बुधवार, 17 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. नन्ही दुनिया
  4. »
  5. टीचर्स डे
  6. शिक्षक दिवस के बदलते मायने
Written By WD

शिक्षक दिवस के बदलते मायने

अश्लेषा सोनवलकर

Teachers day 2013 | शिक्षक दिवस के बदलते मायने
शिक्षक दिवस यानी शिक्षकों का दिन, उनकी महत्ता बताने का दिन, समाज में जागृति, क्रांति तथा नई दिशा बताने वाले शिक्षक का गौरवशाली दिन। शिक्षक शब्द विस्तृत अर्थ रखता है। उसी को देखते हुए सर्वपल्ली के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का औचित्य केवल इतना था कि समाज में शिक्षक को एक पथ प्रदर्शक के रूप में देखा जाए।

FILE


मां के बाद बच्चे की प्रथम पाठशाला शिक्षक ही होते हैं जो उसे एक नए ढांचे में ढालकर उसके जीवन के लिए उचित दिशा देते हैं।

शिक्षक कभी अभिभाषक के रूप में, कभी दोस्त, भाई के रूप में या मां या बहन के रूप में होता है। विश्व में अनेक उदाहरण हैं जिसमें गुरु एक बड़े पथ प्रदर्शक के रूप में देखे गए। कई बच्चों के माता-पिता का कर्तव्य गुरु ने निभाया। जिसके कारण वे बच्चे समाज में एक उच्च स्थान, उच्च पद प्राप्त कर पाए हैं।

कई बच्चों की फीस शिक्षकों ने भरी है, यहां तक कि घर की छत भी शिक्षक के कारण नसीब हुई है। कई शिक्षक समाज में हुए जिन्होंने अनाथ बच्चों को पालकर उन्हें योग्य बनाया।


भारतीय शास्त्रों में गुरु को ईश्वर से ऊंचा दर्जा दिया है। किंतु समाज के बदलते मापदंडों एवं प्रतिमानों के कारण इस दर्जे में तेजी से गिरावट देखी गई है। आज यह लिखते हुए बेहद अफसोस होता है कि क्या शिक्षक अपना वह फर्ज निभा पा रहे हैं, आप कहेंगे कोई भी नहीं निभा रहा है, फिर शिक्षक ही क्यों निभाए। नहीं! यह कहकर आप अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाते।

FILE


परिवार या अभिभावक बच्चे के स्कूल या कॉलेज में एडमिशन के बाद एकदम बेफिक्र हो जाते हैं कि चलो फलां स्कूल, कॉलेज में बच्चा एक अच्छा नागरिक बनकर आएगा। परंतु यह सोच उनकी सचमुच बेमानी हो जाती है। आज का शिक्षक पढ़ाने के अलावा सारे काम करता है (उसमें वे काम शामिल नहीं हैं जो शासन या कॉलेज करवाता है)।


आज स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी राजनीति के अखाड़े बन गए हैं। इसमें अनेक अयोग्य चयनित होते हैं, जिनकी पात्रता नहीं, वे बड़े-बड़े ओहदों पर बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी, कॉलेज में शिक्षक के रूप में आते हैं। ऐसे में एक असुरक्षा की भावना जन्म लेती है कि हमारा पद कोई छीन न ले, इस हेतु वे अनेक हथकंडे आजमाते हैं।

जैसे कि पुनः अयोग्य मातहतों की भर्ती जो उनकी चापलूसी करते रहें तथा उनकी कठपुतली बनकर अपने मनमाफिक काम करते रहें, गलत पेपर पर साइन करते रहें।

FILE


तेजी से बदली देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति का शिक्षा के क्षेत्र में सीधा असर दिखाई देता है। जिस कारण बहुत से शिक्षक इसे सेवा न मानकर एक व्यवसाय के रूप में लेते हैं।

इसी कारण कोचिंग जैसी प्रथा का विस्तार हुआ है। ऐसा नहीं है कि सभी शिक्षक अतिमहत्वाकांक्षी होते हैं और जोड़तोड़ की राजनीति से वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। यदि देखा जाए तो ऐसे शिक्षकों की संख्या 20-25 प्रतिशत ही होगी, लेकिन उनके कारण शिक्षा की मानहानि हुई है।

शायद शिक्षक दिवस पर उन्हें अपना आत्मचिंतन करने का अवसर मिले तथा वे यह तय कर सकें कि वे किस तरह की भावी पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं।