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Last Modified: सोमवार, 7 नवंबर 2016 (21:47 IST)

पृथ्वी जैसा सबसे नज़दीकी ग्रह

पृथ्वी जैसा सबसे नज़दीकी ग्रह - Earth, Planet, Galaxy
'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' अब तक मिले बाह्यग्रहों में पृथ्वी के अधिकतम सदृश्य और ऐसा निकटतम ग्रह है, जहां जीवन की संभावनाएं भी हो सकती हैं।   
 
'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी', जिसे अल्फ़ा सेंटाउरी के नाम से भी जाना जाता है, हमारे सौरमंडल का न केवल सबसे निकटवर्ती पड़ोसी तारा है, हमारे सूर्य की तरह ही उसका भी अपना एक ग्रहमंडल है। पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से दिखाई पड़ने वाला यह तारा हमारे सूर्य से लगभग सवा चार प्रकाश वर्ष दूर है (1 प्रकाश वर्ष = 94 खरब 60 अरब 73 करोड़ किलोमीटर से कुछ अधिक)। यूरोप और अमेरिका से वह दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए उसकी खोज 1915 से पहले नहीं हो पाई थी। इस खोज के लगभग सौ वर्ष बाद अब पता चला है कि उसके ग्रहमंडल में एक ऐसा भी ग्रह है, जो हमारे सौरमंडल के बाहर अब तक खोजे गए सभी बाह्यग्रहों की अपेक्षा हमारी पृथ्वी से सबसे अधिक मिलता-जुलता होना चाहिए –  इतना अधिक कि वहां कई-कई किलोमीटर गहरा महासगर भी हो सकता है, और जीवन भी!  
 
अभी पिछले अगस्त महीने में ही ढूंढ निकाले गए इस ग्रह को वैज्ञानिकों ने फ़िलहाल 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' नाम दिया है। उसका अभी तक कोई सीधा फ़ोटो नहीं लिया जा सका है, बल्कि एक अति उच्चकोटि के वर्णक्रमलेखी (स्पेक्ट्रोगाफ़) की सहायता से उसके सूर्य वाले प्रकाश के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में होने वाले विचलन (शिफ़्ट) के अध्ययन से उसकी विशेषताओं को जानने का प्रयास किया गया है। फ्रांसीसी शोध संस्थान 'सीएनआरएस' के खगोल वैज्ञानिकों ने, इस अध्ययन से उसके बारे में अब तक ज्ञात आंकड़ों के आधार पर, कंप्यूटर अनुकरणों (सिम्युलेशन) के द्वारा उसके आकार-प्रकार और संभावित बनावट के कुछ मॉडल अभिकल्पित किए हैं। अक्टूबर को उन्होंने बताया कि 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' लगभग उतना ही बड़ा और भारी ग्रह है, जितनी बड़ी और भारी हमारी पृथ्वी है। हमारी पृथ्वी की तरह ही उस पर भी तरल पानी के महासागर हो सकते हैं अतः वहां किसी न किसी रूप में जीवन का होना भी संभव है।
 
पृथ्वी के साथ कई समानताएं
'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' की खोज के बारे में अगस्त में जब पहला समाचार दिया गया था, तब कहा गया था कि वह हमारी पृथ्वी की अपेक्षा 1.3 गुना भारी होना चाहिए। 'सीएनआरएस' के खगोलविदों का कहना है कि उसका अर्धव्यास (त्रिज्या/रेडियस) हमारी पृथ्वी के 0.94 से लेकर 1.4 गुने के बराबर (5990 से 8920 किलोमीटर) तक हो सकता है। पृथ्वी का अर्धव्यास 6371 किलोमीटर है। 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' का अर्धव्यास यदि इन दोनों में से न्यूनतम अनुपात, यानी 0.94 के बराबर हुआ, तब तो वह पृथ्वी से भी कहीं ठोस एक ऐसा ग्रह होना चाहिए, जिस के दो-तिहाई भार वाला क्रोड़ (केंद्रक) धातु का और उसके ऊपर का आवरण ठोस चट्टानों का बना होगा। उस पर यदि पानी हुआ, तो इस अवस्था में उसके पानी का अनुपात उसके कुल द्रव्यमान (भार) के 0.05 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। हमारी पृथ्वी पर यह अनुपात 0.02 प्रतिशत के बराबर है।
 
किंतु 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' का अर्धव्यास यदि हमारी पृथ्वी के अर्धव्यास के 1.4 गुने के आसपास हुआ, तो उसका आधा वज़न पानी के रूप में और दूसरा आधा चट्टानी क्रोड़ के रूप में होना चाहिए। इस अवस्था में उस पर 200 किलोमीटर तक गहरे महासागर ठांठे मार रहे होंगे। इतने गहरे पानी के भार से तलहटी के पास का पानी जमकर ठोस बर्फ बन गया होगा। हमारी पृथ्वी पर सबसे अधिक महासगरीय गहराई लगभग 10 किलोमीटर के बराबर है।  
 
('प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' के भीतरी क्रोड़ और बाहरी पर्पटी के बीच संभावित अनुपात का मॉडल ; बीच का चित्र पृथ्वी का मॉडल है)
 
जीवन-धारण की क्षमता पर संदेह 
फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की गणनाएं कहती हैं कि उपरोक्त दोनों अवस्थाओं में 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' पर जीवन पनपने लायक एक झीना वायुमंडल भी हो सकता है, किंतु कुछ दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी और वायुमंडल होने पर भी यह ज़रूरी नहीं है कि वहां जीवन भी होना चाहिए। उसका सू्र्य, यानी 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी' तारा, हमारे सूर्य से कई गुना छोटा एक ऐसा 'लाल बौना' (रेड ड्वार्फ़) है, जो ज़ोरदार अल्ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी) और एक्स रे (क्ष-किरणों) के रूप में अपनी ऊर्जा के फ़व्वारे उछाल कर ठंडा हो रहा है। इन वैज्ञानिकों का मत है कि ग्रह का यदि अपना कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं हुआ, जो इस विकिरण से बचाव कर सके, तो उसकी बौछार से वहां कोई जीवन पनप ही नहीं सकता। 'लाल बौना' ऐसे तारों को कहा जाता है, जिनकी द्रव्यराशि हमारे सूर्य की द्रव्यराशि के 40 से 60वें हिस्से के बराबर ही है और जो इस तरह ठंडे पड़ रहे हैं कि उनका प्रकाश अवरक्त (इन्फ्रारेड) किरणों के रूप में हमारे पास पहुंचता है।
 
'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' की खोज से जुड़े जर्मनी के हाइडलबेर्ग स्थित खगोलीय माक्स प्लांक संस्थान के वैज्ञानिक भी वहां जीवन होने की संभावना को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। उनका कहना है कि यह ग्रह अपने सूर्य की इतनी कम दूरी पर से और इस तरह से परिक्रमा कर रहा है कि उसका हमेशा एक ही पक्ष सूर्य-सम्मुख और दूसरा पक्ष सूर्य-विमुख रहता है। इससे सूर्य-सम्मुखी पक्ष पर तो तापमान बहुत अधिक रहता होगा जबकि सूर्य-विमुख पक्ष पर उतनी ही बर्फीली ठंड होनी चाहिए। स्मरणीय है कि चंद्रमा और पृथ्वी के बीच भी ठीक यही सम्मुख-विमुख संबंध है। ये अनुमान कहां तक सही हैं, इसे जानने के लिए वैज्ञनिकों को अभी कुछ और समय तक 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' पर अपने दूरदर्शी अभिकेंद्रित रखने होंगे। उनके दूरदर्शी अब तक 3500 से अधिक बाह्यग्रहों को खोज चुके हैं, पर उनमें से कोई भी ऐसा नहीं निकला, जो हमारी पृथ्वी से इतनी अधिक समानता रखता हो।

चित्र पाना टेढ़ी खीर बन गया है
रूसी धनकुबेर यूरी मिल्नर द्वारा स्थापित 'ब्रेकथ्रू प्राइज़ फ़ाउन्डेशन' 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' की खोज से इतना उत्साहित है कि वह अभी से उसके चित्र प्राप्त करने के विकल्पों के लिए पैसा देने को तैयार है। अमेरिकी अंतिरक्ष अधिकरण 'नासा' के एक पूर्व अधिकारी पीट वॉर्डन इस फ़ाउन्डेशन के अध्यक्ष हैं।  उनका कहना है कि अमेरिका के 8 मीटर व्यास वाले 'जेमिनी नॉर्थ टेलीस्कोप', हवाई द्वीप पर बनी 'केक' वेधशाला या फिर चिली के अताकाम मरुस्थल में बनी यूरोपीय देशों की 'दक्षिणी वेधशाला' के 'वेरी लार्ज टेलिस्कोप' (वीएलटी) की सहायता से ऐसे चित्र मिलना संभव होना चाहिए। 
(यूरोपीय देशों का चिली में निर्माणाधीन अतिविशाल दूरदर्शी)
 
मेक्सिको के शहर गुआदालाख़ारा में सितंबर के अंत में हुए 'अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रा सम्मेलन' में वॉर्डन ने कहा कि ''हम संबद्ध लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं, पर सबसे दिलचस्प चीज़ शायद अगली पीढ़ी के अतिविशाल दूरदर्शी होंगे।'' उल्लेखनीय है कि कई यूरोपीय देश मिलकर चिली के अताकाम मरुस्थल में 39 मीटर व्यास वाला एक नया अतिविशाल दूरदर्शी बना रहे हैं, जिसके 2024
तक बन जाने की संभावना है। वह इतना शक्तिशाली होगा कि उससे प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' के चित्र 
संभवतः पृथ्वी पर रह कर ही प्राप्त किए जा सकेंगे। ऐसा विशेषकर तब संभव होना चाहिए, जब 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी'  अपने सूर्य की परिक्रमा उसी तल पर रहकर करता हुआ उसके सामने से गुज़रता दिखाई पड़े, जिस तल पर उसका सूर्य, यानी 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी' तारा, पृथ्वी पर से देखने पर अंतरिक्ष में दिखाई पड़ता है। 
 
बाह्यग्रहों की खोज का संक्रमण सिद्धांत
अब तक खोजे गए अधिकांश बाह्यग्रह इसी संक्रमण (ट्रांज़िशन) सिद्धांत के आधार पर खोजे और जांचे-परखे गए हैं। अपने सूर्य के सामने से जब कोई ग्रह गुज़रता है, तो उसके इस संक्रमण से उसके सूर्य से आ रहे प्रकाश के वर्णक्रम में कुछ समय के लिए जो परिवर्तन आते हैं, वे उस ग्रह की उसके सूर्य से दूरी, ग्रह के आकार-प्रकार, उसकी द्रव्यराशि, तापमान, वायुमंडल होने न होने और वायुमंडल की संरचना जैसे अनेक प्रश्नों के बारे में इतनी सारी जानकारियां दे जाते हैं कि कहा जा सके कि वह ग्रह जीवन-धारण के योग्य है या नहीं। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण 'नासा' का भावी अंतरिक्ष दूरदर्शी 'जेम्स वेब' भी इसी संक्रमण सिद्धांत के आधार पर काम करेगा। वह इस समय के हबल टेलीस्कोप की जगह लेगा, पर 2018 से पहले उसका प्रक्षेपण नहीं हो पाएगा। हो सकता है कि 'जेम्स वेब' 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी' के वायुमंडल और वहां के बादलों के बारे में कुछ ऐसे रहस्योद्घाटन भी करे, जिनकी वैज्ञानिक इस समय कल्पना भी नहीं कर रहे हैं।
(लेज़र किरणों वाले 'ब्रेकथ्रू स्टारशॉट' प्रयोग की एक कल्पना)
 
इन सरकारी प्रयासों से इतर, 'ब्रेकथ्रू प्राइज़ फ़ाउंडेशन' के संस्थापक यूरी मिल्नर हमारे सौरमंडल से बाहर की दुनिया का पता लगाने के लिए, निजी तौर पर, 10 करोड़ डॉलर की दो परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रहे हैं। एक का नाम है 'ब्रेकथ्रू लिसन', जो तीन दूरदर्शियों की सहायता से अंतरिक्ष से आ रही रेडियो तरंगों व प्रकाशीय संकेतों की टोह पर लक्षित है। दूसरी का नाम है 'ब्रेकथ्रू स्टारशॉट', जो नैनोमीटर आकार (1 मिलीमीटर = 10 लाख नैनोमीटर) के अतिसूक्ष्म उपकरणों को लेज़र किरणों की सहायता से 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी' की ग्रहप्रणाली तक पहुंचाने और उसे जांचने-परखने का एक अपूर्व प्रयोग होगा।
 
लेज़र किरणों की सहायता से 'स्टारशॉट' प्रयोग
पृथ्वी से सारी 'निकटता' के बावजूद 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी'  तक की सवा चार प्रकाश वर्ष, यानी 400 खरब किलोमीटर से भी अधिक की दूरी एक अकल्पनीय दूरी है। 'ब्रेकथ्रू स्टारशॉट'  प्रयोग के अनुसार,   लेज़र किरणें 'स्टारशॉट' के नैनो उपकरणों को 60 हज़ार किलोमीटर प्रतिसेकंड (प्रकाश की गति के पांजवें भाग के बराबर)  की गति प्रदान करेंगी। तब भी उन्हें 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी' तक पहुंचने में 20 वर्ष लग जाएंगे। इस समय ऐसा कोई रॉकेट या ऐसी कोई दूसरी तकनीक उपलब्ध नहीं है, जो किसी प्रक्षेप्य को इसके 10वें-20वें हिस्से के बराबर भी गति प्रदान कर सके।
 
सुनने में आया है कि फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग और गूगल के सह-संस्थापक रूसी मूल के सेर्गेई ब्रिन भी इस अभियान में यूरी मिल्नर का हाथ बंटाएंगे। यह प्रयोग यदि सफल होता भी है, तब भी उसके परिणामों को पृथ्वी पर से जान पाने के लिए कम से कम 25 वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। स्वयं हमारी आकाशगंगा ही इतनी कल्पनातीत विशाल है कि एक ग्रहमंडल से दूसरे ग्रहमंडल तक की सबसे निकटतम दूरी भी प्रायः कई सौ प्रकाश वर्षों के बराबर होती है। यदि हमारा कोई अंतरिक्षयान प्रकाश के बराबर गति प्राप्त कर भी सके, जो आइनश्टाइन के सापेक्षवाद सिद्धांत के अनुसार सर्वथा असंभव है, तब भी हम अपने पूरे जीवनकाल में पृथ्वी जैसे किसी बाह्यग्रह पर नहीं पहुंच सकते।
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