पेड़ की महिमा बताती कविता : अपना फर्ज निभाता पेड़...
दादाजी-दादाजी बोलो,
पेड़ लगा जो आंगन में।
इतना बड़ा हुआ दादाजी,
बोलो तो कितने दिन में।
मुझको यह सच-सच बतलाओ,
किसने इसे लगाया था।
हरे आम का खट्टा-खट्टा,
फल इसमें कब आया था।
मात्र बरस दस पहले मैंने,
बेटा इसे लगाया था।
हुआ बरस छह का था जब ये,
तब पहला फल आया था।
बीज लगाया था जिस दिन से,
खाद दिया, जल रोज दिया।
पनपा खुली हवा में पौधा,
मिली धूप तो रूप खिला।
तना गया बढ़ता दिन-पर-दिन,
डाली पर फुनगे फूटे।
हवा चली जब सर... सर... सर...,
अट्टहास पत्तियों के गूंजे।
पहला फूल खिला डाली पर,
विटप बहुत मुस्काया था।
जब बदली मुस्कान हंसी में,
तब पहला फल आया था।
तब से अब तक हम सबने ही,
ढेर-ढेर फल खाए हैं।
जबसे ही यह खड़ा बेचारा,
अविरल शीश झुकाए है।
इसे नहीं अभिमान जरा भी,
कुछ भी नहीं मंगाता है,
बस देते रहने का हरदम,
अपना फर्ज निभाता है।