बालगीत : कभी न खाना तम्बाकू
किसी किराने की दुकान से,
तम्बाकू के पाउच ले आते।
गली-गली में बच्चे दिखते,
खुल्ल्म-खुल्ला गुटखा खाते।
बाली उमर और ये गुट्खा,
कैसे-कैसे रोग बुलाते।
तड़प-तड़पकर निश्छल नन्हे,
हाय मौत को गले लगाते।
ढेरों जहर भरे गुटखों में,
टीबी का आगाज कराते।
और अस्थमा के कंधे चढ़,
मरघट तक का सफर कराते।
मर्ज कैंसर हो जाने पर,
लाखों रुपए रोज बहाते।
कितनी भी हो रही चिकित्सा,
फिर भी प्राण नहीं बच पाते।
सरकारी हो-हल्ले में भी,
तम्बाकू को जहर बताते।
पता नहीं क्यों अब भी बच्चे,
गुटखा खाते नहीं अघाते।
वैसे बिलकुल सीधी-सच्ची,
बात तुम्हें अच्छी बतलाते।
जो होते हैं अच्छे बच्चे,
तम्बाकू वे कभी न खाते।