखला के बड़े हिस्से पर कुछ कंपनियों का अधिकार हो चुका है।
 
तीन-चार कंपनियों की मुट्ठी में दुनिया
अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि क्षेत्र को देखा जाए तो, अभी सात अहम कंपनियां हैं। यह कंपनियां कीटनाशक, रासायनिक खाद और बीज बेचती हैं। लेकिन जर्मन रसायन कंपनी बायर अमेरिकी बीज कंपनी मोनसैंटो को खरीद रही है। सौदा पूरा होते ही बायर दुनिया की सबसे बड़ी एग्रोकेमिकल कंपनी बन जाएगी। वहीं अमेरिका की दिग्गज कंपनियां डुपोंट और डाव केमिकल्स के बीच भी विलय की बात चल रही है। चैमचाइना, स्विट्जरलैंड की एग्रोकेमिकल और बीज कंपनी सिनजेंटा को खरीदने की तैयारी में है। हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन की बारबरा उनम्युसिग कहती हैं, "जल्द ही हम एकाधिकार वाली तीन कंपनियों से जूझ रहे होंगे।"
 
बीज और कीटनाशकों के मामले में तो प्रतिस्पर्धा करीब करीब खत्म ही हो चुकी है। भविष्य में इस सेक्टर की तीन कंपनियों के पास 60 फीसदी से ज्यादा बाजार होगा। ये सभी कंपनियां जीन संवर्धित खेती पर जोर देती हैं।
 
कितना बड़ा खतरा?
फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ जर्मनी की कृषि नीति विशेषज्ञ काथरीन वेंस कहती हैं, "अगर सब लोग कुछ ही कंपनियों से बीज खरीदें तो सब के पास एक जैसे पौधे होंगे।" इससे कृषि में मोनोकल्चर आएगा, यानि बिना विविधता वाली एक जैसी फसल। दूसरी प्रजाति के पौधों पर निर्भर रहने वाले कीट, पतंगे और परिंदों पर इसका असर पड़ेगा और जैवविविधता तंत्र गड़बड़ाने लगेगा। वेंस इसे समझाते हुए कहती हैं, "बेहतर कृषि विविधता का मतलब है बेहतर जैव विविधता।"
 
एक जैसी फसल खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है। अगर किसी बीमारी, बैक्टीरिया या फंगस के चलते पूरी फसल खराब होने लगे, तो रोकथाम करने का दूसरा तरीका नहीं बचेगा। उदाहरण के तौर पर भारत में धान की कम से कम 100 प्रजातियां हैं। फर्ज कीजिए अगर कभी इनमें से 50 खराब हो जाएं तो भी 50 बचेंगी। लेकिन अगर पूरे देश में एक ही प्रजाति का धान लगाया जाए और वह खराब हो जाए तो खाने के लाले पड़ जाएंगे।
 
वेंस के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर भी कृषिविविधता बहुत अहम है क्योंकि कुछ खास प्रजाति के पौधे मौसमी दुश्वारियों को बेहतर तरीके से सामना कर पाते हैं। कृषि विविधता से मिट्टी भी कम खराब होती है, "हम एक जैसी फसलें उगाकर और रासायनिक खाद का अत्यधिक इस्तेमाल कर मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम हर साल 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी खो रहे हैं, इसका इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा के लिए हो सकता था।"
 
अति शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां
बाजार पर कुछ ही कंपनियों का वर्चस्व होने से किसान भी लाचार हो जाते हैं। न चाहते हुए भी उन्हें बीज चुनिंदा कंपनियों से खरीदना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों के किसानों पर इसकी सबसे बुरी मार पड़ रही है। बारबरा उनम्युसिग के मुताबिक कंपनियां सरकारों पर भी दबाव डाल रही हैं, "जब बाजार की ताकतें आपस में मिल जाती हैं तो ज्यादा नेता उनके दबाव को स्वीकार करने लगते हैं।" इस बारे में जब जर्मनी कंपनी बायर से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो उसके प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कुछ एग्रोकेमिकल और बीज कंपनियों का ही एकाधिकार फैल रहा है। खाद्य क्षेत्र में कच्चे माल की सप्लाई भी चार कंपनियों के नियंत्रण में जा चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक आर्चर डैनियल मिडलैंड्स, बंगे, कारगिल और ड्रेफॉस के हाथ में गेंहू, मक्का और सोया की 70 फीसदी सप्लाई है।
 
रिपोर्ट कहती है कुछ कंपनियों की बढ़ती ताकत भारत, इंडोनेशिया और नाइजीरिया जैसे देशों के छोटे कारोबारियों को खत्म कर रही है। सब कुछ सस्ता करने की होड़ में खेती के इको फ्रेंडली तरीके बर्बाद हो रहे हैं। रिपोर्ट में दुनिया भर की सरकारों से कदम उठाने की मांग की गई है।

रिपोर्ट में सुझाया गया है कि नीतिगत बदलाव कर पर्यावरणसम्मत खेती, प्राकृतिक खाद और स्थानीय बीजों का इस्तेमाल कर इस खतरे को टाला जा सकता है। ग्राहक भी अगर स्थानीय किसानों से सामान खरीदे और सीधे उनसे संवाद स्थापित करे तो हालात सबके लिए बेहतर हो सकते हैं।
 
रिपोर्ट:- थेरेसा क्रिननिंगर
ये भी पढ़ें
पृथ्वी के गर्भ का एक रहस्य सुलझा