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करूणा और सेवा की देवी मदर टेरेसा

करूणा और सेवा की देवी मदर टेरेसा - Mother Teresa Jeevni
ऋषि गौतम

कहते हैं जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं। हम आपसे बात करने जा रहे हैं जिंदादिली की। एक ऐसी महिला की जिंदादिली की जिसने जन्म के बाद होश संभालते ही दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया। जिसने अपनी जिंदगी का हर एक पल दूसरों के नाम कर दिया।

 
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उन्होंने जो किया वह इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं फिर भी पूरी दुनिया में जिंदादिली के लिए उनकी मिसाल दी जाती हैं। समाज सेवा और मानव सेवा के क्षेत्र में उन्होंने जो किया वह शायद ही कोई कर पाए। जी हां हम बात कर कर रहे हैं मदर टेरेसा की। कहा जाता है कि दुनिया में हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता है पर मदर टेरेसा जैसे लोग सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। उनके जन्म दिवस पर हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं उनकी जिंदगी के हर एक पन्ने से....

अगले पेज पर : पढ़ें मदर टेरेसा की जीवनी


मदर टेरेसा की जीवनी : बचपन से सिस्टर टेरेसा तक

करुणा और सेवा की साकार मूर्ति मदर टेरेसा मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर (Skopje,capital of the Republic of Macedonia)) में हुआ था।

यूं तो उनका जन्म 26 अगस्त को हुआ था पर वह खुद अपना जन्मदिन 27 अगस्त को मानती थीं। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था। मदर टेरेसा का असली नाम‘एग्नेस गोंझा बोयाजिजू’(Agnes Gonxha Bojaxhiu )था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जिसे मदर टेरेसा ने सच कर दिखाया। मदर टेरेसा एक ऐसी महकती कली थीं जिन्होंने गरीबों और असहायों की जिन्दगी में प्यार की खुशबू भरी।

एग्नेस के पिता बचपन में ही चल बसे। बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी मदर (गोंझा) टेरेसा एक सुन्दर जीवंत,अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं।

पढ़ना,गीत गाना वह विशेष पसंद करती थीं। वह और उनकी बहन आच्च गिरजाघर में प्रार्थना की मुख्य गायिका थीं। बाद में गोंझा को एक नया नाम‘सिस्टर टेरेसा’दिया गया जो इस बात का संकेत था कि वह एक नया जीवन शुरू करने जा रही हैं। यह नया जीवन एक नए देश में जोकि उनके परिवार से काफी दूर था,सहज नहीं था लेकिन सिस्टर टेरेसा ने ऐसा किया वह भी बड़ी शांति के साथ।

बाल्यकाल में ही मदर टेरेसा के हृदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था। मात्र अठारह वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनी थीं।



इस दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और बाद में‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता,यह कहावत मदर टेरेसा के लिए सच साबित हुई। मदर टेरेसा (Mother Teresa)की मिशनरीज संस्था ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीबन पांच लाख लोगों की भूख मिटाई जाने लगी।

1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी की स्थापना करने के बाद 45 सालों तक गरीब,असहाय,बीमार,अनाथ और मरते हुए लोंगों की मदद करने वाली मदर टेरेसा 1970 तर अपने इन मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गईं।

मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में भी सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया है। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोते-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया,या कम से कम उनके अंतिम समय को शां‍तिपूर्ण बना दिया। दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत है

उनका कामयाबी अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन तक उनकी संस्था(मिशनरीज ऑफ चैरिटी)123 देशों में 690 मिशन नियंत्रित कर रही थी। इसमें एचआईवी/एड्स,कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं/घर शामिल थे,और साथ ही सूप रसोई,बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम,अनाथालय और विद्यालय भी थे।

अगले पेज पर : भारत आगमन से लेकर यहीं बस जाने तक



मदर टेरेसा का भारत आगमन-

सिस्टर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। वर्ष 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं।

धीरे-धीरे उन्होंने यहां बेसहारा और विकलांग बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा और फिर वे भारत से मुंह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं। वे यहीं पर रुक गईं और जनसेवा का व्रत ले लिया,जिसका वे अनवरत पालन करती रही।

सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की,जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी. इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’और ‘निर्मला शिशु भवन’के नाम से आश्रम खोले,जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं।

अगले पेज पर : सम्मान और अवॉर्ड



मदर टेरेसा को मिले पुरस्कार-

साल 1962 में भारत सरकार ने उनकी समाज सेवा और जन कल्याण की भावना की कद्र करते हुए उन्हें 'पद्मश्री' से नवाजा। 1980 में मदर टेरेसा को उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए भारत सरकार ने 'भारत रत्‍न' से अलंकृत किया। विश्व भर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला।

उन्हें यह पुरस्कार गरीबों और असहायों की सहायता करने के लिए दिया गया था। उन्होंने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को भारतीय गरीबों के लिए एक फंड के तौर पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया यह उनके विशाल हृदय को दर्शाता है।

अगले पेज पर : आरोप भी लगते रहे ... लेकिन..



मदर टेरेसा पर आरोप-

एक तरफ जहां कई व्यक्तियों,सरकारों,और संस्थाओं के द्वारा मावन सेवा के लिये मदर टेरेसा की प्रशंसा की जाती रही है वहीं अपने जीवन के अंतिम समय में मदर टेरेसा पर कई तरह के आरोप भी लगे। इसमें कई व्यक्तियों,जैसे क्रिस्टोफ़र हिचेन्स,माइकल परेंटी,अरूप चटर्जी (विश्व हिन्दू परिषद)द्वारा की गई आलोचना शामिल हैं।

उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगा। भारत में भी पश्चिम बंगाल और कोलकाता जैसे राज्यों में उनकी निंदा हुई। मानवता की रखवाली की आड़ में उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक माना जाता था। लेकिन यह भी सच है कि सफलता और आलोचना दोनों साथ-साथ चलती है।

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मदर टेरेसा : अंतिम पड़ाव


वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गईं। वही उन्हें पहला हार्ट अटैक आ गया। इसके बाद साल 1989 में उन्हें दूसरा हृदयाघात आया।

लगातार गिरती सेहत की वजह से 05 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में लिप्त थीं।

आज मदर टेरेसा तो हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी मिशनरी आज भी देश में समाज सेवा के कार्यों में लगी है। आज भी पूरे विश्व में ऐसे ही महान लोगों की आवश्यकता है जो मानवता को सबसे बड़ा धर्म समझें। मदर टेरेसा आज भी कई बार तब अपने मिशनरी में नजर आती होंगी जब किसी गरीब की भूख मिटती होगी,जब कोई बच्चा खिलखिलाकर हंसता होगा,जब किसी बेसहारे को सहारा मिलता होगा। जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने भारत के दीन-दुखियों की सेवा की है,उसके लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा

समाप्त