बाल कविता : माथा पच्ची
कहती हूं मैं सच्ची-सच्ची।
सड़क बनी है कच्ची-कच्ची।
कदम चार भी चल ना पाते।
कीचड़ में पग धंस-धंस जाते।
डर लगता है रपट पड़ें ना।
औंधे मुंह हम कहीं गिरें ना।
उफ कितनी यह माथा पच्ची।
अभी बगल से मोटर निकली।
कपड़ों पर क्या! कीचड़ उछली।
कहीं भरा घुटनों तक पानी
गड्ढे कहते अलग कहानी,
कहां चले यह नन्ही बच्ची।
या तो भगवान सड़क बना दो।
या फिर मुझको पंख लगा दो।
जहां कीच मिट्टी पाऊंगी।
तितली बनकर उड़ जाऊंगी।
खूब फिरूंगी करती मस्ती।