शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. alexander gerst interview
Written By
Last Updated : मंगलवार, 11 नवंबर 2014 (12:21 IST)

अंतरिक्ष से सीमाओं का कोई महत्व नहीं

अंतरिक्ष से सीमाओं का कोई महत्व नहीं - alexander gerst interview
छह महीने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन आईएसएस में बिताने के बाद अलेक्जांडर गैर्स्ट धरती पर लौट आए हैं। जर्मन अंतरिक्ष संस्थान डीएलआर के अध्यक्ष योहान डीटरिष वोएर्नर का कहना है कि गैर्स्ट की वापसी उत्साह और डर से भरी हुई थी।

*डॉयचे वेले: गैर्स्ट हंसी खुशी वापस लौट आए हैं। जर्मनी के आईएसएस मिशन के पूरा होने पर आप कैसा महसूस कर रहे हैं?
वोएर्नर: आज सुबह हमने राहत की सांस ली। योजनानुसार सुबह 4.58 पर वह जमीन पर उतरे। इसमें ढेर सारे जोखिम होते हैं। अंतरिक्ष यान को सही एंगल पर पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करना होता है, ब्रेक का सही तरह काम करना जरूरी है, पैराशूट का ठीक से खुलना भी। यह सब खुदबखुद नहीं होता। इसलिए अब जब लैंडिंग हो गयी है तो मैं राहत की सांस ले पा रहा हूं।

*डॉयचे वेले:क्या हमेशा ही इस तरह से डर लगता है?
वोएर्नर: जी बिलकुल, आपके पास जिम्मेदारी होती है और इसलिए डर भी। ये दोनों हमेशा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। लॉन्च के वक्त भी मैंने यही अनुभव किया था और अब भी। लोगों के प्रति आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है।

*डॉयचे वेले:अलेक्जांडर गैर्स्ट जब कोलोन लौटेंगे, तो उन पर प्रयोगशाला में टेस्ट किए जाएंगे। किस तरह के टेस्ट हैं ये?
वोएर्नर: गैर्स्ट ने वहां कई तरह के प्रयोग किए हैं, खास तौर से उम्र के बढ़ने पर। मिसाल के तौर पर त्वचा कैसे बूढ़ी होने लगती है, हड्डियों पर उम्र का क्या असर होता है। अंतरिक्ष में ये दोनों ही प्रक्रियाएं काफी तेजी से होती हैं। एक तरफ यह शोध का विषय है और दूसरी तरफ अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चिंता का विषय भी। अब हमें एक एक कर के गैर्स्ट को पृथ्वी के वातावरण के अनुकूल जांचना होगा। छह महीने बाद शरीर को इस माहौल की आदत छूट जाती है। अंतरिक्ष में रहने के कारण शरीर को गुरुत्वाकर्षण की आदत नहीं रही। सर से ले कर पैर तक अब एक बार फिर संतुलन बनाना होगा। इसलिए जरूरी है कि शरीर की हर गतिविधि को जांचा जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह भविष्य में स्वस्थ रह सकेंगे।

*डॉयचे वेले: गैर्स्ट की यात्रा के दौरान आपने कई बार टेलीफोन पर उनसे बात की है। इस बातचीत में आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या रहा?
वोएर्नर: वहां जाते ही वह विज्ञान संबंधी काम में लग गए। उन्होंने वहां से कई तस्वीरें भी भेजीं जो सोशल मीडिया में भी देखी गयी। यह सही भी है, वह इसीलिए वहां गए थे ताकि बता सकें कि अंतरिक्ष से पृथ्वी कैसी दिखती है। लेकिन एक बात उन्होंने बार बार कही कि धरती पर ये जो सीमाएं हमारे लिए इतना ज्यादा महत्व रखती हैं, वहां ऊपर से तो उन्हें पहचाना भी नहीं जा सकता। सीमाओं पर ध्यान देना भी गैर्स्ट के काम का एक हिस्सा था और वह कहा करते थे कि युद्ध की स्थिति उन्हें बेहद परेशान करती है। मेरे ख्याल में यह एक अहम पहलू है।

*डॉयचे वेले: अलेक्जांडर गैर्स्ट अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर रहे। लेकिन अंतरिक्ष यात्रा का असली मकसद दूर दराज जगहों पर जाना है। तो अब यह यात्रा किस ग्रह की ओर जाएगी?
वोएर्नर: मुझे यकीन है कि एक दिन इंसान मंगल पर जरूर पहुंचेगा। आज हमारे पास जो तकनीक है, उसके चलते धरती से मंगल तक जाने और लौटने में दो साल का वक्त लगता है। हम कह सकते हैं कि गैर्स्ट छह महीने अंतरिक्ष में थे, तो फिर डेढ़ साल और बिताना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन यही सबसे बड़ी चुनौती है। अगर आईएसएस पर किसी की तबियत बिगड़ती है तो कुछ घंटों के भीतर ही उसे वापस धरती पर लाया जा सकता है। लेकिन अगर मंगल की यात्रा के दौरान कुछ हो जाए, तो दो साल लग जाएंगे। अभी हमारे पास इस चुनौती का सामना करने की तकनीक नहीं है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगले बीस से तीस साल में ऐसा संभव हो सकेगा।