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कविता : देश का इंसान

कविता : देश का इंसान - poem on desh in hindi
- आशुतोष झा
 

 
 
देश टिका है अपने जन पर।
जन टिका है अपने मन पर।।
 
देश को तभी बढ़ा पाएंगे।
जब खुद को आगे ले जाएंगे।।
 
ले जाओ दूर धर्म-जात क्षेत्र की खुरचन।
हटा दो भेद आंखों का न उजड़े बचपन।।
 
कहीं भाषा भेष अलग न हम देखें।
सभी में एक लहू एक इंसानियत दिखे।।
 
इतना पढ़कर भी क्यों मांगते हैं घूस।
मतलब शिक्षा में कहीं कूड़ा गया था घुस।।
 
सालभर में तीन दिन जय देश कहने से क्या?
 
हम हर क्षण अपनी हर सांस मजबूत कर लें।
कस लें कमर अपनी, अपने तीर पैने धार कर लें।।
 
कहीं छुपा नहीं है, न ही दिख रहा है दनुज।
खुद ही बन बैठे हो शत्रु आज तुम मनुज।।
 
शस्त्र कौन सा चाहिए, तुम ही चुन लो।
अपने मन में बैठे दुश्मन को तुम धुन लो।।
 
तभी समाज राष्ट्र दुनिया ब्रह्मांड के गीत साकार होंगे।
सभी जन उस क्षण ही निराकार होंगे।।