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Last Modified: सोमवार, 22 अप्रैल 2019 (12:00 IST)

कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाती माफूजा खातून

कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाती माफूजा खातून | Mafooja Khatun
पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। लेकिन बीजेपी की अकेली मुस्लिम महिला उम्मीदवार माफूजा खातून सड़कों के गड्ढों से मछली पकड़ कर बाजी पटलने की कोशिश में हैं।
 
 
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की पहली और अकेली मुस्लिम महिला उम्मीदवार माफूजा खातून को अबकी अपनी जीत का पूरा भरोसा है। दो बार सीपीआई की विधायक रह चुकीं खातून का सामना प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी से है। खातून कहती हैं, "प्रणब मुखर्जी और उनके पुत्र अभिजीत मुखर्जी के लंबे समय तक सांसद रहने के बावजूद जंगीपुर इलाके की तस्वीर जस की तस है। इससे कांग्रेस से लोगों का मोहभंग हो गया है। मैं अबकी जीत कर इलाके की तस्वीर बदल दूंगी।”
 
 
बंगाल में लोकसभा की 23 सीटों पर जीत के लक्ष्य के साथ मैदान में उतरी बीजेपी ने मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर सीट पर माफूजा खातून को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह पार्टी की पहली अल्पसंख्यक महिला उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत से है जो दो बार यहां जीत चुके हैं। माफूजा दो बार सीपीआई विधायक रही हैं। यह सीट जीत कर इतिहास रचने के लिए माफूजा प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बिना इलाके का भूगोल मापने में जुटी हैं।
 
 
खातून ने अपनी उम्मीदवारी के एलान के अगले दिन से ही मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर संसदीय सीट पर अफना चुनाव अभियान शुरू कर दिया था। अब भी कड़ी धूप की परवाह किए बिना वह सुबह आठ बजते ही गांव-गांव जाकर खासकर महिलाओं और युवा वोटरों से मुलाकात के अभियान पर निकल जाती हैं। इलाके में अल्पसंख्यक आबादी ही निर्णायक है। अपने अभियान के दौरान वह ट्रिपल तलाक और इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल का जिक्र करना नहीं भूलतीं। माफूजा इस इलाके में ट्रिपल तलाक की शिकार महिलाओं का आंकड़ा भी जुटा रही हैं।
 
सीपीएम के टिकट पर दक्षिण दिनाजपुर जिले की कुमारगंज सीट से दो-दो बार (वर्ष 2001 और 2006) विधायक रहीं खातून ने वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में पराजय के साल भर बाद बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता ली थी। लेकिन बीते साल बंगाल में पंचायत चुनावों के दौरान अपने भाषणों से वह सुर्खियों में आईं। उसी वजह से बीजपी के प्रदेश नेतृत्व ने अबकी खातून को टिकट देने की सिफारिश की थी। खातून को पार्टी ने बीते साल मुर्शिदाबाद जिला मुख्यालय बहरमपुर का पर्यवेक्षक बनाया था। जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी का असर बीते कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। यह दिलचस्प है कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद हर बार जहां कांग्रेस और सीपीएम के वोटों में लगातार गिरावट दर्ज की गई वहीं बीजेपी के वोट लगातार बढ़े हैं।
 
 
खातून कहती है, "इलाके के कांग्रेसी सांसद विकास योजनाएं शुरू करने में नाकाम रहे हैं। मामूली बारिश में ही इलाके की सड़कें तालाब में बदल जाती हैं। उनमें मछलियां पैदा हो जाती हैं।” अपने दावे के समर्थन में वह सड़क पर बने ऐसे ही एक गड्ढे से मछलियां पकड़ कर भी दिखाती हैं। वह कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबके साथ सबके विकास के के मंत्र से अब इलाके की तस्वीर भी बदल जाएगी। खातून का दावा है कि अब बीजेपी के प्रति लोगों की धारणा बदल रही है। उनको लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। वह कहती हैं कि जीतने के बाद इलाके के बीड़ी मजदूरों की समस्याओं को भी संसद में उठाएंगी। जंगीपुर इलाके में लाखों लोग बीड़ी बना कर रोजी-रोटी चलाते हैं।
 
 
भागीरथी नदी के तट पर इस शहर को मुगल सम्राट जहांगीर ने बसाया था। ब्रिटिश शासनकाल के शुरुआती दौर में यह जंगीपुर सिल्क के कारोबार और ईस्ट इंडिया कंपनी के वाणिज्यिक आवास का केंद्र था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का चुनाव क्षेत्र होने की वजह से किसी दौर में मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर संसदीय सीट ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थी। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद खाली हुई इस सीट से प्रणब के पुत्र अभिजीत मुखर्जी कांग्रेस के टिकट पर दो बार जीत चुके है। लेकिन उनकी जीत का अंतर तेजी से घट रहा है। अबकी बीजेपी के मजबूत होने और वाममोर्चा से तालमेल नहीं होने की वजह से अभिजीत की राह पथरीली हो गई है। उनके सामने इस सीट पर कब्जा बनाए रखने की गंभीर चुनौती है।
 
 
वर्ष 2009 में 1।28 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीतने वाले प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने की वजह से वर्ष 2012 में इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। उस साल हुए उपचुनावों में प्रणब के पुत्र अभिजीत कांग्रेस के टिकट पर जीत तो गए, लेकिन उनकी जीत का अंतर महज ढाई हजार वोटों का रहा। तीन साल में कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा भी 15 फीसदी घट गया। पारंपरिक रूप से इस इलाके को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। लेकिन अपने इस गढ़ में उसकी हालत अब लगातार कमजोर हो रही है। इस बार तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी ने कांग्रेस से यह सीट छीनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस वजह से यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
 
 
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के मिलने वाले वोटों में 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई और अभिजीत लगभग आठ हजार वोटों से चुनाव जीते। वर्ष 2009 और 2012 में यहां कोई उम्मीदवार नहीं देने वाली तृणमूल कांग्रेस 2014 में तीसरे स्थान पर रही थी। उसे 18.54 फीसदी वोट मिले थे. उस साल बीजेपी को भी 6.32 फीसदी वोट मिले।
 
 
जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी का असर बीते कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। 79 फीसदी साक्षरता दर वाले जंगीपुर इलाके में खेती ही लोगों की रोजी-रोटी का मुख्य जरिया है। इसके अलावा बीड़ी, चावल, आम, जूट जैसी वस्तुओं का कारोबार होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, जंगीपुर की आबादी में 67 फीसदी अल्पसंख्यक हैं। इस जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस के अलावा बाकी दलों के उम्मीदवार अल्पसंख्यक तबके से हैं।
 
 
राजनीतिक विशेलषकों का कहना है कि माफूजा के प्रति इलाके के लोगों का समर्थन भले बढ़ रहा हो, उनके सामने समर्थकों की इस भीड़ को वोटों में बदलने की कड़ी चुनौती है। राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर सब्यसाची घोष मानते हैं कि बीते कुछ चुनावों में इलाके में कांग्रेस का वोट बैंक बिखरा है। तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी यहां लगातार में मजबूत हुई है। ऐसे में इस सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।
 
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 
 
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