बाल कविता : मैं बाबा हूं काशी वाला
मैं बाबा हूं काशी वाला।
तुम्हें हंसाने आया हूं।
देखो बच्चों बड़े स्वाद की।
पल भर में मैं भेष बदलता।
झट बंदर बन जाता हूं।
मेरे संग भी एक बंदरिया...
ठुमक के नाच दिखाता हूं।
कभी तो तोता कभी तो मैना।
कभी फूल बन जाता हूं...
कभी शेर भी बनकर बच्चों।
तुम्हें डराने आता हूं...
कभी बिहारी कभी कबाड़ी...
पंजाबी भी बन जाता हूं...
कभी गली का कुत्ता बनकर।
लाठी-डंडा खाता हूं...
कभी तो साधु कभी महात्मा।
मंदिर सीधे जाता हूं।
भोले बाबा के चरणों में।
अपना शीश झुकाता हूं...
मैं बाबा हूं काशी वाला।
तुम्हें हंसाने आया हूं।
देखो बच्चों बड़े स्वाद की।
तुम्हें मिठाई लाया हूं।