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Last Modified: मंगलवार, 8 नवंबर 2016 (11:25 IST)

सऊदी अरब में दाढ़ी वालों के खिलाफ लड़ती एक औरत

सऊदी अरब में दाढ़ी वालों के खिलाफ लड़ती एक औरत - lady against bearded in Saudi Arabia
सौउद अल-शामेरी ने जब सऊदी मौलवियों की घनी दाढ़ी के बारे में कई ट्वीट किए तो उन्हें बिल्कुल ये अंदाजा नहीं था कि इसके लिए उन्हें जेल हो जाएगी।
उन्होंने दाढ़ी वाले विभिन्न लोगों की तस्वीरें पोस्ट कीं जिनमें एक रुढ़िवादी यहूदी, एक हिप्पी, एक कम्युनिस्ट, एक ओटोमन खलीफा, एक सिख और एक मुसलमान शामिल था। उन्होंने लिखा कि सिर्फ दाढ़ी रखने से ही कोई आदमी पवित्र या मुसलमान नहीं बन जाता। उन्होंने ये भी लिखा कि पैगंबर मोहम्मद के दौर में उनके एक कटु आलोचक की दाढ़ी उनसे भी लंबी थी।
 
अल-शामेरी छह बच्चों की मां हैं और उनका दो बार तलाक हो चुका है। वो इस्लामी कानून में स्नातक हैं और अक्सर इस तरह के कॉमेंट करती रहती हैं। अल-शामेरी की परवरिश एक पारंपरिक कबीले में हुई लेकिन अब वो एक उदारवादी नारीवादी कार्यकर्ता हैं और अक्सर सऊदी अरब के ताकतवर धार्मिक प्रतिष्ठान को चुनौती देती हैं और उनकी दलीलों का आधार इस्लाम होता है।
 
लेकिन उन्हें अपने विचारों की कीमत चुकानी पड़ी है। उन्हें तीन महीने जेल में बिताने पड़े। उन पर लोगों को भड़काने का आरोप था। सरकार ने उनके विदेश जाने पर भी रोक लगा दी। उनके साथ 'फ्री सऊदी लिबरल्स नेटवर्क' नाम का एक ऑनलाइन मंच बनाने वाले ब्लॉगर रैफ बदावी 10 साल की सजा काट रहे हैं और उन्हें सार्वजनिक तौर पर 50 कोड़े लगाए गए थे। अल-शामेरी को उनके पिता ने भी त्याग दिया है। इसके बावजूद वो खामोश नहीं हुई हैं।
 
वह कहती हैं, 'मेरे अधिकार हैं जो मुझे अपने धर्म के खिलाफ नहीं दिखाई पड़ते। मैं इन अधिकारों के लिए आवाज उठाना चाहती हूं और जो लोग फैसले ले रहे हैं, मैं चाहती हूं कि वे मेरी बात सुनें और उन पर अमल करें।' अरब दुनिया में कई इस्लामिक विद्वान और कार्यकर्ता लंबे समय से शरिया कानून की इस व्याख्या पर जोर दे रहे हैं जिसके मुताबिक अल्लाह के सामने महिला और पुरुष बराबर हैं।
अल-शामेरी सऊदी अरब में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली सबसे अहम कार्यकर्ताओं में से एक हैं। उनकी दोस्त और एक सऊदी कार्यकर्ता सहर नसीफ बताती हैं, 'जो वो कहती हैं दमदार तरीके से कहती हैं।। बिल्कुल नहीं हिचकिचातीं। वह रेगिस्तान वाले एक इलाके से आती हैं और उन्हें इस बात पर गर्व है। लेकिन ये बात उन्हें बेधड़क भी बनाती है। वह किसी की परवाह नहीं करतीं, जो कहना है, कहती हैं।'
 
अल-शामेरी ने हायल यूनिवर्सिटी से इस्लामिक अध्ययन में स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर वह एक सरकारी स्कूल में टीचर बन गईं। 17 साल की उम्र में उनकी शादी अपने से दोगुनी उम्र से व्यक्ति से हो गई। उनकी एक बेटी हुई, यारा। लेकिन 20 साल की उम्र में उनका तलाक हो गया और उन्होंने दोबारा शादी की। 
 
अल-शामेरी सामाजिक तौर पर उस वक्त सक्रिय हुईं जब उनकी बेटी को उनसे अलग किया गया। जब यारा सात साल की हुई तो उसे अल-शामेरी के पूर्व पति को दे दिया गया। चूंकि अल-शामेरी की दोबारा शादी हो गई तो अदालत ने फैसला दिया कि यारा किसी अन्य व्यक्ति के घर में रहने के बजाय अपने पिता के साथ रहेंगी।
 
वह बताती हैं, 'जब वे उसे दूर ले गए और बोले की ये अल्लाह की मर्जी है और ये इस्लाम है, तब मेरे अंदर बगावत पैदा हुई। ये हो नहीं सकता कि इस ब्रह्मांड में ईश्वर है और वो इस तरह की नाइंसाफी और पीड़ा को स्वीकार करे, और वो भी इस आधार पर कि मैं एक औरत हूं।'
 
आठ साल तक वह अपने माता-पिता, समुदाय और हर उस आदमी से लड़ीं जो उनके और यारा के बीच में आया। जब यारा के पिता बीमार हो गए और उसकी दादी का निधन हो गया तो उन्होंने आखिरकार 16 साल की हो चुकी यारा को अल शामेरी को सौप दिया। दूसरे पति से भी अल-शामेरी के पांच बच्चे और हैं।
 
वह शरिया कानून की अपनी जानकारी का इस्तेमाल करके जरूरतमंद औरतों की मदद करती हैं। कभी कभी वो अजीब सलाहें भी देती हैं। मिसाल के तौर पर उन्होंने एक महिला से कहा कि 'अच्छा सा मेकअप करो और फिर पता करो कि मामले को कौन सा जज देख रहा है। फिर वहां जाकर रोना और जज से तारीख आगे बढ़ाने की फरियाद करना।' और ये तरीका काम कर गया।
 
जब उन्होंने इंटरनेट पर दाढ़ी वाले लोगों की तस्वीरें पोस्ट कीं तो सऊदी अरब में कुछ बड़े मौलवियों और रुढिवादी लोगों ने उन्हें पाखंडी और काफिर और शैतान बताया। उनका बड़बोलापन टीवी पर भी देखने को मिलता है। वह हिजाब भी नहीं पहनतीं और ये बात उनके परिवार वालों को भी अखरती है। उनके भाई फयाज से समुदाय के एक नेता कहा, 'तुम मर्द नहीं हो। अपनी बहन को तुम कैसे इस तरह रहने दे सकते हो!'
 
फयाज कहते हैं कि उन्होंने सात साल पहले हायल को छोड़ दिया था क्योंकि लोगों की बातें सुनना मुश्किल हो गया था। इतना ही नहीं, अपनी बहन की वजह से फयाज का एक जगह रिश्ता भी टूट गया था। यहां तक कि शुरू में यारा ने भी अल-शामेरी का विरोध किया था। इसके अलावा स्कूल में बच्चे उनके बेटों को चिढ़ाते थे। फयाज के मुताबिक, ऐसे में बच्चे कई बार अपनी मां को बुरा भला सुनाने लग जाते हैं।
 
अल-शामेरी के ट्विटर पर इस समय दो लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं। हालांकि वह कहती है कि अब अपनी बात कहते हुए वो पहले ज्यादा सावधानी बरतती हैं। यारा अब अपनी मां का समर्थन करती है, हालांकि वो ये भी चाहती है कि अल शामेरी हिजाब या ताकतवर धार्मिक लोगों के खिलाफ कुछ न बोले।
 
- एके/वीके (एपी)
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