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Written By वार्ता

आखिर कैसी थी 1930 की महामंदी

आखिर कैसी थी 1930 की महामंदी -
अमेरिका से शुरू हुए मौजूदा आर्थिक संकट की तुलना 1930 की महामंदी से की जा रही है। उसकी शुरुआत भी अमेर‍िका से हुई थी और उसने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था।

वर्ष 1923 में अमेरिका का शेयर बाजार चढ़ना शुरू हुआ और चढ़ता ही चला गया। लेकिन 1929 तक आते-आते अस्थिरता के संकेत आने लगे। आखिरकार वह बुलबुला फूटा 24 अक्टूबर 1929 को। एक दिन में करीब पाँच अरब डॉलर का सफाया हो गया। अगले दिन भी बाजार का गिरना जारी रहा।

29 अक्टूबर 1929 को अमेरिकी शेयर बाजार फिर लुढ़का और 14 अरब डॉलर का नुकसान दर्ज किया गया। बाजार बंद होने तक 12 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी थी। लाखों लोगों की बचत हवा हो गई। इसे ब्लैक ट्यूजडे के नाम से भी जाना जाता है।

जुलाई 1932 तक यही सिलसिला चलता रहा जब शेयर बाजार 1929 के चरम से 89 प्रतिशत नीचे आ चुका था। शेयर को संभलने में वर्षों लगे। 1930 की महामंदी का कोई एक कारण नहीं था, लेकिन बैंकों का विफल होना और शेयर बाजार की भारी गिरावट को प्रमुख कारण माना जाता है, जिससे शेयरधारकों के 40 अरब डॉलर का सफाया हो गया।

मंदी की इस आँधी में 9000 बैंकों का दिवाला निकल गया। बैंक में जमा राशि का बीमा न होने से लोगों की पूँजी खत्म हो गई। जो बैंक बचे रहे उन्होंने पैसे का लेन-देन रोक दिया। लोगों ने खरीदारी बंद कर दी, जिससे कंपनियाँ बंद होने लगीं। नौकरियाँ जाने लगी।

आर्थिक मंदी के इस वातावरण में अमेरिकी सरकार ने अपनी कंपनियों के संरक्षण के लिए हाली स्मूट टैरिफ लागू किया, जिससे आयात कर बहुत बढ़ गया। अन्य देशों ने भी जवाबी कार्रवाई की।

1930 की महामंदी का पूरी दुनिया पर असर हुआ, ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था कृषि और औद्योगिक उत्पादों के निर्यात पर निर्भर थी, इसलिए उस पर सबसे अधिक असर पड़ा। कनाडा में औद्योगिक उत्पादन 58 प्रतिशत कम हो गया और राष्ट्रीय आय 55 प्रतिशत गिर गई।

फ्रांस काफी हद तक आत्मनिर्भर था इसलिए उस पर महामंदी का असर कम हुआ, लेकिन फिर भी बेरोजगारी बढ़ने से दंगे हुए और समाजवादी पापुलर फ्रंट का उदय हुआ।

जर्मनी पर मंदी का गहरा असर पड़ा क्योंकि जिस अमेरिकी ऋण से अर्थव्यवस्था का पुर्ननिर्माण हो रहा था, वह मिलना बंद हो गया।

चिली, बोलिविया और पेरू जैसे लातिन अमेरिकी देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। एक असर ये हुआ कि वहाँ फाँसीवादी आंदोलन शुरू हो गए।

पूँजीवादी शक्तियों से स्वयं को दूर रखने की कोशिश में सोवियत संघ पर इस महामंदी का असर बहुत कम हुआ और उसे मार्क्सवाद के सिद्धांत को सही साबित करने का मौका मिल गया।