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Last Modified: शनिवार, 10 दिसंबर 2016 (11:51 IST)

जर्मनी में ईसाई बन रहे हैं रिफ्यूजी मुसलमान

जर्मनी में ईसाई बन रहे हैं रिफ्यूजी मुसलमान - German refugee Muslim adopted Christianity
अपने मुल्क छोड़कर जर्मनी आए कुछ मुसलमान ईसाई धर्म अपना रहे हैं। ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा तो नहीं है पर बढ़ रही है। सबकी वजहें भी अलग अलग हैं।
बर्लिन के एक चर्च में वेरोनिका, फरीदा और माटिन सफेद कपड़े पहने खड़े थे। वे लोग अपना धर्म बदलने आए थे। वे जर्मन नहीं थे। शरणार्थी थे। उनका धर्म इस्लाम था। पादरी मथियास लिंके ने उनसे पूछा, "क्या आप दिल की गहराइयों से इस बात में यकीन करते हैं कि ईसा मसीह आपके ईश्वर पुत्र हैं? क्या आप रोजाना उसका अनुसरण करेंगे?"
 
तीनों ने पूरे उत्साह से "हां" कहा। मौजूद लोगों ने तालियां बजाईं और उनका बैप्टिज्म किया गया। ईरानी मूल के 20 साल के मतीन इतने खुश थे कि अपनी बात जाहिर तक नहीं कर पा रहे थे।, "मैं बहुत बहुत खुश हूं। मुझे क्या महसूस हो रहा है, मैं कैसे बताऊं।" ऐसा कई मुस्लिम शरणार्थी कर चुके हैं। 2015 में जर्मनी में लगभग नौ लाख शरणार्थी आए हैं। चर्च के अधिकारियों का कहना है कि बहुत बड़ी संख्या में तो नहीं लेकिन लोग धर्म बदल रहे हैं। हालांकि कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया गया है।
 
दक्षिण-पश्चिम जर्मनी के स्पेयर में एक चर्च के पादरी फेलिक्स गोल्डलिंगर बताते हैं, "हमारे चर्च में ऐसे कई शरणार्थी समूह हैं जो धर्मांतरण की तैयारी कर रहे हैं। और ऐसी अर्जियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।" गोल्डलिंगर कहते हैं कि ज्यादातर लोग ईरान और अफगानिस्तान के हैं लेकिन कुछ सीरिया या इरिट्रिया के भी हैं।
 
ऐसा नहीं है कि इन्हें एकदम ईसाई बना दिया जाता है। धर्मांतरण की तैयारी लगभग एक साल तक चलती है। इस दौरान धर्मांतरण चाहने वाले लोगों से कहा जाता है कि वे धर्म बदलने की अपनी इच्छा को खूब ठोक-बजाकर देख लें। गोल्डलिंगर बताते हैं, "जरूरी है कि इस दौरान ये लोग वे अपने धर्म इस्लाम को जांचें परखें और उन कारणों पर विचार करें जो उन्हें ईसाइयत अपनाने को तैयार कर रहे हैं। जाहिर है हम खुश हैं कि लोग ईसाइयत अपना रहे हैं। लेकिन यह बहुत जरूरी है कि वे अपने फैसले को लेकर पूरी तरह सुनिश्चित हों।"
 
लिंके बताते हैं कि धर्मांतरण करने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं जो ईरान में चर्च के संपर्क में थे लेकिन वहां धर्मांतरण पर पाबंदी है। इसलिए उन्हें वहां से भागना पड़ा। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो यूरोप के रास्ते में ईसाइयों से मिले। ऐसा ही मामला 31 साल के इंजीनियर सईद का है जो चार महीने तक तुर्की में रहे हैं। अफगानिस्तान से आए सईद तुर्की में ईसाइयों के संपर्क में आए और तब ईसाइयत में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी।
 
वह कहते हैं, "बाइबिल पढ़ने से मुश्किल वक्त में सहारा मिला।" मतीन ईसाइयों के संपर्क में ग्रीस में आए। जब वह जर्मनी पहुंचे तो अपने जर्मन दोस्तों की मदद से चर्च से संपर्क किया। उनकी बहन फरीदा ने भी उनका अनुसरण किया और दोनों भाई-बहनों ने ईसाई धर्म अपनाने का फैसला कर लिया।
 
चर्च के अधिकारी इस बात से इनकार नहीं करते कि कुछ मामलें में धर्मांतरण के पीछे दूसरी वजह भी हैं जैसे कि इससे वे जर्मन समाज में जल्दी घुल मिल जाएंगे या फिर उनके शरण पाने की संभावना बढ़ जाएगी।
- वीके/एके (एएफपी)
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