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Last Modified: गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015 (12:29 IST)

इंसानी नीचता की नई गहराईयां नापता आईएस

इंसानी नीचता की नई गहराईयां नापता आईएस - IS-Islamic terrorists
अगर अब तक भी किसी को आईएस की नीचता पर कोई शक था, तो जॉर्डन के पायलट को जिंदा जलता देख कर वह दूर हो गया होगा। ग्रैहम लूकस का मानना है कि खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाला यह संगठन इंसानी क्रूरता की नई इबारत लिख रहा है।

खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले आतंकियों की क्रूरता से किसी का भी दिमाग सन्न रह जाएगा, चाहे वह किसी भी धर्म में विश्वास रखने वाला हो। पिछले कुछ महीनों में सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया ने सीरिया और इराक में कट्टरपंथी सुन्नी संगठन के ढाए ऐसे तमाम अत्याचारों को उजागर किया है, जिनके पीछे है पूर्व अल कायदा कार्यकर्ता अबु बकर अल-बगदादी। सिर कलम किए जाने, जिंदा जलाए जाने, युद्ध बंधकों की नृशंस सामूहिक हत्या या फिर शिया और ईसाई महिलाओं का सामूहिक बलात्कार - इन सभी घृणित अपराधों के बारे में सुनना मीडिया की दैनिक खुराक का हिस्सा सा बन गया है। इनमें से किसी भी अपराध का किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह सब किसी भी कीमत पर सत्ता हथियाने और एक बेरहम निरंकुश शासन का डर बैठाने की कोशिश है।

इन कृत्यों को पाश्विक कहना भी एक गलती होगी। जानवर भी आमतौर पर तभी मारते हैं जब वे भूखे हों या फिर खुद उनकी जान को खतरा महसूस हो। उनकी दुनिया शिकार और शिकारियों में बंटी हुई है जिसकी अपनी एक प्राकृतिक लय है। हम अभी जो कुछ भी देख रहे हैं वह असल में इंसानी अनैतिकता की ऐतिहासिक गिरावट है। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि किसी समूह विशेष की विकृत मानसिकता के चलते कई मासूम लोगों को जान से मारा गया। इस बार यह विक्षिप्त समूह आईएस के रूप में सामने है जो मानता है कि एक इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना करने के महान उद्देश्य में इन लोगों की जानें जाएंगी हीं। वे खुद नहीं देख रहे कि उन्हीं के धर्म में किसी भी इंसान का जीवन लेना निंदनीय बताया गया है।

आईएस के आतंकी नेता पूरी तरह डर पर आधारित एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जिसमें क्रूरता की कोई सीमाएं नहीं हैं और वह दूसरों को पीड़ा पहुंचाने की किसी भी सीमा तक जा सकता है। यह 2004 में अल-कायदा के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक मुहम्मद खलील अल-हकाइमाह की 'बेरहमी का प्रबंधन' वाली नीति से काफी मिलती जुलती है। इस थ्योरी के अनुसार जिहादियों को ऐसी हिंसक वारदातें करनी चाहिए जिससे राष्ट्रवादी भावना और धार्मिक आक्रोश फैले और पश्चिमी समाज सैनिक कार्रवाई करने को मजबूर हो जाए। इसका तर्क है कि पश्चिमी शक्तियां इतने तरह की चुनौतियों का कोई प्रभावी हल पाने में नाकामयाब रह जाएंगी और जिहादियों को कभी हरा नहीं पाएंगी। नतीजतन, इस अस्त-व्यस्त माहौल वाले शून्य का फायदा उठाकर जिहादी शरिया कानून मानने वाले साम्राज्य की स्थापना कर पाएंगे।

इसकी बहुत संभावना है कि आईएस नेता अल-बगदादी इसी नीति पर चल रहा है। अगर ऐसा है तो जिहादी ना सिर्फ पश्चिम बल्कि अरब देशों को भी उकसाना चाहते हैं और वे इसे आगे भी और बढ़ावा देने वाले हैं। अल-बगदादी को पता है कि पश्चिम और अरब देश साथ आकर भी केवल हवाई हमले ही कर सकते हैं क्योंकि जमीनी लड़ाई के लिए उनके पास पर्याप्त राजनैतिक समर्थन नहीं है। ऐसा मानना कई सैन्य जानकारों का भी है कि इस्लामिक स्टेट कहलाने वालों के खिलाफ लड़ाई केवल हवा से नहीं जीती जा सकती।

अब पूरा विश्व एक ऐसे श्राप को झेलने को विवश है कि उसे मानव इतिहास के सबसे बर्बर अध्याय का नमूना देखना पड़ेगा। अंत तो इनका भी निश्चित है, जब यह इस्लामिक स्टेट खुद ही जल कर राख हो जाएगा, लेकिन शायद इसमें सालों लग जाएं।

ग्रैहम लूकस/आरआर