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Last Modified: मंगलवार, 30 जून 2015 (19:35 IST)

वैश्विक अर्थव्यवस्था फंस सकती है मंदी के भंवर में

वैश्विक अर्थव्यवस्था फंस सकती है मंदी के भंवर में - greece crisis
एथेंस। यूनान ऋण संकट के समाधान के लिए जारी प्रयासों के बावजूद कोई हल नहीं निकलने पर यूनान के यूरो जोन से बाहर होने और उसे दिवालिया होने का खतरा बढ़ गया है तथा मंदी से उबरने की कोशिश कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के फिर से इस भंवर में फंसने की आशंका हावी होने लगी है।
 
यूनान में बैंकों और एटीएम मशीनों को बंद किए जाने का आम लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है। लोग इसके विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे है। सरकार ने लोगों के तेजी से धन निकासी को प्रतिबंधित करने तथा देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए रविवार को बैंक और एमटीएम को बंद कर दिया था।
यूरोपीय संघ ने यूरोजोन में गहराए इस संकट का हल निकालने के लिए यूनान के प्रधानमंत्री एलेक्सी सिप्रास के सामने अंतिम समय में बेलआउट प्रस्ताव रखा है। हालांकि सिप्रास इस बेलआउट प्रस्ताव की शर्तों को यूनान के लिए अपमानजनक बताते हुए पहले भी खारिज कर चुके हैं और सरकारी सूत्रों ने सिप्रास के पुराने निर्णय पर अडिग रहने की बात कही है।
 
यूरोपीय संघ के अध्यक्ष जीन क्लाउड जंकर ने कहा था कि यदि सिप्रास रविवार को होने वाले जनमत संग्रह में बेलआउट पैकेज के पक्ष में प्रचार करने का लिखित आश्वासन दें तो मंगलवार को यूरोजोन के वित्तमंत्रियों की आपात बैठक बुलाई जा सकती है और यूनान को दिवालिया होने से बचाने के उपायों पर विचार किया जा सकता है। जंकर ने यूनान में होटलों पर 13 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाने का भी शर्त रखा था।
 
यूनान के प्रधानमंत्री ने आज देश की आधिकारिक टेलीविजन पर अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा कि वह जनमत का सम्मान करेंगे, लेकिन यदि लोगों ने बेलआउट के पक्ष में मत दिया तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने कहा कि यदि यूनान के लोग अपमानित प्रधानमंत्री चाहते हैं तो इसके लिए कई अन्य लोग उपलब्ध हैं। मैं इनमें से नहीं हो सकता।
 
इस बीच, राजधानी एथेंस में लोगों ने सड़कों पर रैलियों का आयोजन किया जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री के बेलआउट पैकेज के ठुकराने का समर्थन किया।
 
फ्रांस के वित्तमंत्री मिशेल सपिन ने कहा कि यह अनिश्चितता का जनमत है। यदि लोगों ने पैकेज के पक्ष में मत दिया तो आगे बातचीत होगी और यदि इसके विपक्ष में मत दिया गया तो आगे क्या होगा अभी कहना संभव नहीं है।
 
उन्होंने सोमवार को शेयर बाजारों में हुई भारी गिरावट को सामान्य बताते हुए कहा कि अन्य यूरोपीय देशों के लिए यह अचानक आने वाली आर्थिक संकट नहीं होगा।
इटली के प्रधानमंत्री मैत्यो रेंजी ने जनमत पर टिप्पणी देते हुए कहा कि इसे सिप्रास और जंकर या जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के बीच का चुनाव नहीं बनाया जाना चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि यह यूरोपीय नेताओं का चुनाव नहीं है बल्कि यूरो और यूनान की मुद्रा ड्राच्मा का चुनाव है। यूनान के लोगों को यह नहीं बताना है कि वह अपने प्रधानमंत्री को ज्यादा पसंद करते हैं या यूरोपीय संघ के अध्यक्ष को। उन्हें यह फैसला करना है कि वे यूरोजोन में रहना चाहते हैं या नहीं।
 
उल्लेखनीय है कि यूनान 2010 से अबतक यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 240 अरब यूरो का बेलआउट ले चुका है। उसे मंगलवार तक आईएमएफ को 1.6 अरब यूरो का भुगतान करना है, लेकिन वहां के अधिकारियों ने यह भुगतान करने से साफ मना कर दिया। यूनान की नई वामपंथी सरकार का कहना है कि इन बेलआउट पैकेजों से यूनान को कोई फायदा नहीं हुआ है। इससे जर्मनी और फ्रांस के बैंकों को फायदा हुआ है।
 
2009 से अबतक यूनान की अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि वहाँ बेरोजगारी की दर भी बढ़कर 25 प्रतिशत पर पहुँच गई है। यूनान की सरकार ने इस संकट के लिए जर्मनी को जिम्मेदार बताया है। (वार्ता)