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Written By WD

नेतृत्व और अनुशासन पर सैम मानेकशॉ का यादगार भाषण

नेतृत्व और अनुशासन पर सैम मानेकशॉ का यादगार भाषण -
अदम्य साहस और युद्धकौशल के लिए मशहूर फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत ने सन 1971 में पाकिस्तान को धूल चटाई थी और बांग्लादेश के रूप में एक नया देश अस्तित्व में आया था।

3 अप्रैल को मानेकशॉ का 100वां जन्मदिन था और इस अवसर पर हम मानेकशॉ का यादगार भाषण प्रकाशित कर रहे हैं। सैम बहादुर ने डिफेंस सर्विस कॉलेज, वेलिंग्टन में 11 नवंबर, 1998 को 'नेतृत्व और अनुशासन' पर व्याख्यान दिया था। वेबदुनिया के पाठकों के लिए हम इसे हिन्दी में उपलब्ध करवा रहे हैं...

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उपराष्ट्रपति महोदय, दे‍वियों और सज्जनों,

आपने मुझे आज की शाम यहां संबोधित करने का जो सम्मान और विशेषाधिकार दिया है, उससे मैं भली-भांति परिचित हूं। यह सम्मान तब और भी बड़ा है जबकि आप बहुत सारे वीवीआईपीज को बुला सकते थे, लेकिन आपने एक सैनिक को बुलाया।

जनरल चौधरी ने मेरे बारे में जो बातें कहीं उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं। आपने हमें बताया कि फील्ड मार्शल करियप्पा ने कौन-कौन सी अच्छी बातें की हैं, लेकिन उन्होंने जो एक बड़ी बात की है, उसका जिक्र आपने नहीं किया है। उन्होंने भारतीय सेना को पूरी तरह से गैर-राजनीतिक होना सिखाया।

हमारा देश ऐसा है, जहां सैनिकों को राजनीति से दूर रखा गया है। मैं सोचता हूं कि यह फील्ड मार्शल करियप्पा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, उनकी इस देश के प्रति सबसे बड़ी सेवा थी।

कुछ वर्ष पहले मुझे मद्रास के रोटरी क्लब के कार्यक्रम में बुलाया गया था। यह कहा गया था कि इस देश के नौजवानों ने समाज के लिए अधिक योगदान नहीं किया है और उन्होंने मुझे इस विषय पर बोलने को कहा था। मैं इससे तनिक भी सहमत नहीं था। मैंने तब कहा था और अब भी कहता हूं कि इस देश का युवा भ्रमित है।

उसे नहीं पता कि यह देश आज इन सारी मुसीबतों का सामना क्यों कर रहा है। वे जहां कहीं भी देखते हैं, उन्हें कमी नजर आती है। यहां बिजली की कमी रहती है और इस कारण से वे पढ़ नहीं पाते हैं और वे जानना चाहते हैं कि यह किसका दोष है।

अब चिकने-चुपड़े जवाबों से मूर्ख नहीं बनता युवा... पढ़ें अगले पेज पर...


वे कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उन्हें बताया जाता है कि सीटों की कमी है और वे जानना चाहते हैं कि यह किसका दोष है। वे चारों ओर देखते हैं और उन्हें राजनीतिज्ञों में मतभेद नजर आते हैं और वे जानना चाहते हैं कि यह किसका दोष है, निश्चित तौर यह उनका नहीं है।

वे अध्ययन करने के लिए विदेश जाना चाहते हैं लेकिन उनसे कहा जाता है कि विदेशी मुद्रा की कमी है। वे जानना चाहते हैं कि यह किसका दोष है। वे जहां कहीं भी देखते हैं तो उन्हें कमियां, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और तस्करी दिखाई देती है और वे जानना चाहते हैं कि यह किसका दोष है।

एक देश था जिसे ब्रिटिश राजमुकुट का सबसे चमकदार रत्न माना जाता था और वे जानना चाहते हैं कि उस चमकदार रत्न का क्या हुआ। उन्हें किसी ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया। वे अब इस चिकने-चुपड़े जवाब से मूर्ख नहीं बनते हैं कि हम 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन के गुलाम रहे और इस कारण से हमारी यह हालत है।

वे मुड़कर जवाब देते हैं कि अंग्रेज हमें छोड़कर 40 वर्ष पहले चले गए और आपने कोरे बहाने बनाने के अलावा क्या किया है? उनका कहना है कि सिंगापुर को देखिए, मलेशिया को देखिए। ये देश भी अंग्रेजों के गुलाम थे लेकिन द‍ेखिए इन देशों ने कितनी प्रगति की है। वे मुड़कर देखते हैं और कहते हैं कि जापान को देखिए, जर्मनी को देखिए। उन्होंने 4 वर्षों तक एक युद्ध लड़ा।

उनके देश की जवानी कमजोर पड़ गई थी, नष्ट हो गई थी। उनके देशों पर कब्जा कर लिया गया था, उनके उद्योग नष्ट हो गए थे, उनके देश के हिस्से हड़प लिए गए थे। और देखिए कि उन्होंने क्या हासिल कर लिया, इसलिए कृपया बहाने बनाना बंद करें और हमें सही जवाब दें।

मैंने इसलिए अपना मुंह खोला... पढ़ें अगले पेज पर...


देवियों और सज्जनों, मैंने क्यों अपना मुंह खोलने का फैसला किया और कहा कि हमारी सारी मुश्किलों की असली जड़ और एकमात्र उत्तर, हमारी सभी कमियों इत्यादि का एकमात्र कारण नेतृत्व का अभाव है। उपराष्ट्रपति महोदय, मुझे गलत न समझें और प्रेस से जुड़े महानुभाव गलत उद्धरण न दें।

जब मैं चारों ओर देखता हूं और कहता हूं कि नेतृत्व का अभाय तो मेरा आशय केवल राजनीतिक नेतृत्व से नहीं होता है। अगर सैन्य नेतृत्व की बात करें तो जनरल्स कैसे बनते हैं? पहली योग्यता- मेरे पीछे आओ, दूसरी योग्यता- मेरे पीछे आओ और आगे भी यही।

इसलिए मेरा आशय है कि देश के प्रत्येकक क्षेत्र में नेतृत्व का अभाव है। क्षेत्र चाहे राजनीतिक हो, प्रशासनिक हो, उद्योग हो, श्रमिक संगठन हों, शिक्षण संस्थान हों, कानून और व्यवस्था हो, कार्मिक हो, खेल संगठन हों और प्रेस में भी, सबसे बड़ी समस्या नेतृत्व का अभाव है। आज शाम को मैं आपको इसी विषय पर संबोधित करना चाहता हूं।

इन्फैंट्री के महानिदेशक चाहते थे कि मैं 21वीं सदी में नेतृत्व के बारे में बात करूं। देवियो और सज्जनो, नेतृत्व कभी बदलता नहीं है। नेतृत्व के गुण वर्षों से वही बने हुए हैं। जब देश आगे बढ़ते हैं और तकनीकी विकास होते हैं तो नेतृत्व के कुछ खास गुणों पर विशेष जोर दिया जाता है। मुझे नहीं पता कि नेता पैदा होते हैं या बनाए जाते हैं।

एक मत यह है, जो कहता है कि नेता पैदा होते हैं। देश में 90 करोड़ से ज्यादा लोग हैं लेकिन तब भी नेतृत्व की कमी है। अगर नेता पैदा नहीं होते हैं तो क्या हम नेता बना सकते हैं? और मेरा जवाब है हां। मुझे आप एक सहज बुद्धि रखने वाला पुरुष या महिला दें, जो कि मूर्ख नहीं हो, मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि आप उसे एक मार्गदर्शक बना सकते हैं।

नेतृत्व के क्या गुण होते हैं? नेतृत्व का बुनियादी, प्रमुख गुण पेशेवर जानकारी और पेशेवर दक्षता है और आप मुझसे सहमत होंगे कि आप पेशेवर ज्ञान और दक्षता के साथ पैदा नहीं हो सकते हैं। तब भी नहीं भले ही आप प्रधानमंत्री, एक उद्योगपति अथवा एक फील्ड मार्शल के बेटे हों।

आखिर कैसे हासिल करें पेशेवर ज्ञान... पढ़ें अगले पेज पर...


ेशेवर ज्ञान को तो आपको अपने कठिन परिश्रम से ही हासिल करना होगा। यह एक लगातार, सतत अध्ययन होता है और हम जिस तेजी से बदल रहे हैं, प्रतियोगी और तकनीकी दुनिया में रह रहे हैं, आपको एक ही बार में पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती है।

आप जिस किसी भी पेशे में हों, आपको इसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना ही होगा। डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, वैज्ञानिक सभी अपने पेशे के जर्नल्स में अपना योगदान करते हैं।

उन सभी की दुनिया के अन्य हिस्सों के अपने समकक्षों के साथ संपर्क होते हैं, पर भारत में एक समस्या यह है कि जैसे ही हम में से कोई अधिकार के स्थान पर पहुंचता है तो वह अनुभव करता है कि समूचे ज्ञान पर उसका ही एकाधिकार है।

जो लोग इस देश की प्रतिरक्षा और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं, क्या वे अपना दिल टटोलकर, कसम खाकर कह सकते हैं कि उन्होंने कभी सामरिक रणनीति, युद्ध कौशल पर एक पुस्तक पढ़ी है? क्या उन्होंने कभी सैन्य अभियानों या हथियारों के बारे में जानकारी हा‍स‍िल की है? क्या वे एक मोर्टार और एक मोटर, एक गुरिल्ला से गोरिल्ला के बीच अंतर कर सकते हैं?

इसलिए पेशेवर ज्ञान और पेशेवर दक्षता नेतृत्व के गुण हैं। जब तक आपको पता नहीं है और आप जिन लोगों का नेतृत्व करते हैं, इस बात को जानते हैं कि आप अपने काम को अच्छी तरह से नहीं जानते है, तब तक आप कभी भी एक मार्गदर्शक नहीं बन पाएंगे।

उदाहरण के लिए, आप उद्योग का उदाहरण लें। ऑटोमोबाइल उद्योग में बहुत अधिक तकनीकी बदलाव आए हैं। यह कुछ समय पहले ही हुआ है कि हमारे उद्योगपतियों ने एक आधुनिक कार के बारे में सोचना और इसे बनाना शुरू किया है।

मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जब तक आपके पास पेशेवर ज्ञान और पेशेवर दक्षता नहीं है तब तक आप एक मार्गदर्शक नहीं बन पाएंगे और यह बात मुझे नेतृत्व के दूसरे गुण की ओर आगे बढ़ाती है और यह गुण है सोचने की क्षमता। दिमाग में कोई बात निश्चित करना, एक फैसला लेना और उस निर्णय से जुड़ी समूची जिम्मेदारी स्वीकार करना।

क्या आपको कभी इस बात पर आश्चर्य हुआ है कि एक आदमी फैसला क्यों नहीं लेता है? सीधी सी बात है कि उसमें पेशेवर ज्ञान और पेशेवर दक्षता का अभाव है या फिर वह भयभीत है कि अगर वह कोई फैसला लेता है और यह गलत साबित होता है तो उसे इसकी समूची जिम्मेदारी लेनी होगी।

आखिर आपके कितने फैसले सही होने चाहिए... पढ़ें अगले पेज पर....


देवियों और सज्जनों, औसत के नियम के अनुसार अगर आप दस फैसले लेते हैं तो इनमें से पांच सही होने चाहिए। और अगर आप में पेशेवर ज्ञान और दक्षता है तो आपके नौ फैसले सही होने चा‍ह‍िए। और जो एक फैसला गलत हो गया है, वह आपके किसी सुयोग्य सहकर्मी या कोई बुद्धिमान स्टाफ ऑफिसर या किसी बहादुर सैनिक की बहादुरी से हमेशा ही ठीक किया जा सकेगा।

मैं आपको इसके बहुत सारे उदाहरण नहीं देना चाहता हूं कि लोगों ने क्यों और कब फैसले नहीं लिए और फिर क्या हुआ। मैं आपको केवल एक उदाहरण दूंगा। अगर बाबरी मस्जिद का विध्वंस रोकने का फैसला सुनिश्चित कर ‍‍द‍िया जाता तो सारे समुदाय को मानसिक पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती।

एक भूल-चूक के फैसले को सुधारा जा सकता है लेकिन एक अपराध को नहीं सुधारा जा सकता है। कुछ भी नहीं एक ऐसा काम है, जो कि निश्चित तौर पर गलत है। जब मैं सेना प्रमुख था तब मैं अपने कुछ फॉर्मेशन कमांडर्स से मिला था। मैंने उनमें से एक से पूछा कि एक मामले पर वह क्या कर रहा है। वह मुड़ा और बोला कि सर, मैं सोच रहा हूं। मैंने अभी तक कुछ फैसला नहीं लिया है। यह नितांत जरूरी है कि एक नेतृत्वकर्ता को निर्णायक होना ही चाहिए।

नेतृत्व का अगला गुण संपूर्ण ईमानदारी और निष्पक्षता है। हम सबकी पसंद और नापसंद होती है लेकिन हमारे पेशेवर निर्णयों पर पसंद और नापसंद का कोई असर कभी नहीं पड़ना चाहिए। कोई भी आदमी दंडित किया जाना पसंद नहीं करता है लेकिन तब भी एक आदमी दंड को स्वीकार करेगा अगर उसे पता है कि उसे दिया गया दंड किसी ऐसे व्यक्ति को मिले गए दंड जैसा है, जो कि प्रभावशाली है, एक उद्योगपति है, एक मंत्री है, एक सांसद है या फिर एक फील्ड मार्शल है।

कोई भी आदमी नहीं चाहता कि दूसरा उसके स्थान पर आए लेकिन तब भी वह इसे स्वीकार कर लेगा अगर उसे पता हो कि उसके स्थान पर एक बेहतर और नियमों के अनुरूप एक सुयोग्य आदमी आए। लेकिन यह व्यक्ति ऐसा नहीं हो कि किसी मंत्री का रिश्तेदार हो या जिसके काम में कोई संत, महात्मा हस्तक्षेप करता हो।

यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि जब आप लोगों के साथ काम करते हों तब आपको पूरी तरह से निष्पक्ष होना चाहिए। आपमें दबावों को सहन करने का की सामर्थ्‍य होनी चाहिए।

नैतिक और शारीरिक साहस दो बड़े महत्वपूर्ण गुण हैं और मैं नहीं जानता कि इनमें से कौन अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन जब मैं युवा सेना अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को संबोधित कर रहा हूं तो मेरा जोर शारीरिक साहस पर होगा, पर जब मैं आपको संबोधित कर रहा हूं तो मैं नैतिक साहस पर जोर दूंगा।

कैसा आदमी खतरनाक होता है... पढ़ें अगले पेज पर....


नैतिक साहस क्या है? नैतिक साहस का अर्थ है गलत से सही को अलग करना और इसके अनुसार परिणामों की चिंता किए बिना कार्य करना। हमेशा हां में हां मिलाने वाला एक खतरनाक आदमी होता है। वह एक खतरनाक आदमी होता है और वह बहुत दूर तक जा सकता है। वह एक मंत्री बन सकता है, एक सचिव बन सकता है और एक फील्ड मार्शल भी लेकिन वह कभी भी एक मार्गदर्शक नहीं बत सकता है। वह कभी भी सम्मान नहीं पा सकता है। उसके उच्चाधिकारी उसका इस्तेमाल करेंगे, उसके सहयोगी उसे नापसंद करेंगे और उसके मातहत उससे घृणा करेंगे इसलिए एक 'यस मैन' को हमेशा अस्वीकार करें।

मैं आपको नैतिक साहस का एक निजी उदाहरण देना चाहूंगा। एक फील्ड मार्शल होने और कभी भी नौकरी से बर्खास्त किए जाने में बहुत थोड़ा-सा अंतर है। वर्ष 1971 में जब पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में दमन शुरू किया तो सैकड़ों और हजारों की संख्या में शरणार्थियों ने भारत के बंगाल, असम और त्रिपुरा राज्यों में घुसना शुरू कर दिया।

ऐसे समय में प्रधानमंत्री ने अपने कार्यालय में कैबिनेट की बैठक रखी। इस बैठक में विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह, कृषि मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद, रक्षामंत्री बाबू जगजीवनराम और वित्तमंत्री यशवंतराव चव्हाण मौजूद थे। तब मुझे भी बुलाया गया। एक नाराज और गंभीर मुख मुद्रा में प्रधानमंत्री ने बंगाल, असम और त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों के टेलीग्राम पढ़कर सुनाए।

इंदिराजी से क्या बोले थे सैम बहादुर... पढ़ें अगले पेज पर...


प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तब मेरी ओर मुड़ीं और बोली कि आप इसके बारे में क्या कर रहे हैं? और मैंने कहा कि कुछ नहीं, क्योंकि इस बात से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। जब आपने पाकिस्तानियों (तत्कालीन बांग्लादेशियों) से विद्रोह करने को उकसाया और बीएसएफ, सीआरपीएफ और रॉ को अनुमति दी तो मुझसे कोई सलाह-म‍शविरा नहीं किया। अब जब आप मुश्किल में हैं तो मेरे पास आईं। मुझे भी बहुत कुछ समझ में आता है कि क्या हो रहा है? तब मैंने उनसे पूछा कि वे मुझसे क्या किए जाने की उम्मीद करती हैं?

उन्होंने कहा कि मैं चाहती हूं कि आप पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करें। मैंने जवाब दिया कि इसका अर्थ युद्ध है।

उनका कहना था कि मैं ध्यान नहीं देती कि युद्ध हो। मैंने उनसे सवाल पूछा कि क्या आपने बाइबल पढ़ी है? तब विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने पूछा कि इस मामले का बाइबल से क्या लेना-देना। मैंने विस्तार से बताया कि पहली किताब के पहले अध्याय के पहले वाक्य में ईश्वर ने कहा कि 'यहां रोशनी होने दें' और तब रोशनी हो गई। अब आप कह रही हैं कि यहां युद्ध हो, तब यहां युद्ध होगा लेकिन क्या आप इसके लिए तैयार हैं? निश्चित तौर पर मैं नहीं हूं। यह अप्रैल के अंत का समय है। हिमालय के रास्ते खुल रहे हैं और अगर चीन हमें कोई चेतावनी देता है तो चीन की ओर से हमला हो सकता है।

तब विदेश मंत्री ने पूछा कि क्या चीन हमें चेतावनी देगा? और मैंने पूछा कि आप विदेश मंत्री हैं, आप मुझे बताएं। मैंने उन्हें बताया कि मेरी आर्मर्ड डिवीजन और दो इन्फेंट्री डिवीजन दूर थी। एक झांसी, बबीना में थी तो दूसरी साम्बा में है और तीसरी आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में है।

मैंने उन्हें बताया कि युद्ध के मैदानों तक इन डिवीजनों को पहुंचाने के लिए मुझे समूचे सड़क मार्गों, सारे रेल वैगन्स और समूची रेल व्यवस्था की जरूरत पड़ेगी। पंजाब और यूपी में फसल कटाई का मौसम चल रहा है और मैंने कृषिमंत्री को बताया कि अगर अकाल पड़ता है तो यह मेरी जिम्मेदारी नहीं होगी।

इसके बाद मैंने उनसे कहा कि मेरी आर्मर्ड (बख्‍तरबंद) डिजीवन में जो कि मेरी सबसे बड़ी आक्रामक ताकत होगी, में कम से कम 189 सक्रिय टैंक होने की जरूरत है लेकिन मेरे पास लड़ाई के लिए फिट केवल 11 टैंक हैं। वित्तमंत्री मेरे दोस्त हैं, उन्होंने मुझसे कहा कि सैम, केवल 11 ही क्यों? मैंने उनसे कहा कि क्योंकि आप वित्तमंत्री हैं। मैं आपसे 1 वर्ष से भी अधिक समय से पैसों की मांग कर रहा हूं और आपका कहना है कि आपके पास पैसे नहीं हैं।

और अंत में प्रधानमंत्री की ओर मुड़ा और उनसे बोला कि पूर्वी पाकिस्तान में बारिश शुरू होने वाली है, वहां जब बारिश होती है तब यह बहुत तेज होती है और समूचा ग्रामीण इलाका बाढ़ के पानी से भर जाता है। पहाड़ों की बर्फ पिघल रही है और ऐसे में ‍नदियां समुद्र बन जाती हैं। अगर आप नदी के एक किनारे पर खड़े हों तो दूसरा किनारा नहीं देख सकते हैं। मेरी सारी गतिविधियां केवल सड़कों तक ही सीमित रह जाएंगी। मौसम की मुश्किलों के चलते वायुसेना मेरी मदद नहीं कर पाएगी। अब प्रधानमंत्री आप मुझे अपने आदेश दें।

...और दांत भींचते हुए क्या बोलीं श्रीमती गांधी... पढ़ें अगले पेज पर....


दांत भींचते हुए गंभीर दिखने वाली प्रधानमंत्री ने कहा कि कैबिनेट की बैठक फिर बार 4 बजे होगी। कैबिनेट के सदस्य बाहर जाने लगे। चूंकि पद के लिहाज से मैं सबसे जूनियर था इसलिए मुझसे सबसे बाद में निकलना था और जब मैं कमरे से बाहर निकलने ही वाला था कि उन्होंने कहा कि 'चीफ आप थोड़ा रुकेंगे। मैं मुड़ा और मैंने कहा कि प्रधानमंत्रीजी, इससे पहले कि आप कुछ बोलें, मैं आपको स्वास्थ्य, मानसिक या शारीरिक आधारों पर अपना इस्तीफा दे सकता हूं।

उन्होंने कहा कि जो बात भी आपने कही है, वह सच है। मैंने उन्हें जवाब दिया कि हां, सारी जानकारी सच-सच देना मेरा काम है और लड़ना भी मेरा काम है लेकिन मेरा लड़कर जीतना मेरा काम है और इसलिए मैंने सारी बातें सच-सच बताई हैं।

वे मुस्कराईं और मुझसे बोली कि बिलकुल ठीक सैम, तुम्हें पता है कि मैं क्या चाहती हूं। मैंने कहा कि हां, मुझे भी पता है कि आप क्या चाहती हैं। मुझमें इंदिराजी से सब कुछ सही-सही बताने का नैतिक साहस था। भूख और सेक्स की तरह डर भी एक कुदरती प्रवृत्ति है और जो आदमी कहता है कि वह भयभीत नहीं है, झूठ बोलने वाला आदमी है।

भयभीत होना एक बात है और भय दर्शाना बिलकुल अलग बात है। जब आपके घुटने जवाब दे रहे हों और आपके दांत भी साथ नहीं दे रहे हों तभी एक सच्चा मार्गदर्शक सामने आता है। अगर आप अपने लोगों के सामने एक बार भी डर प्रदर्शित करते हैं तब आप उनसे कभी भी सम्मान नहीं पा सकेंगे।

मैं अपने जीवन के बहुत सारे उदाहरण आपको दे सकता हूं। मेरी बात पर विश्वास करें कि मैं एक बहादुर आदमी नहीं हूं। ऐसे में आपको शारीरिक साहस रखने की जरूरत होती है। अपना डर कभी नहीं दिखाएं। कई बार लड़ाई का रुख तब बदल गया जब सभी कुछ गलत हो रहा था।

युवा अ‍‍धिकारियों ने मुट्‍ठीभर लोगों को चुना और अपने साहस से स्थिति को बदल दिया। कई बार ऐसा हुआ है, जब एक बुजुर्ग पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी लाठी के सहारे साहस दिखाते हुए दंगों को टाल दिया।

नेतृत्व का एक और सबसे बड़ा गुण क्या है... पढ़ें अगले पेज पर...


नेतृत्व का एक और गुण निष्ठावान होना भी है। हम सभी निष्ठा चाहते हैं लेकिन क्या हम कभी इसे देते हैं? आप आसपास होने वाली घटनाओं पर निगाह डालें। राजाओं के बेटों, मुख्यमंत्रियों और सरकार प्रमुखों ने भी विश्वासघात दर्शाया है।

अपने अधीनस्थों से आपको निष्ठा हासिल करना चाहिए और अपने वरिष्ठों, सहकर्मियों और अधीनस्थों के प्रति निष्ठा दिखाना चाहिए। लोग भले ही आपको मुसीबतें पैदा करें और परेशानियां दें लेकिन एक मार्गदर्शक को इनका तुरंत ही और मजबूती से सामना करना चाहिए।

एक मार्गदर्शक को याद रखना चाहिए कि लोगों की मानवीय समस्याएं होती हैं इसलिए एक मार्गदर्शक को एक मानवीय स्पर्श रखना चाहिए। मार्गदर्शकों को अच्छा वक्ता होने के साथ हास्य बोध भी रखना चाहिए।

और सारी दुनिया में लोग अपने मार्गदर्शकों को एक पुरुष के तौर पर चाहते हैं और वे चाहते हैं कि उनके मार्गदर्शक पुरुषोचित गुण रखें। ऐसा नहीं है कि जिस व्यक्ति में कोई कमियां नहीं हों, वही एक अच्छा मार्गदर्शक बन सकता है। सीजर और नेपोलियन को देखें, उनमें भी अवगुण थे लेकिन वे असाधारण मार्गदर्शक थे।

सेना में शामिल होने के बाद से बहुत सारे बदलाव हो चुके हैं लेकिन पाइंट 303 राइफल के स्थान पर नए-नए हथियार आ गए हैं। घोड़ों और खच्चरों का स्थान वाहनों और टैंकों ने ‍ले लिया है। ‍स‍िग्नल कम्युनिकेशंस में बहुत बदलाव हो चुका है। अब कमांडरों को सारी जानकारी सैटेलाइट्‍स देते हैं, लेकिन इन्फैंट्री सैनिकों के लिए एक चीज नहीं बदली है और यह है उनका काम। उनका काम लड़ना और जीतना है।

अगर आप युद्ध हारते हैं तो आप अपने देश, गांव, घर और अपनी पत्नी के नाम को अपमानित करते हैं। आपका ध्येय वाक्य होना चाहिए कि किसी को भी दंड से छुटकारे बिना मुझे उत्तेजित नहीं करना चाहिए। दूसरे शब्दों में या एक सैनिक के शब्दों में अगर आपका दुश्मन आपकी ठोड़ी पर प्रहार करता है तो उसकी दोनों आंखें काली कर दें और उसके दांत हलक के नीचे गिरा दें।

अगर आप अपने आदमियों में यह गुण पैदा कर सकते हों तब आप एक महान मार्गदर्शक साबित होंगे। लेकिन इस देश में जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों में और सभी स्तरों पर मार्गदर्शकों की कमी है।

आप सभी को धन्यवाद।