बाल साहित्य : टर्राने वाले मेंढक...
सिर पर अपने आसमान को,
क्यों हर रोज उठाते भैया।
मछली मेंढक से यूं बोली,
क्यों इतना टर्राते भैया।
मेंढक बोला नियम-कायदे,
तुम्हें समझ न आते दीदी।
टर्राने वाले ही तो अब,
शीघ्र सफलता पाते दीदी।
नेता जब टर्राता है तो,
मंत्री का पद पा जाता है।
अधिकारी टर्राने से ही,
ऊपर को उठता जाता है।
उछल-कूद मेंढक की, मछली,
कहती मुझको नहीं सुहाती।
टर्राने वालों को दुनिया,
अपने सिर पर नहीं बिठाती।
एक बुलबुला बनता पल में,
और दूसरे पल मिट जाता।
हश्र बुलबुले का भैया क्या,
तुमको समझ न बिलकुल आता।
गाय बहुत ही सीधी-सादी,
नहीं किसी को कभी सताती,
अपने इन्हीं गुणों के कारण,
सदियों से वह पूजी जाती।