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Last Modified: नई दिल्ली , गुरुवार, 12 जनवरी 2017 (15:08 IST)

ईंधन की मांग में कमी से वृद्धि पर होगा असर

ईंधन की मांग में कमी से वृद्धि पर होगा असर - Fuel demand reduction
भारत में विमुद्रीकरण के असर के तौर पर नकदी में हुई कमी के चलते वर्ष 2017 के दौरान ईंधन की मांग में पिछले वर्ष की तुलना में करीब चालीस फीसदी की कमी होगी। नकदी की कमी से कारोबार, उद्योग और कारों की बिक्री में कमी के तौर पर सामने आई है। उर्जा क्षेत्र की सलाहकार कंपनी वुड मैंकेंजी का कहना है कि दुनिया के तीसरे बड़े तेल उपभोक्ता देश, भारत, में तेल उपभोग में आने वाली कमी भले ही अस्थायी होगी लेकिन इसका विपरीत असर अवश्य पड़े बिना नहीं रहेगा।
पिछले वर्ष (2016) में इंधन की मांग पेट्रोल, एविएशन फ्यूल और तेल में सोलह वर्ष में सबसे ज्यादा थी लेकिन इस वर्ष इस तेल उत्पाद की मांग प्रतिदिन 1,60,000 बैरल तक रह जाएगी जबकि पिछले वर्ष यह मांग 2 लाख 70 बैरल प्रतिदिन थी। नोटबंदी के चलते न केवल भारत का सकल उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा वरन उपभोक्ता मांग का नीचे जाना तय है। पिछले महीने में कारों की बिक्री में कमी सोलह वर्ष में सबसे ज्यादा है। कारोबारियों और विश्लेषकों का मानना है कि भारी औद्योगिक वाहनों में काम आने वाले डीजल का उपभोग और पावर कारों में पेट्रोल की खपत की गिरावट वर्ष की पहली तिमाही ही में देखने को मिल जाएगी।
 
वर्ष 2017 की पहली तिमाही में डीजल की मांग में केवल दो फीसदी बढ़ोतरी होगी जबकि पिछले वर्ष (2016) के पहले दस महीनों में यह बढ़ोतरी 5 फीसदी थी। विदित हो कि अमेरिका से शुरू हुए ग्लोबल वित्तीय संकट के चलते अक्टूबर-दिसंबर 2008 तिमाही और जनवरी-मार्च 2009 तिमाही में देश की ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी) ग्रोथ 5.8% रह गई थी। नोटबंदी के चलते पिछले तीन महीनों की ग्रोथ उससे भी कम हो सकती है। इतना ही नहीं, इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर 2016 से मार्च 2017 के बीच ग्रोथ 2-5% के बीच रह सकती है।
 
जीडीपी सिर्फ एक संख्या नहीं है। जीडीपी ग्रोथ में अचानक बड़ी गिरावट आने पर कंपनियों का मुनाफा घट जाता है, वे कम लोगों को काम पर रखती हैं और कई कंपनियां छंटनी भी करती हैं। जब लोगों को नौकरी बने रहने का भरोसा नहीं रहता, तब वे कंजूसी से पैसे खर्च करते हैं। 2008-09 में हम यह देख चुके हैं।
 
हाल में कई ऐसे आंकड़े आए हैं, जो ग्लोबल आर्थिक संकट की याद दिला रहे हैं। मसलन सर्विस सेक्टर को लीजिए, जिसमें दूरसंचार और बैंकिंग जैसे क्षेत्र आते हैं। देश की अर्थव्यवस्था में इसका 60% योगदान है लेकिन इसका हाल बताने वाला निक्केई इंडिया सर्विसेज परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) पिछले दो महीनों से मंदी में है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का भी ऐसा एक सूचकांक है, जो दिसंबर में ही मंदी में चला गया।
 
उधर कोयला, कच्चा तेल, गैस, पेट्रोल-डीजल जैसे रिफाइनरी प्रॉडक्ट्स, खाद, स्टील, सीमेंट, बिजली जैसे 8 क्षेत्रों वाले कोर सेक्टर का उत्पादन पिछले साल नवंबर में 4.9% बढ़ा लेकिन इस पर नोटबंदी की चोट दिसंबर के आंकड़ों में नजर आएगी, जिसका ऐलान इस महीने की आखिरी तारीख को किया जाएगा।
 
इसमें भी कंजम्पशन ग्रोथ का संकेत देने वाले स्टील और सीमेंट सेक्टर की हालत बहुत खराब है. नवंबर में स्टील उत्पादन 5.6% बढ़ा, जिसमें अगस्त-अक्टूबर के बीच 17% की बढ़ोतरी हुई थी। पर नवंबर में सीमेंट प्रॉडक्शन सिर्फ आधा पर्सेंट बढ़ा। 2008-09 में कोर सेक्टर की ग्रोथ 2.7% थी। वित्त वर्ष 2017 में इसका आंकड़ा और भी नीचे रहे तो चौंकने की बजाय अफसोस करने की बात होगी।
 
इंडस्ट्री की नब्ज बताने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में कोर सेक्टर का वेटेज 38% है और उसका भी चक्का जाम है। आईआईपी में पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर तक 0.3% की गिरावट आई थी, जबकि एक साल पहले की इसी अवधि में यह 4.8% बढ़ा था। 2008-09 में इसमें 2.6% की बढ़ोतरी हुई थी यानी इस मामले में भी हाल वैश्विक आर्थिक संकट वाले दौर से बुरा है।
 
2008-09 संकट से भी देश दो तिमाहियों के बाद बाहर आ गया था, लेकिन उसके लिए सरकार को उद्योगों को टैक्स छूट देनी पड़ी थी। रिजर्व बैंक ने तब ब्याज दरों में कई बार कटौती की थी, ताकि सस्ते लोन से निवेश बढ़े और लोग हाथ खोलकर पैसे खर्च करें। नोटबंदी के बाद लोगों के पास बहुत कम कैश आ रहा है और इससे कंजम्पशन में जैसी कमी आई है, वैसी 2008-09 में भी नहीं दिखी थी। कंजम्पशन भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी ताकत है। जब तक इसमें बढ़ोतरी नहीं होती, कंपनियां निवेश नहीं करेंगी, जो अर्थव्यवस्था की दुखती रग है। सिर्फ सरकार के खर्च बढ़ाने से जीडीपी ग्रोथ में तेजी नहीं आएगी। वैसे भी उसे वित्तीय घाटे को काबू में रखना है।
 
8 नवंबर से लागू हुई नोटबंदी की मार ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर भी पड़ी है। इस सेक्टर में 16 साल में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। घरेलू बाजार में यात्री वाहनों की बिक्री दिसंबर महीने में 1.36 प्रतिशत घटकर 2,27,824 वाहन रही। एक साल पहले इसी महीने में 2,30,959 यात्री वाहन बेचे गए थे। घरेलू बाजार में कारों की बिक्री दिसंबर में 8.14 प्रतिशत घटकर 1,58,617 वाहन रही।
 
दिसंबर 2015 में 1,72,671 कारों की बिक्री घरेलू बाजार में हुई थी। वाहन विनिर्माताओं के संगठन ‘सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स (SIAM) की ओर से जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। दिसंबर 2016 में मोटरसाइकिलों की बिक्री भी 22.5 प्रतिशत घटकर 5,61,690 इकाई रही जबकि एक साल पहले इसी माह में 7,24,795 मोटरसाइकिलें बेची गईं थीं। 
 
अगर सभी तरह के दोपहिया वाहनों की बात की जाए तो दिसंबर में इनकी बिक्री 22.04 प्रतिशत घटकर 9,10,235 इकाई रही, जबकि एक साल पहले इसी महीने में 11,67,621 दुपहिया वाहनों की बिक्री हुई थी। दिसंबर में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री भी 5.06 प्रतिशत कम होकर 53,966 इकाई रही। एक साल पहले दिसंबर में 56,840 वाणिज्यिक वाहन बेचे गए थे।
 
कुल मिलाकर दिसंबर माह में सभी तरह के वाहनों की बिक्री में 18.66 प्रतिशत की कमी आई और यह 12,21,929 रही, जबकि दिसंबर 2015 में कुल मिलाकर 15,02,314 वाहन बेचे गए थे। दिसंबर 2000 के बाद ये सबसे ज्यादा गिरावट है जब सेल्स में 21.81 फीसदी की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई थी। सियाम के निदेशक विष्णु माथुर ने बताया कि नोटबंदी के चलते नेगेटिव कंज्यूमर सेंटिमेंट के कारण इतनी गिरावट आई।
 
नकदी की कमी से कृषि और अन्य छोटे से मध्यम आकार के सेक्टरों की वृद्धि प्रभावित हुई है लेकिन ये सभी क्षेत्र नकदी पर सर्वाधिक निर्भर रहते हैं। डीजल की मांग वर्ष 2017 की पहली तिमाही में केवल 2 फीसदी बढ़ने की संभावना है जबकि एक वर्ष पहले की समान अवधि में यह पांच फीसदी थी। तेल की वास्तविक मांग में बढ़ोतरी भी अनुमान से कम होने की संभावना है।
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