चाचा नेहरू की ताजगी के 3 राज
टेलीविजन पर पंडितजी जब पहली बार आए तब वहां पर उपस्थित एक वृद्ध सज्जन ने उनसे पूछा, 'पंडितजी, आप भी सत्तर से ऊपर हैं, मैं भी। लेकिन क्या वजह है कि आप तो गुलाब के फूल की दिख पड़ते हैं और मैं बुड्ढा हो चला?
एक क्षण के लिए पंडितजी सोच में पड़ गए और फिर मानो एक ऋषि की वाणी में उन्होंने कहा, 'तीन बातें हैं। पहली तो यह है कि मैं बच्चों में हिलमिल जाता हूं। उनसे प्यार करता हूं और उनकी मासूमियत में जिंदगी पाता हूं। दूसरी यह कि हिमालय में मेरा मन सबता है। उन बफीर्ली चोटियों में, उन घने जंगलों में उस निर्मल हवा में मुझे नए प्राण मिलते हैं।
तीसरी वजह यह है कि मैं छोटी-छोटी और औछी किस्म की बातों से ऊपर उठ सकता हूं। मेरी जहनियत पर उनका असर नहीं पड़ सकता। मैं तो जिंदगी, दुनिया और मसलों को ऊंची नजर से देखने की कोशिश करता हूं और इस लिए मेरी सेहत और मेरे विचार ढीले-ढाले नहीं हो पाते।'
हम तो कहेंगे कि इन पिछली दो बातों का आधार भी पहली ही बात है। वस्तुतः उनकी प्रकृति बालक जैसी थी। जैसा उन्होंने कहा, उनकी मासूमियत में वे जिंदगी पाते थे। वही मासूयिमत उनकी महानता का कारण थी। सभी जानते हैहं कि वे जरा में गर्म, जरा में ठंडे, यानी वे अधिक समय तक नाराज नहीं रह सकते थे। उनमें कटुता थी ही नहीं। संसार की राजनीति में उनका क्या स्थान था यह सभी जानते हैं।