बाल कविता : बड़ी चकल्लस है
रोज-रोज का खाना खाना,
बड़ी चकल्लस है।
करती फतवा जारी
तुम्हें पड़ेगा पूरा खाना
नहीं चले मक्कारी।
दादी का यह पोता देखो,
कैसा परवश है।
बड़ी चकल्लस है।
भूख नहीं रहती है फिर भी,
कहते खा लो खा लो।
घुसो पेट में मेरे भीतर,
जाकर पता लगा लो।
तुम्हें मिलेगा पेट लबालब,
भरा ठसाठस है।
बड़ी चकल्लस है।