कविता : गर्मी का शंखनाद
शंख बजे ज्योंही गर्मी के
मौसम ने यूं पलटा खाया,
दहक उठा कण-कण धरती का
कड़ी धूप ने बिगुल बजाया।
पेड़ बने हैं भाग्य विधाता
कूलर-पंखे जीवनदाता,
गुल होते ही बिजली के
बेचैनी से जी घबराता।
तेज धूप के छूते ही
पौधे बनते छुईमुई,
लगता सूरज अग्निपिंड।
औ आसमां धुनी रुई।
लू के लपटों के आतंक ने
जीवन में हड़कंप मचाया,
शंख बजे ज्यों ही गर्मी के
मौसम ने यूं पलटा खाया।
दुबक पड़े पंछी नीड़ों में
दूभर है सबका जीना,
चिलचिलाती तेज धूप में
सड़कों का भी छूटा पसीना।
बजी मच्छरों की शहनाइयां
और आंधी के अलगोजे,
कोयल कूके बैठ आम पर
चमगादड़ अपना तन नोचे।
चंदन जैसी लगती शीतल
अब पेड़ों की छाया,
शंख बजे ज्योंही गर्मी के
मौसम ने यूं पलटा खाया।
अंगूर, आम, पपीते भाते,
कुल्फी, आइसक्रीम खूब उड़ाते,
नदिया, झरने, शरबत मानो
सारी गर्मी दूर भगाते।
पूरब से पश्चिम को सूरज
धीरे-धीरे आता,
रात एक नन्ही चिड़िया सी
दिन अजगर बन जाता।
गर्मी की छुट्टियों का मौसम
सैर-सपाटों के दिन लाया,
शंख बजे ज्यों ही गर्मी के
मौसम ने यूं पलटा खाया।
- शिवनारायण शर्मा
- देवपुत्र