शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. कहानी
  4. पंचतंत्र की मजेदार कहानी : ढोंगी सियार
Written By
Last Updated : मंगलवार, 9 सितम्बर 2014 (17:38 IST)

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : ढोंगी सियार

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : ढोंगी सियार - पंचतंत्र की मजेदार कहानी : ढोंगी सियार
मिथिला के जंगलों में बहुत समय पहले एक सियार रहता था। वह बहुत आलसी था। पेट भरने के लिए खरगोशों व चूहों का पीछा करना व उनका शिकार करना उसे बड़ा भारी लगता था। शिकार करने में परिश्रम तो करना ही पड़ता है न। दिमाग उसका शैतानी था। यही तिकड़म लगाता रहता कि कैसे ऐसी जुगत लड़ाई जाए, जिससे बिना हाथ-पैर हिलाए भोजन मिलता रहे। खाया और सो गए। एक दिन उसी सोच में डूबा वह सियार एक झाड़ी में दुबका बैठा था।
बाहर चूहों की टोली उछलकूद व भाग-दौड़ करने में लगी थी। उनमें एक मोटा-सा चूहा था, जिसे दूसरे चूहे ‘सरदार’ कहकर बुला रहे थे और उसका आदेश मान रहे थे। सियार उन्हें देखता रहा। उसके मुंह से लार टपकती रही। फिर उसके दिमाग में एक तरकीब आई।
 
जब चूहे वहां से गए तो उसने दबे पांव उनका पीछा किया। कुछ ही दूर उन चूहों के बिल थे। सियार वापस लौटा। दूसरे दिन प्रातः ही वह उन चूहों के बिल के पास जाकर एक टांग पर खड़ा हो गया। उसका मुंह उगते सूरज की ओर था। आंखें बंद थीं।
 
चूहे बिलों से निकले तो सियार को उस अनोखी मुद्रा में खड़े देखकर वे बहुत चकित हुए। एक चूहे ने जरा सियार के निकट जाकर पूछा, 'सियार मामा, तुम इस प्रकार एक टांग पर क्यों खड़े हो?'
 
सियार ने एक आंख खोलकर बोला, 'मूर्ख, तूने मेरे बारे में नहीं सुना कभी? मैं चारों टांगें नीचे टिका दूंगा तो धरती मेरा बोझ नहीं संभाल पाएगी। यह डोल जाएगी। साथ ही तुम सब नष्ट हो जाओगे। तुम्हारे ही कल्याण के लिए मुझे एक टांग पर खड़े रहना पड़ता है।'
 
चूहों में खुसर-पुसर हुई। वे सियार के निकट आकर खड़े हो गए। चूहों के सरदार ने कहा- 'हे महान सियार, हमें अपने बारे में कुछ बताइए।'
 
सियार ने ढोंग रचा, 'मैंने सैकड़ों वर्ष हिमालय पर्वत पर एक टांग पर खड़े होकर तपस्या की। मेरी तपस्या समाप्त होने पर सभी देवताओं ने मुझ पर फूलों की वर्षा की। भगवान ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तप से मेरा भार इतना हो गया है कि मैं चारों पैर धरती पर रखूं तो धरती गिरती हुई ब्रह्मांड को फोड़कर दूसरी ओर निकल जाएगी। धरती मेरी कृपा पर ही टिकी रहेगी। तब से मैं एक टांग पर ही खड़ा हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण दूसरे जीवों को कष्ट हो।'
 
सारे चूहों का समूह महातपस्वी सियार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। एक चूहे ने पूछा, 'तपस्वी मामा, आपने अपना मुंह सूरज की ओर क्यों कर रखा है?'
 
सियार ने उत्तर दिया, 'सूर्य की पूजा के लिए।'
 
'और आपका मुंह क्यों खुला है?' दूसरे चूहे ने कहा।
 
'हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर जिंदा रहता हूं। मुझे खाना खाने की जरूरत नहीं पड़ती। मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भांति-भांति के पकवानों में बदल देता है।' सियार बोला।
 
उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा। अब सियार की ओर से उनका सारा भय जाता रहा। वे उसके और निकट आ गए। अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल ही दिल में खूब हंसा। अब चूहे महातपस्वी सियार के भक्त बन गए। सियार एक टांग पर खड़ा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मंजीरे, खड़ताल और चिमटे लेकर उसके भजन गाते।
 
भजन-कीर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोलियां भक्ति रस में डूबकर अपने बिलों में घुसने लगतीं तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चूहों को दबोचकर खा जाता। फिर रातभर आराम करता, सोता और डकारें लेता।
 
सुबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टांग पर खड़ा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता। इसी तरह चूहों की संख्या कम होने लगी। चूहों के सरदार की नजर से यह बात छिपी नहीं रही। 
 
एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया, 'हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नजर आ रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?'
 
सियार ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाया, 'हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था। जो सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, वह सशरीर बैकुंठ को जाएगा। बहुत से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं।'
 
चूहों के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया है। कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुंठ लोक नहीं है, जहां चूहे जा रहे हैं?
 
चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्चय किया। भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे। सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा।
 
चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था। वह दांव मारकर सियार का पंजा बचा गया। असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गर्दन पर चढ़ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा। साथ ही उसने अपने दांत सियार की गर्दन में गढ़ा दिए। 
बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया। केवल उसकी हडि्डयों का पिंजर बचा रह गया।
 
सीखः ढोंग कुछ ही दिन चलता है, फिर ढोंगी को अपनी करनी का फल मिलता ही है।


वेबदुनिया हिंदी का एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें। ख़बरें पढ़ने और राय देने के लिए हमारे फेसबुक पन्ने और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।