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Last Modified: बुधवार, 27 जनवरी 2016 (14:16 IST)

ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार

ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार - counterfeit goods of online market in india
भारत में ऑनलाइन खरीद-फरोख्त के तेजी से बढ़ते बाजार में अब चोरी की और नकली वस्तुओं की भी भरमार होने लगी है। कारोबारी संगठन फिक्की और अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म ग्रांट थोर्नटन के एक हालिया सर्वेक्षण में इसका खुलासा हुआ है।
फिक्की और ग्रांट थोर्नटन की ओर से "इमर्जिंग चैलेंजेज टू लेजिटिमेट बिजनेस इन द बार्डरलेस वर्ल्ड" शीर्षक इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में आनलाइन खरीद-फरोख्त का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन इसका लाभ उठा कर कुछ लोग और कंपनियां ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी में जुटी हैं। कारोबार बढ़ने के साथ ही ऑनलाइन बाजार क्रमशः नकली वस्तुओं की लेन-देन का केंद्र बनता जा रहा है।
 
ग्रांट थोर्नटन इंडिया की पार्टनर विद्या राजाराव कहती हैं, "नकली व चोरी की वस्तुएं बेचने वालों ने ऑनलाइन बाजार को अपने मुनाफे का नया रास्ता बना लिया है। इस बाजार के सहारे ऐसी वस्तुएं बेचने वाले लाखों ग्राहकों तक पहुंच सकते हैं।" वह कहती हैं कि ठोस कानून के अभाव में ऑनलाइन कारोबार आसानी से इस अवैध व्यापार का शिकार बन रहा है।
 
अलग कानून की मांग : विद्या राजाराव कहती हैं, "ई-कॉमर्स के लिए एक अलग कानून जरूरी है।" खुदरा बिक्रेता अपने हितों की रक्षा के लिए पहले से ही केंद्र सरकार से एक अलग कानून बनाने की मांग करते रहे हैं। रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (आरएआई) अब ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की लेन-देन में वृद्धि के मुद्दे पर भी सक्रिय हो रही है। एसोसिएशन के प्रमुख कुमार राजगोपालन का आरोप है कि इस बारे में कोई ठोस कानून नहीं होने की वजह से कुछ बेईमान व्यापारी मौके का फायदा उठा रहे हैं।
 
इसी कानून के अभाव में ई-कॉमर्स कंपनियां नकली वस्तुओं की बिक्री की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ ले रही हैं। वह कहते हैं, "70 फीसदी ग्राहक बिक्रेता के तौर पर इन कंपनियों के नाम ही जानते हैं। लेकिन यह कंपनियां सामान नकली होने की सूरत में उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेतीं।" इसका खामियाजा ग्राहकों को उठाना पड़ता है।
 
भ्रामक स्थिति : ई-कॉमर्स से जुड़े कानून के मुद्दे पर केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में भी भ्रम की स्थिति है। खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है। लेकिन ई-कॉमर्स कंपनियों में खुल कर विदेशी निवेश होता है। रिटेलर्स एसोसिएशन ने इस भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ बीते नवंबर में दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामला दायर किया था। उसके आधार पर अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय को 21 ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ जांच का आदेश दिया है।
 
अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय को इस बात की भी जांच करने को कहा है कि यह कंपनियां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कानून का उल्लंघन कर रही हैं या नहीं। दूसरी ओर, डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक पालिसी एंड प्रोमोशन (डीआईपीपी) ने रिटेलर्स एसोसिएशन से कहा है कि वह ई-कॉमर्स की ओर से घोषित बाजार को मान्यता नहीं देती, लेकिन इस बारे में कोई ठोस नीति नहीं होने की वजह से वह आगे कोई कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है।
 
कार्रवाई का अधिकार नहीं : ऑनलाइन बाजार में नकली वस्तुओं की बिक्री की ढेरों शिकायत के बावजूद उपभोक्ता सुरक्षा मंत्रालय उनको कोई सजा देने में अक्षम है। इसकी वजह यह है कि अधिकांश मामलों में असली बिक्रेता का पता नहीं चलता। दूसरी ओर, कानून की नजर में ई-कॉमर्स कंपनियों के विक्रेता नहीं होने की वजह से उसके खिलाफ भी कोई कार्रवाई संभव नहीं है। उधर, ई-कॉमर्स कंपनियों का दावा है कि वे इस समस्या से अवगत हैं और इस पर अंकुश लगाने के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रही हैं। फ्लिपकार्ट के वरिष्ठ अधिकारी अंकित नागोरी कहते हैं, "कंपनी में विक्रेताओं के लिए त्रिस्तरीय रेटिंग प्रणाली है। इसको भेदना सहज नहीं है।" एक अन्य कंपनी ई-बे का दावा है कि 50 हजार विक्रेताओं के लिए एक कार्यक्रम चलाया जाता है। अमेजन ने इस मुद्दे पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
 
तमाम दावों के बावजूद आखिरी सच यह है कि ऐसे सभी मामलों में नुकसान आम उपभोक्ता का ही होता है। तमाम पक्ष इसकी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल कर मुक्त हो जाते हैं। फिक्की के महासचिव ए। दीदार सिंह कहते हैं, "इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए एक नया कानून बनाना बेहद जरूरी है। ऐसा जितनी जल्दी हो, आम उपभोक्ताओं के हित में उतना ही बेहतर है।"
 
रिपोर्ट : भास्कर